कुछ दिन पहले, अहमदाबाद से भरूच जाना हुआ, 150 किलोमीटर के इस सफर में, गुजरात राज्य चुनाव की सरगर्मियां कहीं भी सड़क के किसी किनारे मौजूद नहीं थी, मसलन किसी भी पार्टी के चुनावी होर्डिंग्स मुश्किल से ही दिखने को मिल रहे थे। उस वक्त एहसास हुआ कि दरअसल इन चुनाव प्रचारोंं ने सड़कों से ज़्यादा डिजिटल माध्यम की ओर रुख कर लिया है। उस वक्त मुझे लगा कि उभरता हुआ भारत दरअसल डिजिटल भारत है, जहां सामान्य कीमत पर इंटरनेट मोबाइल फोन के रूप में हर आम और खास की पहुंच में है। ऐसे में चुनावी प्रचार का माध्यम इंटरनेट, सोशल मीडिया बन चुका है। भाजपा और भाजपा के चेहरे बन चुके मोदी जी तो इस प्लेटफॉर्म का अच्छा खासा उपयोग कर ही रहे हैं।
लेकिन आज गुजरात चुनाव में जो चेहरा सबसे ज़्यादा चर्चा में है, उसके राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी इसी सोशल मीडिया के एक पेज से हुई थी। मेरी मुराद, गुजरात के नौजवान नेता और पटेल आरक्षण आंदोलन का चेहरा बनकर उभरे हार्दिक पटेल से है।
2015 अगस्त, में हुए पटेल आंदोलन से महज कुछ दिन पहले चर्चा में आये, हार्दिक पटेल इससे पहले एक सामान्य नौजवान की तरह ही अपनी जिंदगी गुज़ार रहे थे, शायद ही तब इन्हें इनके मित्रों के सिवा और कोई जानता हो, मूलतः हार्दिक पटेल अहमदाबाद से सटे वीरमगाम से ताल्लुक रखते हैं और अहमदबाद की सहजानंद कॉलेज से ग्रेजुएट हैं। लेकिन मुख्य परीक्षा में आये इनके नंबर ये ज़रूर बताते हैं कि हार्दिक पढ़ाई में ज़्यादा निपूर्ण नहीं थे। हार्दिक अचानक ‘पटेल अनामत आंदोलन‘ से ही चर्चा में आ गए थे। ना सिर्फ गुजरात बल्कि देश-विदेश में भी उन्होंने चर्चा बटोरी, अखबारों की सुर्खियों के ये हिस्सा बनने लगें।
व्यक्तिगत रूप से, अगस्त 2015 जब पटेल आंदोलन, अपना रुख अहमदाबाद की ओर कर रहा था, खबरों के साथ-साथ, आम लोगों की ज़ुबान पर भी हार्दिक पटेल का नाम चढ़ रहा था, ऐसे में एक सहकर्मी ने बताया था कि महज़ कुछ महीने पहले फेसबुक पर एक पेज द्वारा अनामत का ये प्रस्ताव रखा गया और हज़ारों की तादाद में लोग इससे जुड़ते गये, इसके बाद कस्बों से लेकर शहर तक, जाहिर सभा द्वारा लोगों को इस आंदोलन से अवगत भी करवाया गया और जोड़ा भी गया। हार्दिक जहां इस आदोलन का मुख्य चेहरा बनकर उभर रहे थे वहीं एक प्रवक्ता के रूप में भी अपनी छवि को कायम कर रहें थे। यही वजह थी कि पटेल आंदोलन का दूसरा नाम हार्दिक पटेल खुद बन गये थे।
तारीख 25-अगस्त-2015, दिन मंगलवार, गुजरात राज्य सरकार पर अपना दबाब बनाने के लिये, अपनी मांगों के साथ पटेल आंदोलन अहमदबाद में एक बड़ी जन सभा कर रहा था जिसे महाक्रांति का नाम दिया गया और इस सभा का स्थान था गुजरात यूनिवर्सिटी से सटा हुआ GMDC ग्राउंड। ये वही स्थान है जंहा से महज कुछ कदमों की दूरी पर साल 2011 में बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री (तत्कालीन) नरेन्द्र भाई मोदी ने 3 दिन के लिये सद्भावना उपवास रखा था। लेकिन 2015 की अगस्त की तारीख में यही इसी जगह गुजरात को एक और नेता मिलने वाला था।
