– विनोद कुमार
हमारे देश में हर तीन सेकेंड में किसी न किसी व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक होता है और हर तीन मिनट में ब्रेन स्ट्रोक के कारण किसी न किसी व्यक्ति की मौत होती है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईसीएमआर) के एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है।
नौएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल के न्यूरो एवं स्पाइन सर्जरी विभाग के सहायक निदेशक डॉ. राहुल गुप्ता ने विश्व स्ट्रोक दिवस की पूर्वसंध्या पर यह जानकारी देते हुए बताया कि हमारे देश में ब्रेन स्ट्रोक के प्रकोप के तेजी से बढ़ने के लिए लोगों में अरामतलबी की बढ़ रही आदत, धूम्रपान, जंक फुड एवं चिकनाई वाली चीजों का अधिक सेवन, उच्च रक्त चाप, मोटापा और मधुमेह मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
‘‘ब्रेन अटैक’’ के नाम से भी जाना जाने वाला ब्रेन स्ट्रोक भारत में कैंसर के बाद मौत का दूसरा प्रमुख कारण है। मस्तिष्क के किसी हिस्से में रक्त की आपूर्ति बाधित होने या गंभीर रूप से कम होने के कारण स्ट्रोक होता है।
ब्रेन स्ट्रोक एक मेडिकल इमरजेंसी है जिसमें तत्काल इलाज अत्यंत जरूरी है ताकि मस्तिष्क को होने वाले नुकसान एवं संभावित जटिलताओं को कम से कम किया जा सके। ब्रेन स्ट्रोक वाले मरीजों का पहले घंटे के भीतर अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी होता है। इलाज में देरी होने पर लाखों की संख्या में न्यूराॅन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और मस्तिष्क की कार्यप्रणालियां बाधित हो जाती है। मस्तिष्क के ऊतकों में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी होने पर, कुछ ही मिनटों में, मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं जिसके कारण मृत्यु या स्थायी विकलांगता हो सकती है।
डा. राहुल गुप्ता ने बताया कि मस्तिष्क की किसी धमनी में रुकावट आ जाने से इस्कीमिक स्ट्रोक होता है जबकि किसी रक्त नलिका से रक्त का रिसाव होने अथवा उसके फट जाने के कारण हेमोरेजिक स्ट्रोक होता है। कुछ लोगों को मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में कुछ समय के लिए रुकावट आ जाने के कारण ट्रांजिएंट इस्कीमिक अटैक (टीआईए) होता है।
डा. राहुल गुप्ता का सुझाव है कि ब्रेन हेमरेज की रोकथाम के लिये रक्त चाप पर नियंत्राण एवं निगरानी रखना तथा जीवन शैली में सुधार आवश्यक है। ब्रेन हैमरेज अक्सर सुबह के समय और खास तौर पर सर्दियों में होता है। ब्रेन हेमरेज के मरीजों को खूब पानी पीना चाहिए एवं समय पर दवाइयों का सेवन करना चाहिये। मामूली सिरदर्द की अनदेखी नहीं करनी चाहिये और किसी भी तरह का संदेह होने पर तत्काल न्यूरो सर्जन/न्यूरोलाजिस्ट से जांच करानी चाहिये।
ब्रेन स्ट्रोक का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज को इस्कीमिक या हेमोरेजिक स्ट्रोक है। ट्रांजिएंट इस्कीमिक स्ट्रोक (टीआईए) का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि टीआईए का कारण क्या है, लक्षण उभरने के बाद कितना समय बीत चुका है और मरीज की मेडिकल स्थितियां क्या है। अगर मरीज को रक्त थक्का बनने के कारण स्ट्रोक हुआ हो तो टिश्यू प्लाजमिनोजेन एक्टिवेटर (टीपीए) नामक थक्का घोलने वाली या थक्के को तोड़ने वाली दवा इंजेक्शन के जरिए दी जाती है। डाॅक्टर आपकी बांह की एक नस में टीपीए का इंजेक्शन देते हैं। यह इंजेक्शन स्ट्रोक के लक्षण उभरने के चार घंटे के भीतर जल्द से जल्द दिया जाना चाहिए। अगर मरीज देर से अस्पताल पहुंचता है अथवा वह टीपीए के लिए फिट नहीं है तो मरीज को कैथलैब में ले जाकर मेकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी की जाती है। मेकैनिकल थ्रोम्बेक्टोमी स्ट्रोक होने के 8 घंटे के भीतर की जानी चाहिए। इसके काफी अच्छे परिणाम होते हैं।