आज ज़माना है ‘कूल’ बनने का है और ज़माने के साथ चलना तो हमारी फितरत होती है। ये कूलनेस कपड़ों से लेकर लोगों की बातों तक में भी नज़र आती है। जब बात मैसेज की आती है तो इमोजी हमारे चैट को कूल बनाने का काम करते हैं। लेकिन ज़रा सोचिए इन इमोजी में आपको अपनी ही छाप दिखने लगे तो कितना मज़ा आएगा। जो कभी ‘धत्त तेरी की’ कहे, ‘चल झुट्टा’ कहे तो कभी ‘आइला’ जैसी बातें कह कर आपके मन को गुदगुदाए ! और सोने पर सुहागा तो तब हो जब आप अगले को ‘उई मां! इतना प्यार’ कहकर उसे अपने वश में कर लें ! अरे ये क्या आप तो सोच में पड़ गए।
सोच में मत पड़िए, लगता है आपने अभी तक हिंदी की चटपटी बातों से गुदगुदाने वाले इमोजी यानी हिमोजी को देखा ही नहीं है। चलिए फिर हम आपको इन हिमोजी की सैर करवाते हैं और मिलवाते हैं ये हिमोजी बनाने वाली अपराजिता शर्मा से। दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिंदी की प्रोफेसर अपराजिता के हिमोजी में आपको इश्क की फुहार मिलेगी, त्यौहार के रंग मिलेंगे तो फिल्मी मिज़ाज भी मिलेगा। यहां लेडी गब्बर से लेकर बाबूराव का फ्लेवर भी मिलेगा।
अपराजिता आप अपनी हिमोजी के बारे में कुछ बताइए कैसे ये बाकि इमोजी से अलग है ?
अलग इस तरह से है कि ये हिंदी में है। आपको हिंदी में बात करते हुए और भी इमोजी मिल सकते हैं लेकिन, कहीं भी आपको देवनागरी में हिंदी लिखा नहीं मिलेगा। मैं इसे इमोजी से ज़्यादा चैट स्टिकर्स मानती हूं। इमोजी में सिर्फ चेहरे के भाव होते हैं
जबकि चैट स्टिकर्स में डायलॉग भी होते हैं वो आपसे बाते करते हैं। मेरे चैट स्टिकर्स आपसे खूब बातें करते दिखेंगे। यहां एक कैरेक्टर है ‘अनन्या’, जिसका अलग-अलग मिज़ाज है। इसमें अलग-अलग कैटेगरी है, जैसे- मन भावन, प्यार ही प्यार, त्योहार, फिल्मी, खट्टी-इमली, अनकही, गुमसुम। बस आपको अपने मुड के अनुसार उसे शेयर करना है। आप ट्राई करके देखिए बड़ा ही दिलचस्प है मेरे हिमोजी का परिवार।
हिंदी में हिमोजी का ख्याल आपको कहां से आया ?
मैं बस हिंदी को यंग जेनरेशन से जोड़ना चाहती हूं। आपको ये कहते तो कई लोग मिल जाएंगे कि हिंदी यंग जेनरेशन से दूर जा रही, क्योंकि उन्हें इंग्लिश ‘कूल’ भाषा लगती है। लेकिन, हम इसके लिए ना ही यंग जेनरेशन को दोषी ठहरा सकते हैं और ना ही इंग्लिश को। हमें यह समझना होगा कि आखिर हिंदी यंग जेनरेशन के लिए कूल भाषा क्यों नहीं बन पा रही है। हम हिंदी को भी तो कूल बना सकते हैं। हमें हिंदी में भारी भरकम चीजों से बाहर भी निकलने की ज़रूरत है। उसमें रचानत्मकता लाने की ज़रूरत है। बस इसी सोच के साथ मैंने इसकी शुरुआत की।
आपको कैसे लगा कि ये यंग जेनरेशन को कूल लगेगा, और यंग जेनरेशन इसके ज़रिए हिंदी से जुड़ पाएगी ?