आरक्षण का ये आंदोलन अहमदाबाद पहुंचते-पहुंचते बहुत बड़ा हो गया था। मुझे याद है इस दिन हालात बिगड़ने की आशंका के कारण मैंने दफ्तर से छुटी ले ली थी। बावजूद इसके सड़कों पर आंदोलनकारियों के काफिलों का गवाह भी बन रहा था। मुझे कुछ चश्मदीदों ने बताया था कि सुरक्षा और वाहनों की पार्किंग, ट्रैफिक जैसी समस्या से निपटने के लिए राज्य पुलिस ने आंदोलन के मुख्य स्थल से तकरीबन 1-2 किलोमीटर पहले ही गाड़ियों को आगे जाने से रोक लगा दी थी। लेकिन ये आंदोलन अब जुनून बन गया था और लोग पैदल ही इसमें शामिल होने के लिए निकल पड़े थे। वैसे तो पटेल समाज गुजरात राज्य में हर व्यवसाय में अपनी मौजूदगी का एहसास करवाता है लेकिन मुख्यत: ये समाज गुजरात में खेती से जुड़ा हुआ है और उनके पोशाक में मुख्य रूप से सफेद रंग शामिल होता है।
उस वक्त भी हज़ारों की तादाद में आंदोलनकारियों ने मानो सफेद रंग से अहमदाबाद की सड़के ढक दी थी। मुझे यह भी पता चला था कि सभा में मौजूद लोगों के लिये खाने और पीने के लिये पर्याप्त आहार और पानी का बंदोबस्त पहले से ही कर लिया गया था। हर पटेल समुदाय का नागरिक व्यक्तिगत रूप से इस आंदोलन से जुड़ रहा था, यही वजह थी कि जब सभा अपने रंग में आयी, तो अहमदाबाद का GMDC का विशाल मैदान लोगों से लद गया था। कई पटेल दोस्तों ने बताया था कि यहां लाखों की संख्या में लोग मौजूद थे।
दोपहर के बाद, मंच से कई लोगों ने इस सभा को संबोधित किया, खास बात यही रही कि मंच पर मौजूद इन सब में कोई भी राजनीतिक पार्टी का नेता नहीं था। जो मौजूद थे, वह इस आंदोलन समिति के मुख्य सदस्य थे। आखिर में हार्दिक पटेल ने बोलना शुरू किया, सभा में पूर्णतः शांति पसर गयी थी। इनमें बहुत से ऐसे लोग भी थे जो विशेषकर हार्दिक पटेल को सुनने आये हुए थे। इन आंदोलनकारियों में नौजवान वर्ग की संख्या सबसे ज़्यादा थी। सरकारी कागज़ों के अनुसार हार्दिक के बोलने के बाद सभा को खत्म होना था और सभी लोगों को यह जगह शांतपूर्ण तरीके से खाली कर देनी थी। लेकिन हार्दिक पटेल ने मंच से ये ऐलान कर दिया कि वह, तब तक यहां इसी स्थान पर अनशन पर बैठेंंगे जब तक मुख्यमंत्री (तत्कालीन) श्री आनंदी बहन पटेल खुद सभा के स्थान पर आकर इस आंदोलन की मांगों की अर्ज़ी को नहीं स्वीकार करती हैं।
यहां हालात काबू से बाहर हो रहे थे, लाखों की संख्या में आंदोलनकारी सड़क पर मौजूद थे, जहां एक अफवाह या कोई हादसा भी चिंगारी की तरह आग को भड़का सकता था, हार्दिक पटेल अपनी ज़िद्द पर अड़े थे। कुछ समय बाद पुलिस द्वारा भीड़ को जबरन हटाने की कोशिश की गयी जिससे हालात और बिगड़ गये। इसी बीच हार्दिक को हिरासत में ले लिया गया, जिसने भीड़ को और भी उकसा दिया, यही से इस आंदोलन ने उग्र हिंसा का रूप ले लिया।
