मैं प्रिया, सारी दुनिया से अंजान, अपनी ही दुनिया में खुश थी मैं । आज जिंदगी में पहली बार अकेले किसी सफर में निकली हूँ, गाँव में ताऊजी की लड़की की शादी में शरीक होकर अब वापस अपने घर मुंबई के लिए निकल पड़ी हूँ, सफर करते – करते ना जाने कब वो सफर का हमसफ़र मेरा दिल ले गया और मेरी जिंदगी का हमसफ़र बनने लगा, मुझे पता ही नहीं चला, कोशिश तो काफी की थी मैंने, कहीं प्यार ना कर बैठू पर क्या करें, दिल के मारे गलती हो ही जाती है ।
सफर चाहे कोई भी हो मोड़ तो आता ही है और रास्ते भी बदल जाते है, कभी रास्ते ख़त्म हो जाते हैं तो कभी उन रास्तों पर चलने की हिम्मत नहीं होती ।
प्यार ऊपर वाले का दिया हुआ वो तोहफा है जो जिंदगी बदल देता है, बस उस प्यार को अपनाने की हिम्मत और साथ निभाने की ताकत होनी चाहिए, फिर चाहे ज़माने से लड़ना हो या खुद से ।
सब कुछ ठीक ही चल रहा था , माना थोड़ी बन्दिशें थी मेरे लिए , लेकिन मैं खुश थी, मुझे उसका साथ अच्छा लगता था, उसकी बातें , उससे मिलना , लेकिन मन था जो उसे कहीं दूर जाकर नकार देता , कहता तू प्यार कैसे कर सकती है , तेरी राह और मंजिल कहीं और है और तू ये किस राह पर चली जा रही है, कुछ तो ख्याल कर घरवालों का, क्या बीतेगी उन पर जब उन्हें ये पता चलेगा , बस यही सोचकर मैं कदम हर बार रोक लेती, रास्ते बदल देती ।
ऐसा नहीं कि उसने साथ नहीं दिया वो तो अंत तक साथ खड़ा था, या यूँ कहिये कि केवल वो ही खड़ा था, पर क्या करें मंजिल तो मेरी कहीं और ही तय हो रखी थी । मेरा साथ देने के लिए मेरा भाई जो मेरा सच्चा दोस्त, मेरा सच्चा शुभचिंतक, लेकिन वो भी क्या कर सकता था एक हद तक साथ देता, आगे की मंजिल तो मुझे ही तय करनी है ।
मन में कई उलझनें हैं, कई सवाल हैं किसका साथ चुने, किस की ख़ुशी में खुश रहूं, मैंने तो कभी नहीं चाहा था कि मैं प्यार करूँ, अब ये प्यार किसी के चाहने और ना चाहने से तो नहीं होता, ये तो बस हो जाता है, कोई दिल को इतना भा जाता है कि उसके खातिर कुछ भी कर गुजरने को जी चाहता है, पर रह – रह कर कुछ ख्याल ऐसे होते हैं जो कुछ कर गुजरने से रोकते हैं । एक तरफ परिवार है तो दूसरी तरफ मेरा हमसफर ।
दिल पर भला किसका ज़ोर चला है जो मेरा चलता, अब प्यार हो गया तो हो गया, मैं क्या करूँ, किसकी ख़ुशी चुनुँ, परिवार की या मेरी अपनी खुशी……