माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इंडिपेंडेंट थॉट (Independent Thought) नामक एक NGO द्वारा दायर की गई याचिका के मद्देनज़र अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी भी व्यक्ति द्वारा, नाबालिग पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने को रेप माना जाएगा। इस NGO ने अपनी याचिका में आइपीसी की धारा-375 (2) को चुनौती दी थी, जिसके अनुसार अब तक 15 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार नहीं माना जाता था। याचिका में कहा गया था कि, “जब भारत में विवाह की न्यूनतम आयु और सेक्स के लिए सहमति की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है, तो फिर इस अपवाद को बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं बनता। इसे निरस्त कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का सरासर उल्लंघन है।”
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका में शामिल पहलुओं को सही मानते हुए अपने फैसले में आइपीसी की धारा- 375 (2) को असंवैधानिक करार दिया है। अब यदि कोई नाबालिग पत्नी शिकायत करती है तो पति पर रेप का मुकदमा चलेगा। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह रोकने के कानून का भी ज़िक्र किया।
ज्ञात हो कि हमारे देश में बाल विवाह कानून के मुताबिक शादी के लिए लड़कियों की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों की 21 वर्ष होना अनिवार्य है। इसके बावजदू हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते हैं कि अभी भी भारत में हर साल लाखों बाल विवाह हो रहे हैं। इस बाबत कोर्ट ने माना कि विवाह हो गया है, मात्र इस आधार पर किसी को अपनी नाबालिग पत्नी से संबंध बनाने की छूट नहीं दी जा सकती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आइपीसी की इस धारा को संशोधित करने का आदेश देते हुए कहा कि इस संबंध में कानून बनाते समय वह पॉक्सो के साथ रेप कानून पर भी विचार करें। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए अभी इस मामले में अपने फैसले को सुरक्षित रखा है।
हम सभी यह जानते हैं कि धर्म, परंपरा और अंधविश्वास की जड़ें हमारे देश में इतनी गहराई से जमी हैं कि कई बार पुलिस, प्रशासन और कानून भी उनके आगे घुटने टेकने पर मजबूर हो जाता है। यूएन पॉपुलेशन फंड की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया के उन 36 देशों में शामिल है जहां अब तक विवाह के बाद जबरन बनाए गए शारिरिक संबंध को बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जाता। भारत में 15 से 49 वर्ष की करीब दो-तिहाई महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें उनके पतियों द्वारा आए दिन पीटा जाता है या फिर उन्हें जबरन शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है।
इस तरह से करीब 10-14% महिलाएं अपने पतियों द्वारा रेप की शिकार होती हैं। अगर क्लीनिकल सैंपल्स की मानें तो यह संख्या दो-तिहाई से बढ़ कर आधी हो जाती है। महिलाओं के मन-मस्तिष्क पर इस क्रूरता का क्या और कितना असर पड़ता है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आत्महत्या करने वाली महिलाओं में से 25% महिलाएं वैवाहिक बलात्कार की भुक्तभोगी होती हैं। रिपोर्ट में यह माना गया है कि अगर कोई महिला इस दुष्चक्र से निकलने या भागने का प्रयास करती है, तो उसे दुगुनी प्रताड़ना सहनी पड़ती है।
हमारे देश के कानून की यह एक बड़ी विडंबना है कि इसमें आइपीसी की धारा-376 के तहत किसी महिला की ‘ना’ का सम्मान करते हुए किसी पुरुष (जो महिला का पति नहीं है) के द्वारा उसके साथ जबरन बनाए गए शारीरिक संबंध के लिए 7-10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। लेकिन जब कोई पुरुष एक महिला के गले में मंगलसूत्र डाल कर सिंदूर से उसकी मांग भर देता है तो हमारे देश का कानून उसे उस महिला का रेप करने की छूट दे देता है, क्यूंकि तब वह रेपिस्ट उस महिला का ‘पति परमेश्वर’ जो हो जाता है।
ऐसे में एक महिला किससे और क्या फरियाद करे? जहां महिलाओं को अपने अंडरगारमेंट्स और सेनेटरी पैड तक के बारे में खुलकर बात करने की इजाज़त नहीं है, वहां ‘पति द्वारा उसका बलात्कार किया जाता है’ कहने पर तो उसकी जुबान ही ना काट ली जाएगी। उसे चरित्रहीनता का सर्टिफिकेट देकर घर से ना निकाल दिया जाएगा। शादी हो जाने के बाद पति अपनी पत्नी का जब चाहे और जितनी बार चाहे, रेप कर सकता है। ऐसे में कम से कम नाबालिग वधुओं के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट का यह कथन कि शारीरिक संबंध के लिए उम्र की सीमा नहीं घटायी जा सकती है, निश्चित तौर से सराहनीय है। इससे पहले केंद्र सरकार ने बलात्कार के कानून में इस अपवाद को बनाए रखने के पक्ष में यह दलील दी थी कि ये शादी की संस्था को बचाए रखने के लिए बेहद ज़रूरी है।
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश की बेटियों को दिया जाने वाला यह तोहफा निश्चित रूप से बेहद अनमोल है। उम्मीद है कि इस कानून के लागू होने से आने वाले समय में कई मासूम जिंदगियों को बाल-विवाह के दुष्चक्र में फंसकर तबाह होने से बचाया जा सकेगा।
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