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पद्मावती के भेट चढ़ा पैराडाइज

पद्मावती के भेट चढ़ा पैराडाइज

आज सभी न्यूज़ चैनलों पर पद्मावती छाई हुई है।ख़ास तो यह है कि कल तक जिनको पद्मावती का नाम भी नही पता था आज उनकी भी भावनाए आहत हो गई है।फ़िल्म मे क्या दिखाया गया है ये उन्हे नही पता परन्तु भावनाओ का क्या है वो तो आहत हो ही जाती है।हो भी क्यों न कुछ दिन पहले पैराडाइज पेपर्स मे कुछ चोरो के नाम जो सामने आ गए है ।अब कुछ तो चाहिए था जो पैराडाइज की जगह ले ले।हुवा भी कुछ यूं ही ।

पद्मावती को उछाल दिया गया पूरा अख़बार न्यूज़ चैनलों पर यही कूद रहा है पद्मावती।सच तो ये है कि पैराडाइज पर चर्चा होना चाहिए था परन्तु नही ।खैर जो हुआ अब तो हो गया ।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है ।यहाँ विरोध करना बिल्कुल जायज़ है परंतु जो हो रहा वो विरोध नहीं है उसको बवाल कहते है हिंसा कहते है।

हमारे यहाँ सेंसर बोर्ड है वो देखता है कौन सी मूवी को पास करना है कैसे नही फिर ये बवाल क्यों।साहब अभी यो मूवी सेंसर बोर्ड के पास गई भी नहीं।क्या पता अगर सच मे कोई भावनाओं को आहत करने वाली मूवी हो और अगर ऐसा होता तो सेंसर बोर्ड खुद उचित कदम उठता रिलीज़ करने की अनुमति नही देता । इसके लिये सेन्सर बोर्ड़ पर भरोसा तो क्या होता जिनकी भावना आहत हुई है ।अगर सेंसर बोर्ड पास कर देता फिरभी इन्हे कोई दिकत होती तो विरोध करते ।परन्तु सिर्फ विरोध ये जो हो रहा है वो नही ।यानी हिंसा नही।किंतु इनको लोकतंत्र पर भरोसा ही नही या  कहो सेन्सर बोर्ड पर भरोसा नही।या फिर ये विरोध ये हिंसा ये भावनाओं का आहत होना पहले से ही प्लान था ।क्यों कि अगर प्लान नही था तो ये सेंसर बोर्ड के फैसले का इंतज़ार क्यों नही करते।

            अभिनव

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