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पद्मावती विवाद: मेवाड़ राजघराने से भंसाली ने NOC लेना क्यों ज़रुरी नहीं समझा ?

Padmavati

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पद्मावती विवाद

बॉलीवुड में पिछले कुछ वर्षो से बायोपिक और सच्ची घटनाओ से प्रेरित फ़िल्मो का चलन जोरो पर है. इस तरह की फ़िल्मो के अपने ही कई फायदे है, निर्माताओं को बिना ज्यादा मेहनत किये एक अच्छी स्क्रिप्ट मिल जाती है. देश के इतिहास की बेहतरीन कहानियाँ और हस्तियों के बारे में देश और दुनिया के लोगो को जानकारी मिलती है और दर्शको को मनोरंजन के साथ ही फिल्म बनाने वालो को भी ढेर सारा पैसा कमाने का मौका मिल जाता है.

हालही में बहुचर्चित एवं विवादित पद्मावती भी राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की महारानी पद्मिनी के जीवन पर आधारित है. गौरतलब है कि चाहे मिल्खा सिंह के जीवन पर बनी फरहान अख्तर की भाग मिल्खा भाग हो या फिर आमिर खान की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म दंगल जो कि हरियाणा के कुस्ती पहलवान महावीर सिंह फोगट के जीवन से प्रेरित है, सभी फ़िल्मो को बनाने से पहले निर्माता-निर्देशकों ने कहानी से जुड़े एवं सम्बंधित लोगो से NOC (No Objection Certificate) ले कर ही फ़िल्म पर काम शुरू किया.

इतना ही नहीं, चाहे बॉक्सर मैरी कॉम की प्रेरणादायक कहानी को बयां करती प्रियंका चोपड़ा की फ़िल्म मैरी कॉम हो या एयरहोस्टेस नीरजा भनौट की आतंकवादियों से लोहा लेने एवं वीरता का बखान करती सोनाम कपूर स्टार्रर फ़िल्म नीरजा हो, इन सभी फ़िल्मो के निर्माता-निर्देशकों ने असल जीवन के किरदारों के साथ पहले एक रिश्ता कायम किया, फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लगाकर शूटिंग और प्रमोशन तक कहानी से जुड़े लोगो को शामिल रख कर आश्वस्त किया कि उनके या उनके परिजनों पर बन रही फ़िल्म से उनकी छवि ख़राब नहीं होगी और एक सकारात्मक सन्देश दर्शको तक पहुँचेगा.

वाकई में इस सभी फ़िल्मो ने दर्शको को मनोरजन से बढ़कर अपने देश पर गर्व करना सीखाया है. मैरी कॉम, मिल्खा सिंह, नीरजा भनौट जैसी हस्तियों को जो पहले शायद नहीं जानते थे, वे भी ना सिर्फ जानने लगे बल्कि उनका सम्मान भी करने लगे. फ़िल्म दंगल की ऐतिहासिक सफ़लता से गीता और बबिता का किरदार निभाने वाली अभिनेत्रियों से ज्यादा लोकप्रिय पहलवान महावीर सिंह का परिवार और उनकी बेटियाँ हो गयी.

पद्मिनी की कहानी भी अपने आप में अनोखी है, जिसका बखान राजस्थान में सदियों से किया जाता रहा है. लेकिन आश्चर्य की बात तो ये है कि पद्मावती जैसे विषय पर फ़िल्म बनाने से पहले भंसाली जैसे अनुभवी फ़िल्मकार ने बाकि निर्माता-निर्देशकों की तरह फ़िल्म से जुड़े महारानी पद्मिनी के वंशज मेवाड़ राजघराने से NOC लेना जरुरी नहीं समझा. NOC तो दूर भंसाली ने फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखने हेतु रिसर्च के लिए भी मेवाड़ राजघराने से संपर्क करने की कोशिश तक नहीं की.

यदि भंसाली ने सूझ-बुझ से काम लिया होता तो आज इस फ़िल्म को ले कर इतना विवाद नहीं होता. भंसाली से नाराज़ राजपूत समाज सहित अन्य हिन्दू संगठनो ने फ़िल्म का पुरजोर विरोध किया और फलस्वरूप एक के बाद एक विभिन्न राज्यों की सरकारी रोज़ फ़िल्म पर प्रतिबंद लगा रही है. यदि संजय लीला भंसाली ने फ़िल्म शुरू करने से पहले मेवाड़ राजघराने से संपर्क किया होता, फ़िल्म की कहानी लिखते समय उनसे चर्चा की होती, उनसे विचार विमर्श किया होता तो भंसाली को चित्तोड़ के इतिहास का ज्ञान हो जाता और फिर निश्चितरूप से वो ये सब ग़लतिया नहीं करते.

अगर फ़िल्म की कहानी को लेकर यदि भंसाली मेवाड़ राजघरने को आश्वस्त करने में सफल हो जाते, तो जो राजपूत समाज के लोग आज फ़िल्म का विरोध कर रहे है, वे ही इस फ़िल्म को सफल बनाने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देते. अफ़सोस, महासती पद्मिमि पर फ़िल्म बनी तो सही, लेकिन दर्शको तक नहीं पहुँच पायी. लेकिन इस सारे विवाद में उनकी ये महान गाथा जन-जन तक पहुँच गयी, और शायद अब लोगो को ये फ़िल्म देखनी की जरुरत ही नहीं है. पद्मावती के शौर्य, सौंदर्य एवं बलिदान की कहानी आज इस विवाद के कारण देश-विदेश में सब जान चुके है.

आने वाले वर्षो में भी बायोपिक का ट्रेंड जारी रहेगा, स्टार बैडमिंटन खिलाडी साइना नेहवाल पर बन रही फ़िल्म में श्रद्धा कपूर उनका किरदार निभाएगी, जिसके लिए श्रद्धा कपूर खुद साइना से ट्रेनिंग ले कर फ़िल्म की तैयारियों में जुटी हुयी है. संजय दत्त के जीवन पर बन रही रणबीर कपूर स्टारर फ़िल्म के लिए भी NOC ले कर ही काम किया गया. इससे पूर्व क्रिकेट खिलाडी जैसे MS Dhoni और अज़हरुद्दीन ने खुदकी बायोपिक के प्रोमोशंस में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया. ओर तो ओर हमेशा फ़िल्मो से दुरी बनाये रखने वाले सचिन तेंदुलकर ने भी अपने जीवन पर बनी फ़िल्म पर खुल कर चर्चा की. ऐसे में भंसाली भी एक कदम सुलह की तरफ बढ़ाते तो उनकी राह आसान हो सकती थी.

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