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जाहनू बरुआ की ‘पोखी’ 

वास्तविक शिक्षा स्वयं को अनेक रूपों में अभिव्यक्त करती है। इस संदर्भ में असमिया फिल्मकार जाहनू बरुआ की ‘पोखी’  रेफरेन्स पॉइंट की तरह देखी जा सकती है।  पोखी वो यतीम सिन्ड्रेला की कहानी है जिसके अंत में सब खुशहाल हो जाता है! लेकिन यह वाकई शिक्षा का संदेश देने वाली ईमानदार कहानी है.. लालची महाजन दयानंद का  हृदय परिवर्तन..पहले धर्मपत्नी से मिली सीख एवं उसके ख़तरनाक अंधविश्वनास की वजह से नफ़रत की पात्र बनी पोखी भी निर्मोही दयानंद को स्नेह व प्यार का महत्व बता सकी। पोखी बहुत छोटी ही थी जब उसके मां-बाप गुज़र गए..यतीम को मामा-मामी ने सहारा दिया। पोखी को गरीबी एवम कष्टकर परिस्थितियों में जीना था। मामा-मामी के निर्धन व वंचित हालात में उसका बचपना गुज़र रहा था। दो वक्त के रोज़ी के लिए मामा अक्सर घर से बाहर ही रहते…अकेली मामी को घर के छोटे-बड़े काम देखने थे। हालात ने पोखी से उसका स्कूल छीन लिया..स्कूल से उसे हटा दिया गया कि वो घर का काम सीखेगी। ज़हीन पोखी के नजरिए से स्कूल नही जाने देना एक गलत फ़ैसला था,क्योंकि उसे शिक्षा से वंचित रखा जा रहा था। स्कूल से दूर पोखी का ज्यादातर वक्त गांव की नदी तट पर गुजरता,मछलियों के इंतजार में या फ़िर नन्ही झपकियो में कटता। ऐसे ही किसी एक रोज़ गुलेल से मूर्छित पक्षी पास आ गिरा..पोखी उसे घर ले गई। मरहम पट्टी की। घायल पक्षी के ठीक होने तक उसकी खूब देखरेख करती रही..उसे इस बेजुबान प्राणी में कहीं अपना ही दुख महसूस हुआ। मानव रचित निर्मोही दुनिया में बेजुबान पक्षी की आकांक्षाओं को सिर्फ़ पोखी ने समझा क्योंकि वो भी पक्षी की तरह बेजुबान होकर दुख झेल रही थी।

