पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में यदि आप देश के किसी भी हिस्से से प्रवेश कर रहे होते हैं तो कुछ ऐसी चीज़ें हैं, जिन्हें देखकर बड़ी आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि सिटी ऑफ ज्वॉय में आपका आगमन हो चुका है। बसों पर बंगाली में जगहों का नाम लिखा होना, हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे, यहां की ट्राम और सबसे दिलचस्प कोलकाता की पीले रंग की टैक्सी। कोलकाता की पीले रंग की एंबेसेडर टैक्सी दशकों से इस महानगर की पहचान रही है। वो दिन दूर नहीं है जब ढ़ूंढ़ने पर भी बड़ी मुश्किल से कोलकाता में चुनिंदा टैक्सी दिखाई पड़ेंगी।
इसकी पहली वजह है साल 2013 में कार का निर्माण बंद हो जाना। गौरतलब है कि एंबेसेडर ब्रांड को फ्रेंच कार कंपनी पूज़ो (Pegeot) ने खरीद लिया है। फ्रैंच कंपनी पूज़ो और सीके बिड़ला ग्रुप के मालिकाना हक वाली कंपनी हिन्दुस्तान मोटर्स के बीच यह सौदा करीब 80 करोड़ रूपये में हुआ। ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट द्वारा 15 साल पुरानी वाहनों पर रोक लगा देना इसकी दूसरी बड़ी वजह है। इन सबके बीच मौजूदा दौर में तीसरी परेशानी टैक्सी ड्राइवर्स को हो रही है। बाज़ारों में एसी कैब्स के आ जाने से पहले के मुकाबले अब लोग पीली टैक्सी की सवारी करना ज्यादा प्रेफर नहीं करते।
टैक्सी ड्राइवर्स की परेशानियों का जाएजा लेने हमने हाल ही में कोलकाता भ्रमण के दौरान पीली टैक्सी की सवारी की। सफर के दौरान हमनें रूस्तम (टैक्सी ड्राइवर) से पूछा कि बताईए क्या सब कुछ पहले की तरह सही चल रहा है? टैक्सी चलाकर क्या आपके परिवार का भरन पोषण हो जाता है। रूस्तम बताते हैं, “आज से छ:-सात साल पहले मैं ही नहीं कोलकाता का लगभग हर टैक्सी ड्राइवर अपने पेशे से खुश रहा करता था, क्योंकि उस वक्त एसी कैब्स की संख्या कम हुआ करती थी और इंटरनेट के जरिए कैब बुकिंक का प्रचलन नहीं था।”
रुस्तम आगे बताते हैं, “आज हालात हमारे पक्ष में बिल्कुल भी नहीं हैं। रेलवे स्टेशन, बस अड्डे या फिर दफ्तरों के बाहर हम ड्राइवर्स खड़े ही रह जाते हैं और लोग इंटरनेट से कैब बुक कर लेते हैं। मैं पिछले 40 सालों से टैक्सी चला रहा हूं। वर्तमान में जिन हालातों का सामना हम ड्राइवर्स कर रहे हैं, इससे एक बात तो साफ है कि परिवार चलाने के लिए टैक्सी चलाकर कमाए गए पैसे नाकाफी हैं।”
रुस्तम बताते हैं, “हमने कई बार दीदी (मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) को लिखित में अर्जी दी है कि जिस तरह से तेल का रेट बढ़ता है, वैसे ही हमारा किराया भी बढ़ा दीजिए। लेकिन कभी भी हमारी बात नहीं सुनी गई। जो लोग 20 से 50 हजार तक की सैलरी कमाते हैं वे भी उसी बाज़ार से सामान खरीदते हैं, जहां हम जाते हैं। फर्क इतना ही है कि वे चीजें खरीदकर घर आते हैं और 100-200 रूपये कमाने वाले हम जैसे लोग उसी बाज़ार से मायूस होकर लौटते हैं।”
ऐसे में रूस्तम जैसे तमाम टैक्सी ड्राइवर्स की लाचारी, 15 साल पुरानी गाड़ियों पर रोक लगाना और इंटरनेट के माध्यम से कैब बुक करने जैसी तकनीक के बीच आने वाले वक्त में पीली एंबेसेडर टैक्सी का लुप्त होना शायद तय है।
प्रिंस, Youth Ki Awaaz Hindi सितंबर-अक्टूबर, 2017 ट्रेनिंग प्रोग्राम का हिस्सा हैं।
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