इसे एक इत्तफाक ही कह सकते हैं। एक दिन मेरी 14-15 साल की भांजी से मेरी मैसेज पर चैट हो रही थी। उसने मुझे उस चैट में एक इमोजी भेजा, वो उस इमोजी से ‘धत्त तेरी’ वाला एक्सप्रेशन देना चाहती थी। लेकिन, उससे वो भाव नहीं निकल पा रहा था। फिर मैंने उसे एक स्केच बनाकर भेजा। जिसमें एक लड़की अपने माथे पर हाथ रखी हुई थी ठीक उसी स्टाइल में जैसे हम आम जीवन में धत्त तेरी की कहते हुए करते हैं।
उसके साथ मैंने हिंदी में धत्त तेरी भी लिखा था। मेरी भांजी ने स्केच देखते के साथ कहा- ‘मौसी ये तो बड़ा ही कूल है।’ उस वक्त मुझे लगा कि जब 14-15 साल की यंग लड़की को ये कूल लग रहा तो और लोगों को भी लगेगा।
मतलब फिर इस चैट के बाद आपने हिमोजी बनाना शुरू कर दिया ?
नहीं, उस वक्त भी मेरे दिमाग में ऐप का कोई आइडिया नहीं था। मैंने तो एक कैरेटक्टर को डिज़ाइन कर फेसबुक पर फोटोज़ डाल दी। किसी स्केच में बधाई थी तो किसी में कोई संदेश। मैंने फेसबुक पर लोगों से रिक्वेस्ट किया कि आप इस हिंदी स्टिकर्स के ज़रिए लोगों को बधाई दें। इसका बहुत ही अच्छा रिस्पॉन्स देखने को मिला। काफी लोगों ने उसे शेयर किया। इसी बीच मेरे एक दोस्त इन सबको ऑब्ज़र्व कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अपराजिता हम इसपर काम कर सकते हैं। लेकिन बात वहीं आई और चली गई। एक साल बीत गए। फिर मैंने ही उनसे दोबारा कहा कि आपने मेरे स्केचेज़ पर काम करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि ठीक है मैं कुछ नए लड़कों को ढूंढता हूं जो इसे ऐप में बदल सकें। वहीं से हमारी टीम की शुरुआत हुई।
लेकिन, शुरुआत में काफी चुनौतियां आई। आखिर, कोई हिंदी के हिमोजी क्यों डाउनलोड करेगा, ये सबसे बड़ा सवाल था हमारे सामने। 6 महीने तक हमने सिर्फ ट्रायल वर्ज़न रखा गया। इस बीच काफी बदलाव आए और अंत में हमने 2016 की जनवरी को इसे लॉन्च किया गया। लॉन्च के दिन मेरी टीम वालों ने कहा कि हमें कोशिश करनी होगी कि पहले दिन कम-से-कम 1000 डाउनलोड हो जाए। जो कि काफी मुश्किल लग रहा था हमें। लेकिन, इत्तफाक कहिए या हमारी किस्मत ऐप लॉन्च होने के साथ ही 24 घंटे के अंदर 11000 डानउलोड्स मिले।
कॉलेज में स्टूडेंट्स के बीच आपका हिमोजी कितना प्रचलित हुआ है ?
मुझे मेरी स्टूडेंट्स ने काफी सपोर्ट किया है। वो लोग हिमोजी से काफी प्रभावित हुई हैं। उन्हें इसके बाद एहसास हुआ कि हिंदी भी तो कूल है। उसे बस क्रिएटिविटी की ज़रूरत है। हमने लड़कियों के लिए हिमोजी की टी-शर्ट भी बनाई है। जिसमें ‘दूं क्या’ से लेकर कई दिलचस्प बातें लिखी हुई हैं। इसका मकसद यह था कि लड़कियां जब ऐसे टी-शर्ट पहनकर बाहर निकले तो उन्हें छेड़ने से पहले लड़के एक बार ज़रूर सोचे।
आप बार-बार हिंदी को दिलचस्प बनाने के बारे में पूछ रही तो आपको एक बात बताती हूं। हमारे कॉलेज में कई ऐसी लड़कियां होती हैं, जिन्होंने सिर्फ 8वीं तक हिंदी पढ़ी है। उन्हें लंबे गैप के बाद कॉलेज में हिंदी पढ़नी पड़ती है। उनका कहना होता है कि मैडम हमें कुछ समझ नहीं आता। वो इससे दूर जाना चाहती हैं। एक दिन क्लास में मुझे लड़कियों ने कहा कि मैडम हमें हिंदी समझ नहीं आती। मैंने भी कहा चलो फिर हिंदी नहीं पढ़ते हैं। फिर हमलोग हिंदी फिल्मों का गाना गाने लगे। पूरी क्लास खूब एन्जॉय कर