भारत! प्राचीन ऋषि मुनियों का देश , जिसने जब वैज्ञानिक सोच का विकास नही हुआ था तभी से अपनी वैज्ञानिकता और अध्यात्म की विरासत से पुरे विश्व को जाग्रत किया अपनी और विश्व के श्रेष्ट यूनानी एवम् यूरोपीय को आकृष्ट किया।
यह देश कुछ सालों से अपने ही लोगो द्वारा फैलाई वैमनष्ययात से झुझ रहा है। कल तक इस अवाम का कौन सा नागरिक secularism(धर्मनिरपेक्ष), communal(सांप्रदायिक), intolerance(असहिष्णुता) जैसे शब्दों से परिचत था, और निश्चित तौर पर वर्तमान परिपेक्ष्य में उन तमाम जनमानस को इन शब्दों का अर्थ पता नही होगा ,जिनकी एक वक़्त की रोटी बमुश्किल बन पा रही है, उस किसान को इनका अर्थ समझने से ज्यादा सर्कार द्वारा अपने को उपेक्षित क्यों किया गया ये समझने की ज्यादा आवश्यकता है, तो उसे भले को भला इसका क्या मतलब , फिर क्यों राग लगाय सब राष्ट्रहित मुद्दों को छोड़कर इनका अलाप लगाय बैठे है।
निश्चित ही किसी ने सही कहा था , अगर विपक्ष कमजोर हो तो , पत्रकार का दायित्व बनता है की वो विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करे, सरकार जो दम्भ से भारी हुई है उसे उसका आइना दिखाये की ये देख ये 120 करोड़ की जनता है जो राजा है तेरा सृजक वही है, तू उसका सेवक बन, किन्तु बिडम्बना देखो कैसी है हमारी स्वतंत्र मीडिया कैसे प्रचार में जुटी हुई है।
ये क्या हो रहा है, जिस भेदभाव , ऊंच नीच को मिटने के लिए सत्तासीन होते है जो लोग वही तो इस खाई को बनाये रखना चाहते है।
हालांकि इस लेख से किसी एक निष्कर्ष पर जाना मुश्किल है की किस विषय पर जाना है , पर उसका एक ही और इशारा है, “दंभी सरकार, बेबस और लाचार विपक्ष एवम् चापलूस मीडिया”