जब एक प्रोफेसर को IPC376; 452 के तहत सात वर्ष की सज़ा होती हैं, तो हमारे देश का प्रशासन उसे सज़ा तो देता हैं, लेकिन बहुत ही मज़ेदार सज़ा… वो सज़ा हैं की पहले उसको खुद से नहीं देता, जब तक पीड़िता इधर-उधर गिरते-पड़ते ठोकर खाते चिल्ला-चिल्ला के यह न कहे की मेरे साथ गलत हुआ हैं.. मेरी मदद करो.. कोई तो सुनो…. सुना ना हमने, लेकिन उसकी नहीं.. उस प्रोफेसर को सुना, जो कहता हैं की मेरी तनख्वाह जो की 50% हैं, उसे as per rules 75% कर दो.. ‘क्यूंकि मेरे परिवार का बोझ मुझ पे हैं..’ लेकिन उस लड़की का क्या, जिसने बड़ी मुश्किल से समाज से लड़कर, अपने परिवार के विरुद्ध जाके और भ्रष्टाचार के राक्षसों से लड़ते-लड़ते अपनी लड़ाई जीती.. वो नाखुश होकर भी खुश रहना सीख ही रही थी की- तभी मालुम हुआ की प्रोफेसर साहिब तोह एक बड़े से जज के बेटे द्वारा जमानत पे आ गया हैं..
और फिर कहा जाता हैं की हमे (लड़कियों) को शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहिए, ताकि आप सब मिलके उनका एक बार फिर से शोषण कर सके..) क्या यही हैं न्याय.. देखा था न्याय की देवी की आँखों पे पट्टी हैं.. लेकिन क्यूँ हैं.. शायद इस पत्र में जिसका शोषण हुआ हैं, वह भली-भांति जान गई होगी की क्यूँ हैं वह- पट्टी आँखों पे.. क्यूंकि वो देवी भी एक औरत हैं.. वो स्वयम पे (एक औरत) पे जुल्म देख नहीं पाती.. मैं अंत में यही कहना चाहूंगी की, जैसा के मेरे इस पत्र का शीर्षक भी हैं। यह motivation नहीं, तो क्या हैं.. हम खुद ही समाज में लोगो के लिए crime के रास्ते खोलते हैं और फिर रोकने की बात करते हैं.. क्या आपको नहीं लगता-
हर प्रोफेसर यही करेगा,
घर बैठे तनख्वाह खायेगा..