रही थी। मैंने सबसे पूछा कि तुम लोगों को तो ये गाना बिलकुल भी समझ नहीं आया होगा ना, ये तो हिंदी में था। इसपर लड़कियों का जवाब था नहीं मैडम हमें सब समझ में आया। मैंने स्टूडेंट्स से कहा कि जब आपको गाने के सारे हिंदी शब्द समझ आ रहें तो इसका मतलब है कि आप लोग हिंदी जानती हैं, समझती हैं। बस उसे खुद के करीब लाने के लिए दिलचस्प तरीके से उस समझने की ज़रूरत है। ये बात आपको बताने का मेरा मकसद ये था कि ये हम हिंदी भाषियों की ही ये ज़िम्मेदारी है कि हम हिंदी को कैसे यंग जेनरेशन से जोड़े। उसे क्रिएटीव कैसे बनाए।
कई बार आपके हिमोजी पर यह आरोप लगता है कि उसमें सिर्फ फीमेल कैरेक्टर ही हैं। आप मेल कैरेक्टर को शामिल नहीं करती।
हां, और ये आरोप ज़्यादातर पुरुष ही लगाते हैं। अरे आप ये बताइए कि क्या कभी आर के लक्ष्मण से किसी ने सवाल किया था कि उनके मेन कैरेक्टर पुरुष ही क्यों होते थे। अमूमन, कार्टून्स में पुरुष कैरेक्टर ही मुख्य भूमिका में होते हैं। जब उस वक्त कोई सवाल नहीं किया जाता तो मुझसे क्यों किया जाता है। वैसे ये भी कहना पूरी तरह गलत होगा कि मेरे हिमोजी में मेल कैरेक्टर नहीं है। आप देख सकते हैं कि इसमें एक पुरुष कैरेक्टर भी है। अब इतना तो मैं भी समझती हूं कि मेरे हिमोजी का परिवार बिना पुरुष के संभव तो नहीं ही है। लेकिन, एक बात मैं कहना चाहूंगी मुझे अनन्या का कैरेक्टर बनाने में जो मज़ा आता है वो मेल कैरेक्टर को बनाने में नहीं।
अनन्या का कैरेक्टर कैसे आपके दिमाग में आया। ये काफी देसी लगती है और कई लोग इसे खुद से जुड़ा हुआ भी महसूस करते हैं।
इसका भी एक लंबा सिलसिला रहा है। पहले मेरे कैरेक्टर के बाल छोटे थे। फिर मैंने दो चोटी वाली कैरेक्टर भी बनाई। अंत में फिर अनन्या का कैरेक्टर सामने आया। जिसके बालों में गजरे हैं जो काफी चंचल है। कभी जब ये अलग मूड में होती है तो इसके बाल खुले भी होते हैं।
क्या आपकी अनन्या का कैरेक्टर आपसे भी मिलता जुलता है ?
हर कलाकार की कला में कहीं ना कहीं उसकी छाप उसकी सोच दिखाई देती है। मेरे कैरेक्टर के साथ भी ऐसा है। या ये भी कहना गलत नहीं होगा कि कई मामलों में मैं अपने कैरेक्टर के अनुसार ढलते जा रहीं। यानी उसकी छाप मेरे अंदर देखने को मिल रही।
लोगों के बीच से इसका कैसा रिस्पॉन्स देखने को मिल रहा है ?
लोगों के बीच इसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स देखने को मिल रहा है। मुझे सबसे खुशी इस बात की हुई है कि ये लोग भावनात्मक रूप से इससे जुड़ रहे हैं। दरअसल, मुझे इटली से एक मैसेज आया जो काफी भावुक करने वाला था। उनका कहना था कि विदेश में रहते हुए देवनागरी लिपी में हिंदी लिखे देखना काफी सुखद था। ये हमें हमारे देश से जोड़ने जैसा है। मैं सच कहूं तो मुझे इस तरह के रिस्पॉन्स का बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था। मुझे बहुत खुशी होती है जब इस तरह के रिस्पॉन्स मिलते हैं।
अपराजिता जी के ये हिमोजी आज के नौजवानों को आगे भी हिंदी से कितना जोड़ पाएंगे ये तो अभी देखना है। मगर इतना तो ज़रूर है कि उनका यह मस्त-मस्त हिमोजी नौजवानों के बीच हिंदी की आम फहम बोलियों और लोकोक्तियों की सतरंगी आभा बिखेरने में पीछे नहीं रहेगी।
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