Site icon Youth Ki Awaaz

प्राचीन समय में भारत कोई राष्ट्र नहीं था

राष्ट्रवाद का उदय सोलहवीं- सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप में हुआ। लोग लड़- लड़कर जब थकने लगे तो उन्होंने निर्णय लिया कि चलो अब सीमाएं निर्धारित कर लेते हैं और अपने-अपने क्षेत्र में रहते हैं। जब साम्रज्यवाद ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को गुलाम बना लिया तब यहां के मुक्ति आंदोलनों ने राष्ट्रवादी आंदोलनों का रूप लिया और अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया।

ऐसा कहना उचित होगा कि राष्ट्रवाद एक आधुनिक परिघटना है। राष्ट्रवाद एक राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धान्त है। जिसमें तरह-तरह के लोग एक साथ रहकर एक दूसरे की भलाई के लिए काम करते हैं। ऐसा मान लीजिए कि विभिन्न प्रकार के मोतियों को धागे में पिरोकर एक माला का निर्माण किया जाता है।यही राष्ट्रवाद है।

इसका प्राचीन काल से कोई लेना देना नहीं है। प्राचीन काल मे लोगों के अंदर राष्ट्रवादी भावना नहीं होती थी। उनके अंदर अपने कबीले और राज्य के प्रति निष्ठा की भावना होती है। आज जिसे भारत कहा जाता है,उस भू -भाग में न जाने कितने छोटे एवं बड़े राज्यों का निर्माण हुआ। जो आपस मे लड़ते थे। अगर मान भी लें भारत बहुत प्राचीन समय से राष्ट्र रहा है तो फिर ऐसे साम्राज्य आपस मे क्यों लड़ते थे? इसका साफ मतलब है कि प्राचीन समय मे भारत कोई राष्ट्र नहीं था। भारत ही क्या,कोई भी राष्ट्र नहीं था।

अब आते हैं कि यूनानियों ने अपने हमले को पंजाब पर न बताकर इंडिया पर क्यों बताया,मुसलमानों ने गज़नी को गज़वा-ए-हिन्द क्यों कहा, अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी क्यों बनाई! इत्यादि।

ये सारे प्रश्न आपकी इतिहास,भूगोल और समाज के प्रति कच्ची समझ को ही दर्शाते हैं। हम जब भारतवर्ष के अतीत की खोज करते हुए प्राचीन समय में जाते हैं तो हमें भारत नाम के किसी जातीय राष्ट्र राज्य का उल्लेख नहीं मिलता है।भौगोलिक रूप में किसी जगह का नाम कुछ तो होगा ही। इसका मतलब यह नहीं है कि वो भौगोलिक क्षेत्र एक राष्ट्र हो गया। क्योंकि राष्ट्र केवल जमीन का टुकड़ा नहीं होता है। राष्ट्रवाद एक भावना है,जो लोगों में होती है।

एक भू- भाग के रूप में भारतवर्ष का सर्वप्रथम उल्लेख खारवेल की हाथीगुम्फा प्रशस्ति में हुआ है। लेकिन इसमें मथुरा और मगध को भारतवर्ष नहीं माना गया है।मनुस्मृति में केवल उत्तर भारत और विंध्य के एक छोटे भाग को आर्यावर्त कहा गया है।इसमें भी आज का भारत सही से नहीं दिखता। अखंड भारत तो बिल्कुल ही नही दिखता है।संगम साहित्य भी आज के दक्षिण भारत को द्रविण प्रदेश कहता है। इसमें भी सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप की कोई छवि देखने को नहीं मिलती है।

‘इंडिया’ नाम का प्रथम प्रयोग पांचवी शताब्दी ई०पूर्व हेरोडोटस ने किया। वह भारत कभी नहीं आया। उसने पारसी सूत्रों से सामग्री ली। हखमनी के दरयबोस ने जब सिंधु नदी के पास एक छोटे डेल्टा पर कब्जा कर लिया तो इसे ‘हिंदुश’ का नाम दिया। क्योंकि ईरानी भाषा में ‘स’ का उच्चारण नहीं है। ‘स’ की जगह ‘ह’ हो जाता है। इसी प्रकार यूनानी में ‘ह’ की जगह ‘इ’ हो जाता है। इसलिए हेरोडेटस ने हिंदुश को इंडिया किया। इस नाम से भी सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप बोध नहीं होता है।समय के साथ- साथ ये अधिक बड़े भू भाग के लिए प्रयोग किया जाने लगा। लेकिन जैसा कि पहले ही बता चुका हूं कि राष्ट्र केवल जमीन का टुकड़ा नहीं होता। मेगस्थनीज की इंडिका को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। उसने एक भौगोलिक क्षेत्र का विवरण लिखा है, न कि राष्ट्र का। यही बात चीनी यात्रियों के विवरण में भी लागू होती है।चीनी यात्रियों ने तो दक्षिण-पश्चिम एशिया को भी भारत (शेन दु) बोल दिया है।

इसलिए आज के राष्ट्र राज्य को प्राचीन समय में नहीं खोजा सकता है। इंसानों ने जगहों को कुछ नाम दिए। ये नाम समय के साथ जगहों के आकार घटने बढ़ने में चिपके रहे। इससे ये साबित नहीं हो जाता कि प्राचीन समय में भारत एक राष्ट्र राज्य था। क्योंकि तब राष्ट्र-राज्य जैसी कोई अवधारणा ही नहीं थी।

Exit mobile version