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भारतीय राजनीति या जंग का अखाड़ा

जहाँ लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू हो,औऱ उस देश के राजनेता विकास को भूलकर अपने निजी स्वार्थ के लिए लड़ते दिखाई पड़ते हो,जात – पात के नाम पर लोगो को आपस मे लड़ाकर अपनी सियासी रोटियां सकते हो उस देश का भला कैसे हो सकता है।

 

जी हाँ हम बात कर रहे है सोने की चिड़िया कहेजाने वाले भारत की,जो कभी विश्वगुरु कहा जाता था आज उस भारत देश की 40 प्रतिशत जनता भूखी सोकर अपनी रात गुजरती हो और राजनेता बाजूद इसके अपना हित देखने के लिए लोगो को जात – पात के नाम पर लड़ाते हो,ऐसी स्थिति में देश का भला कैसे हो सकता है।विकास के नाम पर क्या सभी रानीतिक दाल एक होकर भारत की तकदीर नही बदल सकते,

ये कहावत भारत जैसे लोकतांत्रिक देश पर सटीक बैठती है कि जिस घर के सदस्यों में झगड़ा रहता हो उस घर का टूटना निश्चिंत है,उस पर कोई भी हावी होकर अपना वर्चस्व कायम कर सकता है।इसकी बानगी अंग्रेजो की गुलामी के तहत देखने को भी मिली,लेकिन भारतीय नागरिक आज भी जागने के लिए तैयार नही है,इसका मुख्य कारण ये निकम्मे राजनेता जिनकी नियति लोगो को लड़ाकर अपनी सियासी रोटियां सेकनी औऱ इन मूर्खो पर राज करना है,जिस दिन यहाँ का युवा जागा उस डन भारत की तस्वीर ही नही तकदीर बदलनी शुरू हो जाएगी।

जागना होगा यूथ को औऱ इस भारतीय राजनीति की जंग के अखाड़े में तब्दील होने से रोकना होगा।

 

ये लेखक के निजी विचार है।

अनुज कुमार  “भूनी”

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