ट्विटर और फेसबुक के ज़माने से पहले जब किसी हिन्दू को मुसलमान या मुसलमान को हिन्दू के प्रति भड़ास निकालनी होती थी तब चाय की चुस्कियों में या फिर दोस्तों की मजलिस के बीच तंज कसे जाते थे। अब जब देश डिजीटल हो रहा है ऐसे में हिन्दू और मुसलमान खासकर ट्विटर और फेसबुक पर जमकर एक दूसरे के प्रति भड़ास निकाल रहे हैं। सोशल साइट्स पर ऐसे लोगों की काफी तादात हो चुकी है जो वीडियो के ज़रिए धर्म पर टिप्पणी करते नज़र आते हैं। हिन्दू और मुसलमानों के बीच की वैचारिक मतभेद अब सिर्फ दो मज़हब के बीच की दूरी नहीं बल्कि दो विचारधाराओं की लड़ाई में तब्दील हो चुकी है। मुसलमानों को लेकर कई ऐसी बाते हैं जो आज भी ग्रामीण इलाकों, शहरों और महानगरों में प्रचलित हैं।
मैं जिस परिवेश में पला बढ़ा वहां भी मुसलमानों को लेकर अलग-अलग तरह की बाते की जाती थी और आज भी हालात बदले नहीं है। जब मैं बड़ा हो रहा था तब पड़ोस की औरतें कहा करती थीं कि मुसलमान के घर चाय मत पीना वे लोग चाय में थूक मिला देते हैं। उस वक्त ये बातें सुनने में अटपटी ज़रूर लगती थी मगर आज भी दोस्तों और रिश्तेदारों से ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं।
अजीब लगे भी क्यों न, जिस भारत देश में हमें अतिथि देवो भव: का पाठ पढ़ाया जाता है उसी समाज में अतिथियों के साथ ऐसा सुलूक आश्चर्यजनक है। चाय में थूक मिलाने वाली बात को लेकर मैनें यदि 50 लोगों से बात की होगी तो 49 लोगों का यहीं कहना था कि मुसलमान के यहां चाय मत पीना वे थूक मिला देते हैं। मुसलमानों को लेकर ऐसी बातें सिर्फ चाय के संदर्भ में ही नहीं होती बल्कि कई हिन्दुवादी विचारधारा के लोगों की माने तो वहां पानी भी नहीं पीनी चाहिए। ये किस्से यहीं आकर थम नहीं जाते। चाय-पानी के बाद बात चिकन तक भी आ जाती है।
दोस्तों और पड़ोसियों के बीच यहीं चीजें सुनकर मैं बड़ा हुआ हूं कि मुसलमानों के यहां भूल कर भी चिकन मत खाना। वे गाय का मांस मिला देते हैं। ये कहा जाता था कि हम गाय की पूजा करते हैं तो वे गौ हत्या करते हैं।
इस विषय पर अपनी बात रखने से पहले मैनें कई बार सोचा कि जो चीज़ें मैं लिखने जा रहा हूं वो कितना उचित है। मैनें सोचा कहीं ऐसा तो नहीं कि मुसलमानों को लेकर इस तरह की बातें सिर्फ मैनें ही सुनी है। मैनें अपने मित्र अंकित सिन्हा से इस विषय पर बात की। उसने सिर्फ चाय में थूक मिलाने, पानी न पीने और चीकन में गाय का मांस मिलाने तक ही बातें नहीं की। उसने मुझसे कहा कि जब हम उनके यहां ईद में सेवइयां खा सकते हैं तो वे हमारे यहां जब कोई पूजा होता है तब प्रसाद क्यों नहीं ग्रहण करते।
बदलते वक्त के साथ हमने तकनीक की दिशा में काफी उन्नति तो कर ली लेकिन बगैर तथ्यों के मुसलमानों को लेकर चाय में थूक मिलाने जैसी बातें करना हमारी संकीर्ण सोच को दर्शाता है। मुसलमानों के संदर्भ में मेरे आसपास के हिन्दू धर्म के लोग सिर्फ चाय तक ही सीमित नहीं है। अधिकांश लोगों के साथ मैंने ऐसा पाया है कि जब वे फैमिली या दोस्तों के साथ कहीं बाहर सैर करने निकलते हैं और किसी मुसलमान का ढाबा दिख जाता है तो ये कहकर वहां भोजन नहीं करते कि ये लोग चिकन में गाय का मांस मिला देते हैं।
जब भी मैं इन चीज़ों के बारे में सोचता हूं तब मेरे ज़हन में कई सवाल उठते हैं। लोगों को यदि मुसलमान के यहां चाय पीने से ऐतराज़ है, उनके यहां भोजन करने से दिक्कत होती है फिर तो उन्हें उस रिक्शे की भी सवारी नहीं करनी चाहिए जिसका चालक एक गरीब मुसलमान हो। या फिर देश के अधिकांश इलाकों में आज भी दर्जी का काम मुसलमान ही किया करते हैं। फिर पर्व और त्योहारों में हम नए कपड़े सिलवाने उनके पास क्यों जाते हैं। वे कपड़े में भी तो थूक मिला सकते हैं।
मुसलमान सब्ज़ी भी बेचा करते हैं, फिर हम उनके यहां से सब्ज़ी क्यों खरीदते हैं। वे सब्ज़ियों में भी तो थूक मिला कर बेच सकते हैं। ऐसी विचारधारा न सिर्फ हमारी सोच को संकीर्ण बनाती बल्कि समाज को भी खोखला कर देती है। जिस भारत देश में हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारे का संदेश दिया जाता है उसी मुल्क में मुसलमानों के प्रति ऐसी मानसिकता इंसानियत को शर्मसार करती है।