चलो उत्सव मनाते हैं भूख का
गरीबी का, बेबसी का,मौत का।
जिसमें हम अदृश्य भात की दावत देंगे,
भात पर चर्चा करेंगे,
भात भात का जिंगल गाएंगे ,
भात भात के नारों से
विकास के परदों में छेद कर देंगे।
बेशर्मी का तांडव करेंगे,
निष्ठुरता के चरम तक जाएंगे,
आधार अनिवार्य रखेंगे,
आधार को भात परोसेंगे,
निराधार को बैरंग लौटा देंगे।
इसमें एक स्वांग भी रचेंगे,
जो हिदायतों का पुलिंदा होगा,
गरीबी से लेखन ,भूख से निर्देशन,
मलेरिया से अभिनय करवाएंगे,
और सन्देश देंगे मौत का।
अनुभव बाजपेयी चश्म