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जरा_सोचियेगा_हमारे_अस्तित्व_के_बारे_में

नमस्कारम।

” मैं अपना कर्म कबूल करता हूं, की मैं एक नाजुक (जानवर) की आज हत्या कर आया”..

 

यह धरती एक रंगमंच के समान है। एक थियेटर के समान है। हम मनुष्य इस पर अपने समय समय पर अपना रोल अदा करते है और चले जाते है। हम जब बच्चे होते है तो सभी का लगाव, प्रेम जुड़ा रहता है……ओर हम यौवन अवस्था मे अपना अच्छा साथी दोस्त तलाशते हैै,ताकि हम अपनी अभिव्यक्ति को किसी विश्वासपात्र के साथ बिना जिझक के शेयर कर सके …… एक समय हम बुजुर्ग होते है और मर जाते है । फिर यही क्रम धरती पर आगे चलता रहता है। यहाँ धरती पर कोई भी वस्तु साध्य नही है सब साधन है। हम रिश्तो का नाम देकर एक दूसरे का बखूबी उपयोग करते है। ….सिक्का जमाने के लिए।… स्वयं का महत्व बताने के लिए…. स्वयं का अस्तित्व समझाने के लिए।

परमार्थ, ओर विश्वास की धुरी स्वार्थ के पहियों पर घूमती है। हुआ यूं कि आज अभी कुछ ही देर पहले मैं एक नाजुक, बेगुनाह, निर्दोष, गरीब जानवर की हत्या कर आया। मैं सार्वजिक रूप से स्वीकार करता हु की मेरे हाथों से एक *चूहे की बेवजह हत्या हुई है।*
पहले मैं कुछ स्पष्ट करदू की हम इंसानो की मानसिकता कभी झुकने को सहमत नही होगी, हम अपनी गलती को जल्दी से स्वीकार नही करते, स्वयं को बचाने के अनेक प्रयत्न करते है।
जैसे भारत मे लोग अपने कुछ त्यौहारों पर जानवरो को नही काटते है यहाँ ऐसी स्थिति प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है कि क्या उन त्यौहारों में जानवरो की नब्ज,श्वांस, दर्द, खाना, पीना जैसी कुछ भी क्रिया नही होती? लेकिन आमतौर पर वही धर्मारथी लोग जानवरो को काट कर खाते है…….कसाई, चमड़ी भक्षक, गले काटने वाले,  अपने कार्य को कभी पाप नही बोलेंगे क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में कुछ लोगो का तो जीभ के स्वाद के बारे में ओर कुछ को अपने रोजगार के बारे में सोचना पड़ता है। वहाँ उनके मजहब की पाक बाणी, बोल, शब्द, छंद बोले तो उनको वे किसी दूसरे ग्रह की बाते लगती है।

मैं इसलिए अपने द्वारा किये गए कुकृत्य को बिना समय बर्बाद किये, मानसिकता को विश्राम देते हुए इसलिये कबूल करता हु क्योंकि मेरे द्वारा किये गए गलत काम या हत्या का न तो मेरे रोजगार से जुड़ा है न ही मेरी जीभ के स्वाद से।
हम इंसान अपने साथ बहुत मुखोटे रखते है। धार्मिक मंचो पर , राजनीतिक मंचो, सामाजिक स्तर पर , समय समय परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते है। स्वयं के मुखोटे की पहचान बताने के लिए हम ओजस्वी शब्द, वाक्पटुता, चातुर्यपूर्ण शैली, पाखण्ड शब्दो की रचना करते है।  और स्वयं की विद्वता को साबित करने के लिए न जाने कितने हथकण्डे अपनाते है। बात यह हुई कि अभी कुछ ही समय पहले सन्ध्या वेला के समय एक छोटा सा प्यारा सा चूहा घर मे घूम रहा था। मैंने उसे हाथ मे उठा लिया और बाहर छोड़ने के लिए गया। न चाहते हुए भी मुझे उसे घर की छत से पास के एक प्लाट में ऊपर से छोड़ना पड़ा। मेरे सामने ही वो गिरते ही मर गया। मेरा कोई लक्ष्य नही था कि वह मरे, बस विस्तार से न बताते हुए कुछ न चाहते हुए भी अनहोनी हो गई , दबाव में आकर मुझे उसे छोड़ना पड़ा गिरते ही मर गया। बहुत समय तक खुद को कोसता रहा। नही रहा गया तो दोस्तो से अपने द्वारा किये गए कुकृत्य , पाप को उनके सामने जाहिर किया।
मैं उनके जवाब से बिल्कुल भी सन्तुष्ट नही हो पाया क्योंकि कोई चूहे की मौत को भगवान को दोषारोपण करते है, तो कोई उनका भाग्य मानते है।
लेकिन मैं “जो पूरा मानसिक दिवालियापन हु” इस बात को कहा मानने वाला था। क्योंकि गलती मुझसे हुई है, मेरे हाथों, मेरी आँखों के सामने वह गरीब , बेगुनाह मरा है। जब इस बात को ओर मित्रो से पूछा तो उन्होंने बताया कि यह यो “एक बस छोटा सा चूहा ही तो था।” लेकिन मैं फिर कन्फ्यूज हो गया कि चूहे पर भी देवता बैठते है दुनिया का चक्कर लगाया था ऐसा बचपन कि कहानियों में सुना है जब नींद नही आती थी।
वह इतनी बड़ी घटना मेरे दोस्तों को छोटी लगी कि वह जानवर जिसकी धड़कन चल रही थी, जो खाता पिता है, ऑक्सीजन लेता है, उसमे खून है,दिमाग है, चलता है , वो छोटा कैसे हो सकता है क्या हम इंसान ये भूल जाते है कि पृथ्वी पर उपस्थित हर एक अणु, ऊर्जा, तत्व, वस्तु का अस्तित्व है चाहे छोटा हो या बड़ा। अगर हमारी नजरो में वो चूहा जो छोटा है उसके मरने को एक नॉर्मल माना जाता है। तो हमे याद रखना चाहिए कि हमारी भी अनन्त ब्रह्मांड में हमारी वही स्थिति है जब हम अपनी एक उंगली को धरती पर लगाकर उठाते है और बहुत सारे असँख्यक अणु , धूल के कण हमारी उंगली के चिपक जाते है। अब मैं बोलू की उन्ही अणुओं में धूल के कण में एक कण निकालो जिस समय हम उस छोटे से धूल कण को ढूंढ लेते है तो हमे समझ लेना चाहिए कि हमारी इस सृष्टि में क्या स्थिति है। यह धूल का छोटा सा जो हमे नंगी आंखों से दिखाई नही देता उसके लिए हमे बहुत बड़े लेंस की आवश्यकता होती है। यह धूल का कण हमारे अस्तित्व को दर्शाता है।
हमारा नजरिया ही हमे छोटा बड़ा बनाता है। विभेद , छोटा बड़ा, विशेष अवशेष ,भरम ब्रह्म, यह सब द्वंद हमारे मस्तिष्क की उपज है।
लेकिन यह सत्य है कि चूहा की मेरे हाथों से प्रत्यक्ष रूप से हत्या हुई है।

RamKrishan Visnoi
7- October – 2017
SRI Ganganagar SGNR
https://www.facebook.com/Ramkrishnbishnoi

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