भक्कू हमारे घर कभी कभी ही आती हे, अमूमन साल में ऐक या दो बार…चूँकि मैं उसी शहर में पड़ता हूँ जहाँ उसका घर हे तो मैं उसके यहाँ आता जाता रहता हूँ..!
दरअसल भक्कू, मुझसे दो साल बड़ी मेरी बहन मीना की तीन साल की बेटी का नाम हे..! उसका घर का नाम आराध्या हे मगर उसके जन्म के वक्त जब उसकी माँ की नानी से पूछा गया की नाम क्या रखा जाये तो उन्होंने भक्ति नाम सुझाया और वही रख लिया गया ! वेसे नाम तो मैने भी सोच रखे थे मगर अफ़सोस हमसे पूछा ही नही गया , खैर छोड़ो..!
भक्कू का घर इंदौर शहर में हे (शहर कहना जरुरी हे मीना के हिसाब से), अब कहानी…!
द्रश्य मेरे घर का हे और भाषा इन्दौरी..भक्कू कहती हे
” आप न मेको वो… वो कहानी सुनाओ ”
मुझे ख़ुशी हे की वो अब तुतलाती नही हे
“कोनसी…?
” वो शेर वाली ”
शेर हमारी काल्पनिक कहानियों का पसंदीदा किरदार हे हम शेर की कहानी सुनाक, बच्चो से शेर हो जाने की उम्मीद करते हें..
” जंगल में ऐक गुफा में ऐक शेर रहता था, छोटा शेर जिसके छोटे छोटे पैर थे…”, मैंने शुरू किया !
कहानी रफ़्तार पकड़ने ही वाली थी की पापा वहाँ पहुच गये, उन्होंने मेरी और देखा ओर tv के रिमोट की मांग की, मेने दोनों कंधे उचकाते हुये पता नही वाला पोज़ दिया…!
पापा ने tv चालू की और सीधे 201 दबा कर समाचार चला दिये…!
समाचार में किसी जगह पर लड़ाई झगड़े होने की खबर आ रही थी…!
मेने फिर कहानी शुरू की
” छोटा शेर भूखा…
“” आपको पता हे लड़ाई क्यों होती हे “, भक्कू ने बड़ी मासूमियत से पूछा
” नही पता.. आपको पता हे…?, मेने जवाब के साथ सवाल जोड़ दिया
” हाँ ”
“अच्छा तो बताओ हमे भी…
” हम जूता उल्टा रखते हें न तो लड़ाई होती हे…”, भक्कू ने उत्साह को मासूमियत में मिला कर कहा !
उसकी यह बात सुनकर मेरी हंसी छुट गयी मगर पापा पास ही थे इसलिये मैं खुल कर हंस नही पाया..! फिर मेने उससे पूछा
“”अच्छा आपको किसने बताया “”
” मम्मा ने बोला था ” उसने कहा..!
सच हे यह वाकया हम सब के साथ होता हे जब हम छोटे होते हे तो हमे बताया जाता हे की जूते चप्पल उल्टे नही रहने चाहिये वरना घर में लड़ाई होती हे
भक्कू के इस जवाब से मुझे अपना बचपन याद आ गया जब इस उल्टे जूते से लड़ाई वाले तर्क पर कई सवाल मेरे दिमाग में चलते रहते थे जेसे की…
क्या हर उल्टे जूते का अपना ऐक निश्चित एरिया होता हे जहाँ तक उसके प्रभाव से लड़ाई होने की संभावना हो…?
क्या जूते और चप्पल दोनों के प्रभाव से होने वाली लड़ाई में फर्क होता हे…?
क्या हम जूते को सीधा कर के शुरू हो चुकी लड़ाई रुकवा सकते हें…?
क्या जूते की हालत(condition) और आकार का लड़ाई पर कोई प्रभाव पड़ता हे…? मतलब की सम्भव हे की बच्चो के जूतों से सिर्फ थोड़ी बहुत बोलचाल हो…!
क्या हमारा जूता किसी और के घर में लड़ाई करवा सकता हे…?
यह सब और ऐसे कई और सवाल होते थे मेरे पास उस दौर में…मुमकिन हे की यह सब सच हो
तभी शायद विभाजन के समय देश छोड़कर जाने की जल्दी के चलते सेकड़ो की तादाद में जूते चप्पल उल्टे होकर ज़मीन के निचे दब गये होंगे जो आज लड़ाई का कारण बन रहे हें…!
● दीपक पाटीदार ●