Site icon Youth Ki Awaaz

सपने फिर नए बुनता भी..!

लड़ने का जज्बा। उड़ने का हौसला । आकांक्षाओ से भरा आकाश । सच का आँचल । वो आशा कि किरण । वो जमीनी हकीकत का दर्पण । वो इंसानियत का दिल । वो प्रकाश का हुँकार । सिर्फ सच के आएने की पूँजी कि झलक झील जिसमे गैरो कि हिमायती आवाज केवल हम कि खमोशी वाली गुम सिलवटे । कौन हो तुम सच मे ? इंसान ! इंसान ! सच मे हो इंसान ? किधर है आईना ? देख जरा अपना अक्स । हर इंसान के अपने विचार विशेष होते है । लेखक दो तरह के होते है एक वो जो शब्दों को मायावी संसार का रूप देता है जो झूठ का झौका होता है, दूसरा वो जो कलम को अपना हथियार शब्दों को अपनी आवाज सच को अपनी स्याही बना लेता है । सही मायनों मे लेखक वो है जो ख्वाबो कि उड़न तशतरी मे दिन-रात सच का ताना बाना बुने । कभी झुके नही । कभी टूटे नही । कभी ठिठुरे नही । कभी भावनाओं भरे आंतरिक कमल को मुरझाये नही । लालच कि डगर न हो । दो मुँह कि अटखेलियाँ न हो । कभी विवश्ता विविध मे बिके नही । आकांक्षा से पूरक कलम है हमारी आवाज दस्तखत लिखते रहे रूके न कभी आस्था भरे सच के कदम हमारे ।

 


लक्ष्य भी है, मंज़र भी है,
चुभता मुश्किलों का खंज़र भी है !!
प्यास भी है, आस भी है,
ख्वाबो का उलझा एहसास भी है !!
रहता भी है, सहता भी है,
बनकर दरिया सा बहता भी है!!
पाता भी है, खोता भी है,
लिपट लिपट कर रोता भी है !!
थकता भी है, चलता भी है,
कागज़ सा दुखो में गलत भी है !!
गिरता भी है, संभलता भी है,
सपने फिर नए बुनता भी है !


– हंसराज मीणा

Exit mobile version