“तुम्हारे गुमनाम पत्रों को सरेआम कर दिया हमने नीलाम” यह ख्याल है, मेरे एक दोस्त का Sarahah ऐप के बारे में। हाल ही में लोकप्रिय हुए मोबाइल ऐप Sarahah ने आजकल फेसबुक पर धूम मचा रखी है। इस ऐप की मदद से आप बिना किसी को अपना नाम बताए कुछ भी बोल सकते हैं। प्रश्न यह है कि Sarahah ऐप इतना लोकप्रिय क्यों हो रहा है? अपना नाम छुपा कर लोगों को क्या कहने की आन आ पड़ी है? क्या लोग इतने असहिष्णु हो गए है कि नाम बताकर सच नहीं बोला जा सकता है? वह क्या सीक्रेट है जिसके लिए लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं?
लोगों में आपसी बातचीत की कमी ने Sarahah के लोकप्रिय होने में योगदान दिया है। बातचीत का मतलब ऐसे तर्क-वितर्क से है जिसमें दोनों लोग सक्रिय रूप से भागीदार बने। हमलोगों ने आपसी बातचीत इतनी कम कर दी है कि किसी से कोई बात कहने के लिए हमे एक ऐप का सहारा लेना पड़ रहा है। आदमी जब किसी से बातचीत करने लगता है तो सामने वाले के साथ अपना कम्फर्ट ज़ोन बना लेता है और फिर तमाम बातें शेयर कर पाता है। जब हमने किसी से कुछ बात ही नही की हो तो कम्फर्ट ज़ोन बनेगा कहां और जब कम्फर्ट जोन बनेगा नहीं तो फिर बिना नाम बताये ही किसी को कुछ कहा जा सकता है।
इस ऐप पर लोग एक-दूसरे को अधिकांश ऐसे ही बात कह रहे हैं जिसको कहने के लिए शायद किसी ऐप या अपनी पहचान छुपाने की ज़रूरत नहीं है, जैसे यू आर सो क्यूट बॉय, you are very sweet and really lucky to have a friend like you and know you, you are so amazing girl, I miss you.. I will always cherish the time we had spent, आदि। ज़्यादा से ज़्यादा किसी को किसी ने प्रोपोज़ कर दिया तो किसी ने किसी को कहा, तुम बहुत अजीब आदमी हो। इतनी सी बात कहने के लिए हमारे पास हिम्मत नहीं है। इतने कमज़ोर हो गए हैं हम या इतने शर्मीले या इतने डरपोक या फिर क्या हो गया है हमलोगों को? किसी की सराहना करने के लिए भी एक ऐप का सहारा लेना पड़ रहा या फिर ये दिखावा करना चाहते हैं कि ये बात पब्लिक में आए कि मैंने उसको ये कहा हलांकि ये बात तो पता भी नहीं चल रही बाकी जनता को कि आपने ही कहा।
अगर सबको बताना ही है तो लुकाछिपी का खेल क्यों? इस ऐप से तो आपकी बातें पूरी फेसबुक समाज को पता चल ही जा रही है, जब कोई फेसबुक पर उसका स्क्रीनशॉट डाल रहा है। जबकि अगर आपको जिससे भी कुछ कहना है उनसे कहते तो आपके और उनके बीच ही ये सीक्रेट रहता। बस ये है कि आपका नाम पता नही चल रहा है।
हमलोग मेट्रो में जाते हैं, ट्रेन में जाते हैं; बगल वाले से, सामने वाले से घंटों मुखातिब रहते हैं परंतु बातचीत नहीं करते हैं। बस में, क्लास में, स्टेशन पर, जहां कहीं भी लोग बोर हो रहे हों या इंतज़ार के अलावा कोई उपाय ना हो वहां बातचीत सबसे अच्छा उपाय हो सकता है लेकिन हम इन सारे जगहों पर किसी से भी बात नही करते। इन जगहों पर बातचीत का स्थान मोबाइल ने ले लिया है। कॉलेज कैंपस में कितनों बच्चों से एक बच्चा रोज़ मुखातिब होता है लेकिन अगर बातचीत होती भी है तो बस अपने क्लास के बच्चों से, यह बहुत खतरनाक है।
हमलोग हमेशा अजनबी बने रहना चाहते हैं। कम्पनी के कर्मचारियों के बीच फीडबैक देने के लिए बनाया गया ऐप अनाम बने रहकर बात करने का एक ऐप बन गया है।
कहते हैं ना आश्यकता ही अविष्कार की जननी है। हमलोगों ने बातचीत करना इतना कम कर दिया है की छोटी मोटी बातों पर भी झगड़ा कर ले रहे हैं एक लीची चुराने पर मर्डर कर दे रहे हैं, गाड़ी में थोड़ी सी टक्कर होने पर कोर्ट चले जा रहे हैं। ये सब बातचीत ना करने का परिणाम है। बहुत सारी समस्याएं कितने दिनों से हमारे बीच कायम है क्योंकि हमलोग बातचीत ही नहीं करते जैसे कश्मीर समस्या। हालांकि सरकार और जनता भी जानती है कि बातचीत ही किसी भी समस्या का समाधान है।
बातचीत ना करने के बहुत बुरे परिणाम सामने आ रहे हैं। अवसाद उसका एक सबसे बड़ा उदाहण है। हज़ारों लोग प्रतिदिन मौत को गले लगा रहे हैं क्योंकि उनके जीवन में उत्साह नहीं है क्योंकि कोई बातचीत करने वाला ही नहीं है। अब तो कॉलेजों में भी बहुत बच्चे इस समस्या के कारण अपने को हाशिये पर पाते हैं। ऐसी स्थिति चारों तरफ बनी हुई है। जबकि बातचीत मन बहलाने का भी एक अच्छा उपाय है और ऐसे भी बातचीत के लिए मुद्दों की कोई कमी तो है नहीं,और अगर मुद्दा ना हो तो मुद्दा बनाया जा सकता है।
अब आते है Sarahah ऐप पर, मैं इसके संदर्भ में प्राइवेसी पर विचार कर रहा था अगर किसी ने इसको हैक कर लिया और आपकी सीक्रेट को चुरा लिया और ब्लैकमेल करने लगा तो? आखिर है तो टेक्नोलॉजी ही न। इन तमाम बातों पर सोचने की ज़रूरत है। मैं सबसे ज़्यादा अचंभित इसको लेकर हूं कि इतनी छोटी सा बात कहने के लिए अनाम रहकर एक ऐप का सहारा लेना पड़ रहा है।
अगर आपने बिना नाम बताये किसी को प्रोपोज़ ही कर दिया तो क्या हो जायेगा? जब तक उसको पता ही ना चले की आप कौन हैं? गाली ही दे कर क्या कर लेंगे जब तक ये पता ना चले की आप कौन है?
बहुत लोग किसी को कोई अवास्तविक बात बोल दे रहे हैं। आप तो बोल के चुप हो गए पर जिसको बोले वह बेचारा दिन भर यही सोचने में गुज़ार दे रहा है। बहुत लोग आधी-अधूरी बात ही कह पा रहे है तो फिर सामने वाला उसी में उलझ जा रहा है।
अगर आप किसी को बिना बताये या फिर सामने नही बोलना चाहते है तो और भी कई साधन है जिसका इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे पत्र। इसमें लिखने का भी मज़ा आएगा और आपका काम भी हो जायेगा। अपने नाम को सीक्रेट रखने के चक्कर में अपनी बात सीक्रेट नहीं रख पा रहे हैं तभी तो किसी ने लिखा है,“तुम्हारे गुमनाम पत्रों को सरेआम कर दिया हमने नीलाम”