मुख्य बिंदु किशोरी पोखी के इर्द -गिर्द घूम रही लेकिन व्यवहार से चिडचिडे दूकानदार  दयानंद का किरदार भी काफी महत्व रखता है। गांव का अकेला दूकानदार होने की वजह से वो स्वभाव से थोड़ा लालची है। गांव के भोले-भाले लोगों की ज़रूरतो का लाभ उठाना खूब जानता था। ग्रामीणों को सूद पे रूपया उधार उपलब्ध कराने वाले दयानंद साहूकार का धर्म निभा रहे थे.वो यही जताता कि लोगों की मजबूरी को समझते हुए उन्हें वक्त पे रूपया उपलब्ध कराता है। उधार पर लगने वाले सूद को वो अक्सर बताना भूल जाता था। गांव के लोग अपना जेवर व ज़मीन दयानंद के पास  गिरवी रखते थे।कम ही लोग थे जिन्हें ‘कोका’ (दयानंद )की ज़रूरत नही पड़ती थी। गांव के सभी लोग दयानंद को इसी नाम से पुकारा करते थे। चिडचिडा दयानंद  गांव के युवाओं को आवारा समझ कर अपशब्दों से बुलाया करता,उन्हें हीन पशुओं के निंदात्मक नाम दे रखे थे। यह लोग जब भी उसके दूकान के पास से गुजरते,दयानंद उन्हें बुरा -भला कहने में कोई कसर बाकी नही रखता था। दयानंद की पत्नी तोरादुई गांव की एकमात्र मैट्रिक पास स्त्री थी। किसी ज़माने में एक विद्यालय में पढाती थी। व्यवहार में वो पति के एकदम विपरीत गुणों वाली महिला थी। गांव भर में दयानंद से लोग जीतना अधिक नफ़रत रखते थे..पत्नी विपरीत  अनुपात में गांव की चहेती बनी हुई थी। दयानंद की पत्नी को सारा गांव दादी मां (आईता ) कहकर सम्बोधित करता था..सारे गांव में इसी नाम से मशहूर थी। अपने पति के क्षुब्ध एवम लालची व्यवहार में परिवर्तन के लिए सदा प्रयासरत रहती,क्योंकि कहीं ना कहीं मानती रही कि उसका पति दिल का उतना  बुरा नहीं..पत्नी के लिए दिल में खूब स्नेह वाला है..एक दिन वो खुद भी स्वयं को पहचान कर हमेशा के लिए बदल जाएगा। वो दादी मां ही थी जिसे दयानंद के विपरीत हमेशा ख़याल रहता कि पोखी के घर में किसी चीज़ की कमी ना हो। रसोई कभी खाली ना हो। रोज़ाना की ज़रूरत के हिसाब से वहां राशन उपलब्ध हों..भले ही लिए उसे सामान उधार या गिरवी क्यों ना लाना पड़े।

पोखी के मामा को आखिरकार पास के गांव में रोज़गार मिला..पत्नी संग अपना गांव छोड़ने का कठिन निर्णय लेता है.अब पोखी का क्या होगा ? पोखी को वो लोग दादी मां के जिम्मे रखने का रास्ता निकाल लेते हैं. आई (दादीमां) उन्हें पोखी को फ़िर से स्कूल भेजने का आश्वसन देकर अपने पास रख लेती है.पोखी के मामा उनके जिम्मे पोखी की मां-बाप की सम्पत्ति भी दे जाता है। लेकिन लालची दयानंद ने उसे तुरंत अपने कब्जे में ले लिया। हालांकि चाभी पोखी के जिम्मे दे दी ताकि जब कभी ज़रूरत आए वो घर का उपयोग ले सके. पोखी फ़िर से स्कूल जाने लगी..वक्त गुज़र रहा था जिसमें वो धीरे धीरे एक ओर दादी मां के श्रेष्ठ गुणों से मिल रही थी, वही दूसरी ओर उसके झगड़ालू व लालची पति दयानंद को भी वक्त के साथ समझने लगी थी। दादी मां एवं पोखी के सम्मुख कोका(दयानंद )को बदलने का दुरूह कार्य था। इस सबके बीच लोगों की पंच के समक्ष शिकायत आई कि दयानंद ने उनकी संपत्ति की बेईमानी कर रखी है। उधार पे रुपए के बदले उसने गांव वालों की ज़मीने हड़प रखी थी।

