छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए सूखा सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। औसत से भी कम बारिश होने के कारण फसलों को काफी नुकसान पहुंच चुका है। बची-खुची फसल भी सिंचाई के अभाव में बचा पाने में किसान खुद को असमर्थ पा रहे हैं। सारी उम्मीदें छोड़ मजबूर किसान खेतों में मवेशियों को छोड़ दे रहे हैं। इन सबके बावजूद सरकार की ओर से समीक्षा बैठकों और अधिकारियों को निर्देश जारी करने के अलावा कुछ नहीं किया गया। यह स्थिति तब है जब राज्य में कर्ज़ से परेशान किसान आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं और सरकार उत्सव मनाने में लगी है।
सरकार को पहले से पता था कि बारिश कम हो रही है। ऐसी आशंका भी थी कि इस साल बारिश कम या नहीं के बराबर होने वाली है। इसके बावजूद सरकार की ओर से सिंचाई के पानी का कोई इंतज़ाम नहीं किया गया। किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि फसल सूखे की चपेट आ गई और किसान संकट में फंस गए। सरकार नियमों की आड़ लेकर आंकड़े जुटाने में ही लगी रही। सरकारी नियमों के मुताबिक, सूखाग्रस्त घोषित किए जाने के बाद ही किसानों को राहत मिल सकती है।
तभी डीज़ल आदि पर सब्सिडी भी दी जा सकेगी। सरकार केंद्र को मदद का प्रस्ताव भेजेगी। उसके बाद पेयजल, चारा से लेकर मनरेगा का काम भी खुलेगा। लेकिन तब तक किसानों का भारी नुकसान हो चुका होगा। उसके बाद इस बात की क्या गारंटी रहेगी कि किसानों को उचित मुआवजा भी मिल ही जाएगा।
हाल-फिलहाल कलेक्टरों से आई रिपोर्ट के मुताबिक 13 ज़िलों की 45 तहसीलों में फसल की स्थिति बहुत खराब है। पटवारी सर्वे और अंतरविभागीय रिपोर्ट से पता चलता है कि बहुतायत फसल चौपट हो चुकी है। 53 तहसीलों में 70 प्रतिशत से भी कम बरसात हुई है। आठ तहसीलों में 50 प्रतिशत से भी कम और 19 तहसीलों में 60 प्रतिशत से भी कम बरसात हुई है।
मौसम की बेरुखी ऐसी है कि सितंबर का दूसरा सप्ताह बीतने को है और बरसात का कोई लक्षण नजर नहीं आ रहा है। अभी भी बरसात हो जाती, तो बची फसल को जीवनदान मिल जाता। राज्य के बहुत सारे बांधों के पास जरूरत के मुताबिक पानी नहीं है। सिंचाई के अन्य साधनों में नहर, पंप, तालाब और कुंओं में भी जरूरत पूरी करने लायक पानी नहीं है।
अगस्त में ही इस आशय के आंकड़े आ चुके थे कि राज्य के 14 जिलों की 70 तहसीलें सूखा प्रभावित घोषित हो चुकी हैं। कम वर्षा से प्रभावित इन तहसीलों में बहुतायत में 50 से 70 फीसदी तक कम बारिश हुई। इन इलाकों में करीब सवा पांच लाख हेक्टेयर भूमि में धान की रोपाई नहीं हो पाई या बहुत कम हो पाई। अनुमानतः इतनी ही भूमि में बोवाई भी नहीं की जा सकी। पानी की कमी की वजह से मैदानी इलाकों में बियासी-रोपाई अगस्त के तीसरे सप्ताह में ही रुक गई थी। बेहद कम वर्षा वाले जिलों में रायपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, बिलासपुर, बलौदा बाजार, नारायणपुर, मुंगेली, कोरिया और गरियाबंद आदि रहे।
बारिश के अभाव में काफी रोपाई भी प्रभावित हुई। बरसात न होने और फसलों के सूखने से परेशान किसानों ने फसल बीमा का भी सहारा लिया। अकेले राजनांदगांव में इस साल 23 हज़ार किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा के अंतर्गत बीमा कराया है। यह पिछले साल की तुलना में काफी अधिक है।
पिछले साल केवल सात हजार किसानों ने फसल बीमा कराया था। अऋणी किसानों द्वारा बीमा कराए जाने के दौरान भले ही कर्ज़ की राशि से प्रीमियम काट लिया जाता है, लेकिन 23 हज़ार अऋणी किसानों ने बैंक में डेढ़ करोड़ रुपये नगद भुगतान कर बीमा कराया है। ज़िले के एक लाख 33 हजार 78 किसानों ने 11 करोड़ 36 लाख रुपये का प्रीमियम अदा किया है। इससे स्पष्ट है कि सूखे के खतरे के मद्देनज़र किसान बेहद चिंतित हैं।
सरकार को भले ही किसानों की कोई चिंता न रही हो, पूर्व वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने अगस्त की शुरुआत में ही मुख्यमंत्री रमन सिंह को चिट्ठी लिखकर सूखे से निपटने के उपाय करने की अपील की थी। चिट्ठी में लिखा था कि इस साल बारिश ने किसानों के साथ धोखा किया है। अपेक्षानुसार बारिश नहीं हुई है। जितना पानी बरसा है, वह ज़मीन में समा चुका है। अधिकांश खेतों में पानी नहीं है। पानी की कमी से किसान रोपाई नहीं कर पाए हैं। तालाब, बांध, डबरी आदि में इतना पानी नहीं है कि सिंचाई की जा सके। किसानों का संकट बढ़ गया है। ऐसे में सरकार को किसानों को सूखे के संकट से उबारने के लिए हरसंभव आवश्यक उपाय करने चाहिए।
सिंचाई के उद्देश्य से राज्य में कुछ बांध भी बनाए गए हैं, लेकिन उनसे भी किसानों की उम्मीदें पूरी नहीं हुई। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि उनमें पर्याप्त पानी ही नहीं था। किसानों के बीच से यह सवाल भी उठाया गया कि जब पानी ही नहीं है, तो बांध बनाने का औचित्य ही क्या है। अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बांधों के पानी से कितनी सिंचाई की जा सकी होगी।
ज़ाहिर है सूखे से सरकार को कोई समस्या नहीं है, इसीलिए सरकार की ओर से सूखे से बचाव के लिए कुछ नहीं किया गया। सरकार की ओर से किसानों की अनदेखी का परिणाम यह हुआ है कि उन्हें आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ा है। हालांकि राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री प्रेमप्रकाश पांडे का कहना है कि सूखे पर अलग-अलग ज़िलों से रिपोर्ट मिल गई है। वह यह मानते हैं कि फसलों की हालत चिंताजनक है। लेकिन कोई भी फैसला कैबिनेट की बैठक में ही होगा।