तेरे माथे पर ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन,
तू इस आँचल को ही परचम बना लेती हो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के लिए जब सरकार, महिलाओं को ही दोषी बता रही है, उनके परिवार उन्हें घर पर रहने और रात में न निकलने की सलाह दे रहे हैं तब दिल्ली शहर की कुछ लड़कियां एक ‘शांति की मुहिम’ के तहत महिलाओं के अधिकारों और उनके हकों के लिए #मेरीरातमेरीसड़क का आयोजन करती हैं और 12 अगस्त की रात 9 बजे सड़कों पर उतरती हैं।
जी हां, हम सभी लड़कियां हैं, वो लड़कियां जो एक रेप कैपिटल सिटी में अकेली रहती हैं। वो लड़कियां जो रातों को अपने दफ्तरों से घर को निकलती हैं, वो लड़कियां जो चाहती हैं कि वो भी अपनी रातें जियें और वो लड़कियां जो चाहती हैं कि ये रातें, ये सड़कें हमारी भी उतनी हों जितनी कि ये पुरुषों की हैं।
दिल्ली से शुरू हुई इस मुहिम से धीरे-धीरे देशभर की लड़कियों को जोड़ा गया। सभी पूछते हैं कि क्यों हमें इस पहल की ज़रूरत आन पड़ी, क्यों हमने ये शुरुआत की? इसका जवाब हम सभी आपको देना चाहेंगे। हमारी टीम की साथी प्रीति नाहर कहती हैं, “इस कैंपेन से हमारा मैसेज ये बताना है कि रात में लड़कियों के बाहर घूमने को कोई हव्वा ना बनाया जाए। चीज़ों को नॉर्मल रखा जाए। मेरी सभी महिलाओं से ये अपील है कि रात में खुली सड़कों पर घूमिए, क्योंकि रात में सड़कें बहुत खूबसूरत होती है, बहुत खुशनुमा होती है। इसको महसूस करें और दिन-रात किसी भी समय सड़कों पर घूमें।
चंडीगढ़ से प्रीति कुसुम का कहना है कि हमें पता है एक दिन सड़क पर निकलकर कुछ नहीं बदलेगा। हमें ये भी पता है कि जब हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं तो हमसे बड़ी-बड़ी उम्मीदें पाली जातीं है, लेकिन कुछ बड़ा नहीं कर पाए/कर सकते तो कुछ भी ना करें? मुर्दा बन जाएं? या सिर्फ़ यहां लिखकर आक्रोश को ड्रेन कर लें!
हम सब बेहद आम लोग हैं, कोई MLA, MP नहीं, हमारा कोई संगठन नहीं, कोई नेता नहीं, सिर्फ़ अक़्ल है जो कहती है कि कब तक सिर्फ़ “पोस्ट” से विरोध होगा? ग़लत हुआ है और लगातार ग़लत हो रहा है, हम क्या कर रहे हैं? हम क्या कर सकते हैं?