नीलाम्बर ने विशेष रुप से पंच से कहा कि उधार देते समय दयानंद ने उनसे रुपए पे कोई भी सूद की बात नहीं की..जबकि अब 75फीसद सूद मांग रहा। नीलाम्बर की पीड़ा सुनकर पंच ने उसके पक्ष में फ़ैसला सुनाया,ज़मीन को चारों तरफ़ बांस की बाडी से घेर दिया गया। क्रोध की भावना में आधी रात में ज़मीन पर पड़ी बाडी को जा कर काट गिराया। लेकिन बात बढ़नी थी..वही हुआ। पूरा गांव दयानंद के विरुद्ध खड़ा हो गया। इस ग़म में उनकी पत्नी चल बसी। पोखी के नजरिए से यह बहुत बड़ा झटका था। उसका सारा सहारा ही छीन गया। जिंदगी की सबसे बड़ी साथी उसे छोड़ जा चुकी थी। मासूम पोखी का दिल टूट गया..परंतु यही पे अंत नहीं। दयानंद ने घर पे मुसीबतो के लिए पोखी को जिम्मेदार ठहरा कर उसे कभी ना भरने वाला ज़ख्म दिया। पोखी को अपशगुन का पर्याय करार दिया गया। दयानंद उसे अपने आस-पास फटकने भी नहीं देता था। पोखी इस सबको सह नहीं सकी..अपने घर वापस चले जाना ही बेहतर समझा। रात के अंधेरे में वो कोका (दयानंद ) का घर छोड़ के चली गई..पता चलने पे कि पोखी रात निकल गई..दयानंद हडबडाहट में उसके पीछे भागा। इसलिए भागा नहीं कि मासूम पोखी की उसे चिंता खाए जा रही थी,बल्कि इसलिए कि गांव में उसकी बदनामी होगी। लोग कहेंगे कि लड़की को इतना सताया कि घर छोड़ कर चली गई। घर में इतना कुछ घटित हो जाने बाद भी दयानंद ने अपना स्वार्थ नहीं त्यागा।

पंचायत में कोका(दयानंद) का आवभगत उम्मीद के मुताबिक़ बेइज्जती वाला रहा। नीलाम्बर ने पहले ही उसके खिलाफ अर्जी दे रखी थी,सारे गांव वाले उसके खिलाफ़ खड़े हो गए। समूचे गांव में उसकी ख्याति ‘सूदखोर महाजन’  के रुप में हो चुकी थी। सबका यही मत था कि उसे  लोगों की ज़मीने एवं जेवरात लौटाने होंगे,जिसपर  बेईमानी से कब्जा कर रखा है। उसे समूचे गांव वाले से माफी मांगने को कहा गया.. वो माफ़ी मांगे अपने कृत्यों के लिए। बहुत लोगों ने यह तक कह दिया कि दयानंद जैसे नीच आदमी गांव से निकाल देना ही उचित होगा। मुश्किल की घड़ी में पोखी ने उसका सम्मान रखा। पोखी ही वो एकमात्र लड़की थी जिसने कोका के पक्ष में बातें रखी..पंच को एक भावपूर्ण सम्बोधन ने उसने गांव वालों से कहा कि वो  इतना कठोर ना हो। अपनी पत्नी की मौत का ग़म सहन कर रहे वृद्ध व्यक्ति के प्रति लोगों को इतना सख्त नहीं होना चाहिए,दादी मां का अभी श्राद्ध भी नहीं हुआ..उसकी पवित्र आत्मा की चीता की आग ठंडी भी नहीं पड़ी।इसलिए इस वृद्ध पर थोड़ा रहम करें.जबतक कि यह किशोरी अपनी बात पूरी करती आधे से ज़्यादा लोगों का क्रोध ठंडा पड़ चुका था।

पोखी की बातों ने निर्मोही लोगों का हृदय परिवर्तन कर दिया। अपने खातिर पोखी की महान प्रेम भावना देखकर कोका (दयानंद) का हृदय परिवर्तन हो गया। दयानंद के आंखो पर से पर्दा हटा कि पोखी एक अपशगुनी लड़की थी। वही लड़की दयानंद की सबसे बड़ी खैरख्वाह निकली जिसे वो जी का जंजाल और ना जाने क्या -क्या मान बैठा था…देर से ही सही लेकिन चुपचाप पोखी ने दादी मां के अधूरे संकल्प को पूरा किया। लालची दयानंद की शिक्षा पूरी हुई…वो बदल चुका था । पोखी के निश्छल प्रेम ने निर्मोही को मोह वाला बना दिया..प्रेम में बदलाव करने की महान शक्ति हुआ करती है। जाहनू बरुआ की पोखी ने साबित किया कि सरल बातों को सुंदरतम तरीके से व्यक्त किया जा सकता है।

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