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जीत में ईवीएम से प्यार, हार में तकरार ।

हिंदी की एक पुरानी कहावत है, ‘नाच न जाने आंगन टेढ़ा’ ठीक इसी को चरितार्थ मौजूदा दौर में विपक्ष देश मे कर रहा है। जनता के बीच विश्वास न बढ़ा पाने और चुनाव में नाकामयाबी का ठीकरा ईवीएम और चुनाव आयोग पर फोड़ा जाने का चलन सा हो गया है। इस शूद्र राजनीति के पीछे की रणनीति है कि असत्य को सत्य के तौर पर पेश किया जाए। उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के दौरान मेरठ में एक ईवीएम मशीन खराब पाई गई जिसमें कोई भी बटन दबाने पर कथित रूप से वोट बीजेपी को ही जाता था, जबकि ये एक अर्ध सच्चाई है। इसे सही साबित करने के लिए सोशल मीडिया पर धरले से वीडियो भी शेयर किए गए। सच्चाई ये थी कि कोई भी बटन दबाने पर बीजेपी के कमल निशान के साथ-साथ नोटा के निशान के समक्ष भी लाइट जल रही थी, किन्तु चतुराई से इस बात को तबज्जो नही दी गई और लोगो के मध्य भ्रम फैलाने का पुनः पुरजोड़ कोशिश प्रारम्भ हो गई। इससे पहले भी मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में भी इस तरह के भ्रम फैलने की कोशिश हो चुकी है, दिल्ली के एक विधायक ने तो नकली ईवीएम में सेंध लगाने का स्वांग भी रचा, किन्तु जब इस प्रायोजित झूट को समाप्त करने के लिए चुनाव आयोग ने खुली चुनौती दी तो सभों ने हाथ खड़े कर दिए।
                   एक बार फिर ईवीएम टेम्पेरिंग का जिन बाहर निकल आया है, मेरठ के ईवीएम में आये गड़बड़ी के बाद पुनः कुछ राजनीतिक पार्टियां ईवीएम की खिलाफ मोर्चा खोल दिए है, आश्चर्य की बात इसमे ये है कि इसमें वे लोग भी शामिल है जो ईवीएम से ही प्रचंड बहुमत हासिल कर राज्य के सरकार में आये है। इस बार सरकार के साथ होकर विपक्ष के मूड वाली शिवसेना ने रोना धोना प्रारम्भ कर दिया है, जबकि शिवसेना ईवीएम से ही हुए मुम्बई निकाय चुनाव में अव्वल रही, पंजाब में कांग्रेस ने भी विजय प्राप्त सत्ता में वापसी की, हाल में हुए मध्यप्रदेश के चित्रकूट के चुनाव में भी कांग्रेस ने जीत हासिल की । इनसब के बाद भी ईवीएम पर सवाल उठना सिर्फ राजनीति से प्रेरित प्रतीत होता है।
इस तरह के राजनीतिक स्वार्थ से लोगो के बीच राजनेताओ और पार्टियों की छवि गिरती है, साथ ही साथ वैश्विक स्तर पर भी देश का नाम खराब होता है, चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है, अगर उन्हें भी राजनीतिक दुष्प्रचार का शिकार बनाएंगे तो लोगो के मध्य संस्थानों की विश्वसनीयता में कमी आएगी, लोकतंत्र में सवाल पूछना और विरोध करने का अधिकार है किंतु जानबूझकर किसी को संदेह के घेरे में खड़ा करना बिल्कुल गलत है। इसलिए विपक्ष को समझना चाहिए कि उनकी दोमुंहा राजनीति कारगर नही होगी, अपनी जीत में ईवीएम से प्यार और हार में तकरार वाली राजनीति उनके साथ-साथ देश की छवि को भी धूमिल करेगी, अतः परिपक्वता के साथ राजनीति करे और बिना ठोस सबूत के संस्थानों पर सवालिया निशान न लगाएं, दूसरी तरफ निर्वाचन आयोग की भी ये जिम्मेदारी है कि वो हर संदेह का निवारण स्वमं करे और फिर भी कोई हठधर्मिता पर उतरती है तो कानूनी करवाई की जाए।
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