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राजनीतिक दल का इतिहास पढ़ाने से ज़रूरी है बच्चों को सेक्शुअल टच पढ़ाना

डियर,
चार लोग,

मैं यह खत आप ‘चार लोगों’ को लिख रहा हूं। चार लोग मतलब हमारा समाज क्योंकि समाज एक बहुत बड़ी भीड़ है और भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती। तो आप चार लोगों की न कभी कोई पहचान उजागर हुई नहीं कभी होगी। आशा करता हूं, आप चार लोग कुशल ‘मंगल’ होकर दूसरों की ज़िंदगी में ‘शनि’ बनकर आराम से बैठे होंगे।

यहां पर सब कुछ बढ़िया है, बस कभी कभार आंखे आपको याद करके शर्म से भीग जाती है। जब मेरी किसी हरकतों पर घर वाले आपको याद करके कह देते हैं, ”तू ये करेगा तो, ‘चार लोग’ क्या कहेंगे।” चलो ये सब तो यहां वहां की बात हुई, अब मैं उस मुद्दे पर आता हूं  जिसके लिए यह खत आपको लिख रहा हूं।

फिल्मों और नाटकों में अक्सर देखा है, प्रेग्नेन्सी की खबर लड़की अपने पति और अपने घरवालों को बड़े ही क्रिएटिव अंदाज़ में देती है। कहीं छोटा जूता, पति के जूतों की जगह रख देती है तो कहीं अचार और उल्टी के ढेरों बहाने। इसी के दूसरी तरफ यही किस्सा जब शादी से पहले होता है तो इसकी खबर सुन के अच्छे अच्छों के तोते उड़ जाते हैं। लगता है, हे! प्रभु ‘क्या’ से क्या हो गया। अबॉर्शन के साथ न जाने कैसे ख्याल मन में आते हैं। जीवन के उतार चढ़ाव में यहां तक सब नॉर्मल है। इसलिए आसानी से ये सब चीज़े किसी कहानी, फिल्म, वेब सीरीज़ की पटकथा में थोड़ी सी जगह बना लेती हैं।

इसी से जुड़ा एक मुद्दा है, जो किसी वेब सीरीज़ या फिल्मों की बात छोड़िये अखबारों की सुर्खियों में ‘खोया-पाया कॉलम’ के बराबर जगह में भी नज़र नहीं आता। बीते दिनों अखबारों में खबर आई कि महज़ दस साल की छोटी लड़की के साथ उसके मामा ने कई बार यौन शोषण किया जिसके कुछ महीने बाद वह प्रेग्नेंट हो गई। प्रेग्नेंसी में पांच महीने से अधिक हो चुके थे। कानून के अनुसार 20 हफ्ते से अधिक के केस में अदालत ने अपने फैसले में यह फरमान जारी किया कि एबॉर्शन किया जाना सही नहीं है, अदालत ने इसे बच्ची के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर बताया। अबॉर्शन के बजाय साधारण तरीके से डिलीवरी करने को सही ठहराया गया।

कुछ दिनों तक यह मामला ठंडा बना रहा, बीते दिनों मैंने कहीं पढ़ा उस 10 साल की बच्ची ने एक बच्चे को जन्म दिया। सोचने में ही कितना अजीब लगता है, एक दस साल की बच्ची ने एक और बच्चे को जन्म दिया। बौद्धिक स्तर पर जिस बच्ची की सूझ-बूझ अभी ना के बराबर है, उसके ऊपर अब एक बच्चे की ज़िम्मेदारी है। लेकिन हमें ये अजीब नहीं लगता है क्योंकि हमारी संवेदनाएं शून्य हो चुकी और वो सिर्फ तभी जगती है जब हमें यह अहसस होता है कि जो हम कर रहे हैं उसके बारे में ‘चार लोग’ क्या कहेंगे।

जिसे घटना को अापराधिक घटना का जामा पहना कर, कुछ धाराएं और FIR के लागलपेट में समेट कर किनारे कर दिया गया असल में ये एक गंभीर समस्या जो घाव का रूप ले रही है, जिस पर मिट्टी डालने से वो दूसरों की नज़रों से दूर तो हो जाती है लेकिन कभी ठीक नहीं होती है।

छोटे बच्चों के साथ होने वाले यौन कृत्य सिर्फ अपराध ही नहीं हमारे समाज की दूषित स्थिति की ओर इशारा करते हैं।

एक ओर जहां आए दिन होने वाले इस तरह के अपराध इस ओर इशारा करते हैं कि हमें सेक्स एजुकेशन जैसे पाठ्यक्रम जल्द ही शुरू करने चाहिए ताकि इस दूषित समाज में जिनके साथ कुछ गलत हो रहा, कम से कम उनको यह अहसास हो के उनके साथ क्या हो हो रहा, ज्ञान के आभाव और कच्ची उम्र में बच्चे यह फैसला करने में असफल होते है कि उनके साथ जो हो रहा वह गलत है।

इन ज़रूरी मुद्दों को छोड़ राजनीतिक दल अपने पार्टी प्रमुख के इतिहास को बच्चों के पाठ्यक्रम में जोड़ने के लिए ज्यादा उत्साहित है। जिससे बच्चों के दिमाग में बचपन से सामाजिक ज़िम्मेदारी और नैतिक विचारों के बजाय राजनीतिक विचारधाराओं का निचोड़ भरा जा सके। वर्तमान में लिए जा रहे ऐसे फैसले, कथित रूप से महाशक्ति के रूप में उभरते भारत को आतंरिक रूप से खोखला कर रहा है जो एक चिंता का विषय है।

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