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पालकी

पालकी

*छोटी छोटी गय्यां छोटे छोटे ग्वाल*
*छोटो सो मेरो मदन गोपाल*

बड़ी ही मधुर आवाज़ में भजन गाया जा रहा था,और बड़ी ही शान से बाल कृष्ण की पालकी शहर में घूम रही थी।लोग अपने अपने घर वालों के साथ हाथों में पैसे और प्रशाद के लिए चढ़ाने के वासते नारियल और फल वग़ैरा लिए हुए थे।जब पालकी नज़दीक आती तो लोग बाल कृष्ण के दर्शन करते और नारियल फल वग़ैरा चढ़ा के पालकी के नीचे से होते हुए आगे निकल जाते।एक कपड़े की दुकान पर भी दुकान का मालिक हाथों में केले और कुछ पैसे लिए हुए पालकी के आने का इंतज़ार कर रहा था तभी एक बूढ़ी भीकारन फटे पुराने कपड़ों में लाठी के सहारे से चलती हुई आयी और दुकान मालिक से कहने लगी ” मालक ओ मालक कुछ खाने दे दो बहोत भूकी हूँ।”दुकान मालिक ने उसे धुत्कार दिया।बूढ़ी भीकारन कि आँखों में नमी सी जम गई।तभी पालकी नज़दीक आयी और दुकान मालिक ने पालकी में विराजमान बाल कृष्ण के चरणों में केले और पैसे अर्पण किये और दर्शन कर के पालकी के नीचे से होते हुए आगे बढ़ गया।वो बूढ़ी भीकारन ख़ामोश सब देखती रही और धीमे धीमे क़दमो से लाठी के सहारे चलते हुए आंखों में नमी लिए हुए आगे बढ़ गयी।

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