वो जो इतिहास के पन्नो मे कही दब कर भुलाई जा चुकी थी उसकी इज़्ज़त बचाने कि किमत लगाई जा रही है,
वो जो अपना दामन फैलाये इज़्ज़त की भीख मांग रही है उस बेबस को ज़माने से बस रुस्वाई मिल रही है।
वो जो इतिहास के पन्नो मे कही दब कर भुलाई जा चुकी थी उसकी इज़्ज़त बचाने कि किमत लगाई जा रही है,
वो जो अपना दामन फैलाये इज़्ज़त की भीख मांग रही है उस बेबस को ज़माने से बस रुस्वाई मिल रही है।