विक्रम पहलवान ने जीता जिला केसरी टाइटल।
इंसान वही हैं जिसमे विषम परिस्थितियों में भी अपने संघर्ष और हौसले को बनाये रखने का भरपूर माद्दा हो। जिन लोगों ने अपनी खुद की मेहनत और बलबूते पर कठिन से कठिन हालातों का सामना किया और मंजिलों का सफर तय करते गए उन्ही लोगों ने दुनिया को भी एक नई सीख और प्रेरणा दी हैं। कुछ ऐसी ही कहानी हैं विक्रम पहलवान फिरोजाबाद की। विक्रम आज अपने क्षेत्र के नामी गिरामी पहलवान हैं। उनकी कुश्तियां देखने दूर दराज से लोग आते हैं। उनकी हर जीत पर खुशियां मनाते हैं , और झूम कर तालियाँ पीटते हैं। अपने ही घर के सामने के उनके अपने खेतों में एक अपना छोटा सा पुश्तैनी अखाडा हैं । आज भी अधिकतर उसी अखाड़े में मेहनत करते हुए विक्रम पहलवान ने जो हासिल किया उससे हमें भी सीख लेनी चाहिए। न कोई नामी गिरामी गुरु , न कोई बड़ा सेठ परिवार या कहीं से कोई छात्रवृति या फिर प्रमोशन। न ही कोई बड़ा जिम या अखाडा। सब कुछ नितांत देशी और साधारण। केवल अपनी लगन और कठिन परिश्रम के सहारे अपनी नाव खेने में लगे हैं विक्रम पहलवान। भले ही वे यदा कदा दूर दराज के अखाड़ों में जोर करने चले जाते हों , पर इसी खेत की मिटटी में पले बढे , परवान चढ़े विक्रम पहलवान इस बात का पक्का सबूत हैं की मेहनत और लगन से असाध्य लक्ष्यों को भी पूरा किया जा सकता हैं। आज विक्रम से लड़ने और उन्हें मात देने के लिए पहलवान जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। इसका परिणाम ये हैं की क्षेत्र में कुश्ती की परंपरा भी आगे बढ़ रही हैं। अक्टूबर एक तारीख को रामलीला ग्राउंड फिरोजाबाद में जिला केसरी दंगल में हुआ। जिसमे कपावली के अनूप पहलवान अपने टाइटल को बरकरार रखने व् विक्रम पहलवान को हराने के लिए बड़ी तैयारी के साथ आये। लेकिन विक्रम पहलवान के आगे उनकी एक न चली। विक्रम पहलवान के जोर के आगे पस्त पड़े पहलवान को दंगल के चारों कोनो पे भाग – भाग कर अपनी जान बचानी पड़ी। हालाँकि उन्होंने बीच – बीच में एक आध अच्छे अटैक भी किये। इससे साबित होता हैं की आज विक्रम पहलवान एक अच्छे पहलवान हैं। मैं देश भर की दंगल कमेटियों से यही विनम्र प्रार्थना करना चाहूंगा की आप कुश्ती को बचाने और प्रमोट करने काम कर रहे हैं , जो एक महती सम्माननीय कार्य हैं। आप जान लें दस नूरा कुश्तियां कराने से बेहतर हैं एक कांटा कुश्ती। और विक्रम जैसे पहलवान आज बढ़िया कांटा कुश्तियां दिखा रहे हैं। लेकिन इसका एक नतीजा ये भी निकला की उनसे लड़ने को क्षेत्र में कम ही पहलवान आगे आ रहे हैं। उनकी कुश्तियां अपने क्षेत्र में भी होनी दूभर हो गई हैं। इसलिए उन्हें पूरे देश में कुश्ती लड़ने का कम से कम एक मौका तो अवश्य दिया ही जाना चाहिए। मैं स्वयं दो बार विक्रम पहलवान को महाराष्ट्र कुश्ती लड़ाने ले गया हूँ। और महाराष्ट्र के लोग उनकी शानदार कुश्ती को आज भी याद करते हैं। साथ ही देश के समस्त खेल प्रेमियों व् सरकार से भी अनुरोध हैं की ऐसे खिलाडियों की तरफ अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए।