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मौलिकता

आज का समय ऐसा चल रहा है कि ना तो सामान्य इंसान मीडिया पर भरोसा कर सकता है। ना ही सरकार पर ना ही कोर्ट पर आखिर समान्य वयक्ति करे तो कटे क्या जाहा एक तरफ सरकार और सविधान मौलिकता किबाते करती है वोही दूसरी तरफ ये सिर्फ पुस्तको तथा बातो में ही दिखलाई पड़ता है। आखिर ऐसा हो क्यों रहा है।क्या कभी किसी ने इस बारे में कभी सोचा है। कुछ 1% लोगो को छोड़ कर ये किसी को नही सोचा। में ये कहानी बताना चाहूंगा जो कुछ समय पहले ही आज से 2-3 दिन पहले ही घट चुकी है।एक छोटी सी बच्ची 5 साल की उसके मा बाप अपने कलेजे के टूकड़े को अच्छी शिक्षा के लिए होस्टल में छोड़ आते है ताकि उसकी शिक्षा में कोई कमी न रहे। पर उस मा बाप को क्या पता कि ये उनके लिए बहुत नुकसान दिए हो जाएगा। उस छोटी सी बच्ची को कुछ अनपेरिस्थिति के कारण मलेरिया हो जाता है ये बात उस स्कूल प्रशासन को बहुत देर से पता चलती है अचानक तेबियत खराब होने के कारण उसे हॉस्पिटल में सरकारी हॉस्पिटल में ।जहाँ हमारी सरकार कहती है सबको स्वास्थ्य का अधिकार प्राप्त है  उसे वाह भर्ती किया जाता है परंतु लापरवाही देखिये वो बच्ची वहां पड़ी होती है उसे कोई भी नर्स इंजेक्श नही लगाती उसे वोही  वहार दिया जाता है। अंत तक उसका कोई इलाज न होने के कारण उसकी मित्यु हो जाती है ।इस 21वी शताब्दिय में जहाँ आधुनिक विज्ञान का बोल बाल है वोही दिखिए छोटे से बीमारी।के कारण उस बच्ची की मित्यु हो जाती है प्रशाशन भी शांत है मीडिया भी शांत हैं आखिर ये किस चीज़ की मौलिकता का गुणगान करते फिरते है हम किस चीज़ की।

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