सरकारी बसें निजी, वाहनों सभी को जलाया गया। आंदोलनकारी और पुलिस आमने सामने थी। शहर से शुरू हुई ये आग कुछ ही समय में पूरे राज्य में फैल गयी थी। इसी बीच पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गये, लोगों द्वारा जलाई गई बसों का वीडियो व्हाट्सअप पर वायरल हो रहा था। दूसरे दिन सुबह, चांदखेड़ा बस स्टैंड पर मैंने अपने जीवन में पहली बार किसी सरकारी बस को जलता हुआ देखा था। लेकिन जहां भीड़ अपना रंग दिखा रही थी, वही पुलिस भी कम नहीं थी पुलिस पर भी आरोप लगे, पुलिस ने कई पटेल सोसाइटी पर हमला किया गाड़ियों के शीशे तोड़े गए, घरों से निकालकर लोगों को पीटा भी गया।
अगले कुछ दिनों तक, शहर में इंटरनेट सेवा बन्द कर दी गयी, आंदोलनकारियों द्वारा रेल की पटड़ी को उखाड़ देने के कारण रेल यातयात ठप हो गया, सरकारी बसों को जलाने के कारण और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रोडवेज़ की बसें रोके दी गईं। हालात इस तरह थे मानो अहमदाबाद शहर के साथ-साथ पूरा प्रांत ही रुक गया हो, सुरक्षा के मद्देनज़र स्कूल, कॉलेज, दफ्तर बंद कर दिये गये। व्यक्तिगत रूप से हमें भी इस चरमरा चुकी कानून व्यवस्था से गुज़रना पड़ा। उन दिनों अहमदाबाद जम्मूतवी 19923 वाया जोधपुर, गुजरात की सीमा में दाखिल ही नहीं हो रही थी और इसे राजस्थान के आखिरी स्टेशन आबूरोड से चलाया जा रहा था। हमारे परिवार के एक सदस्य को उन दिनों पंजाब जाना था, रेल और बस सेवा के बंद रहने की वजह से ये सफर, बहुत मुश्किल रहा। जहां रुक-रुक कर शेयर टैक्सी में बैठना मजबूरी थी, वहीं किराया भी बढ़ गया था। लेकिन ये आंदोलन ही था, जिसने पटेल समाज को राज्य की भाजपा सरकार के सामने ला खड़ा कर दिया था और इसी आंदोलन का चेहरा बनकर उभरे थे हार्दिक पटेल, जिन्हें जेल में भी रखा गया लेकिन इनकी लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती गयी।
यही वजह है की इस साल गुजरात राज्य चुनाव में हार्दिक पटेल, अपने आक्रमक रुख के साथ जगह-जगह सभाओं को संबोधित कर रहे हैं और इनके निशाने पर भाजपा और भाजपा का चेहरा बन चुके मोदी जी हैं। पटेल आंदोलन के समय पुलिस फयरिंग में मारे गये पटेल नौजवानों के कारण, लगभग पूरा पटेल समाज इस वक्त राज्य भाजपा सरकार के सामने आ खड़ा हुआ है, जिसकी आवाज़ बनकर हार्दिक पटेल आज चुनावी मंच से दहाड़ रहे हैं।
2007 और 2012 के राज्य चुनाव में भी यहां विरोध के सुर उठे थे, लेकिन उनकी आवाज़ मोदी जी जितनी ऊंची नहीं थी और ना ही उनके पीछे लोग मौजूद थे। लेकिन आज हार्दिक पटेल के रूप में मोदी जी के खिलाफ, एक गुजराती ललकार भी रहा है और भाजपा की सरकार को चुनौती भी दे रहा है। और हार्दिक की हर सभा में विशाल जन आक्रोश भी उभर रहे हैं। 2002, 2007 और 2012 राज्य चुनाव में भाजपा बहुमत से कुछ 20-30 ज़्यादा सीटों पर विजयी होती रही है, वहीं 20-30 सीट के फर्क से यहां कॉंग्रेस हारती रही है, अब अगर हार्दिक पटेल के रूप में 15% की आबादी वाला पटेल समाज गुजरात राज्य चुनाव में भाजपा का विरोध करता है तो नतीजन चुनाव परिणाम पर इसका व्यापाक असर देखने को मिल सकता है। कुछ भी हो इस चुनाव से गुजरात राज्य में हार्दिक पटेल के रूप में एक बड़ा नेता ज़रूर उभरकर आयेगा और भविष्य में राज्य की सत्ता पर भी हार्दिक अपना परचम लहरा सकते हैं, जो यकीनन भाजपा और मोदी जी के लिये शुभ संकेत नहीं है।