हमें ज़्यादा मेहनत और कुछ बेहद बेफिज़ूल मुद्दों पर भी सिर्फ़ इसलिए बात करनी पड़ती है क्यूंकि भारतीय समाज जाहिलियत भरी मानसिकता से ग्रसित है और उन फालतू बातों को “कारण” की तरह गढ़ने लगता है। इसलिए ऐसी छोटी-छोटी बातें समझाने के लिए ऐसे छोटे कदम बढ़ाने की कोशिश में हैं। उम्मीद है ज़्यादा लोगों के जुड़ने से उस मानसिकता पर चोट हो जो ऐसी घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार है।
बिलासपुर से प्रिया शुक्ला ने कहा कि कैम्पेन का उद्देश्य देश मे ऐसा माहौल बनाना है कि बेटियां सुनसान सड़क पर अपने आप को असुरक्षित महसूस ना करें। निडर होकर सड़क पर चलें। हम चाहते हैं लोग लड़कियों को भी समाज में लड़कों की तरह देखा जाए। देश मे ऐसा माहौल बने कि लड़कियां बेख़ौफ़ होकर घर से निकल सकें।
हमारी यह पहल किसी राजनीतिक पार्टी या किसी संगठन से प्रेरित नहीं थी। हम नहीं चाहते थे इसे कोई भी राजनीतिक रूप से इस्तेमाल करे या आयोजन को एक विरोध बताये। हमने साफ़ तौर पर इस बारे में अपने पेज पर लिखा और एकल रूप से भी अपनी-अपनी फेसबुक वॉल पर इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचाई। इस बीच हमारे लिए कुछ लोगों ने दिक्कतें भी पैदा की। हमारे पेज को ही नहीं बल्कि मुख्य आईडी को हैक कर लिया गया और लगातार कोशिश की गयी कि यह आयोजन ठप्प हो जाये।
असली झटका हमें तब लगा जब आयोजन के ही दिन गोरखपुर से बच्चों की मौत की खबर हमें मिली। हम सभी भरी आंखों से एक दूसरे को देख रहे थे और सोच रहे थे कि अब क्या? एक समय हम सभी ने यह निर्णय ले लिया था कि इस त्रासदी के बाद हम आयोजन रद्द कर देंगे। हम गहरे शोक में थे लेकिन वहीं हमें यह भी चिंता थी कि हम दिल्ली में हैं और इस आयोजन को रद्द कर भी सकते हैं लेकिन वो शहर जहां लड़कियां अपने परिवारों से अनुमति लेकर सड़कों पर उतरने के लिए निकली हैं उनका क्या? उन तमाम लड़कियों का क्या जिन्होंने एक भरोसे और अपनी आज़ादी के नाम इस दिन को सोचा और उसमें शामिल होने के लिए खुद को तैयार किया। हमने बहुत सोचने के बाद इस आयोजन को जस का तस रखने का निर्णय लिया।
12 अगस्त यानी शनिवार की रात आयोजन की शुरुआत जनपथ से हुई और वहां भी हमारे दुखी मन ने हमें घेरे रखा। हमारे सामने तमाम मीडिया मौजूद थी और हम सभी लड़कियां उनसे बचना चाह रहे थे। हम नहीं चाहते थे कि हमारी उदासी बाकी लड़कियों तक पहुंचे, शुरुआत करते हुए गीता ने सबसे पहले हमारा दुःख व्यक्त किया और बताया कि क्यों हम सभी इस आयोजन को कर पा रहे हैं। गोरखपुर की घटना ने हमें हिला दिया था, लेकिन फिर भी सभी लोगों के सहयोग ने आयोजन को सफल बनाने में मदद की।
हमने जनपथ से शुरू कर जंतर-मंतर तक पैदल मार्च किया और इस बीच लगातार मीडिया से बात की। लोग लाइव पर रहे और सवाल-जवाबों का दौर चलता रहा। सड़कों पर लगातार हमें लोगों का अटेंशन मिलता रहा। लोग रुक-रुक कर हम लड़कियों की भीड़ को घूरते रहे। उन सबके लिए यह नया था कि आखिर यह हो क्या रहा है? किस बात के लिए यह लड़कियां आधी रात को सड़कों पर हैं? सच कहा जाए तो हम सबको इस कैम्पेन ने मिला जुला अनुभव दिया। जहां मेल पुलिसकर्मियों ने हमें हाथों हाथ लिया वहीं महिला पुलिस कर्मियों में कुछ के लिए हम आश्चर्य का विषय थे तो कुछ ने हमें हिकारत की नज़र से देखा।
कुछ ने तो सीधे कहा आप यह सब बंद करती तो हम सोने चले जाते। खैर, जो भी हो एक बात तो तय है कि तमाम शहरों में लड़कियों का उत्साह देखने लायक था वो लड़कियां जिन्हें आठ बजे के बाद रात देखने की मनाही थी वो लड़कियां सड़क पर कब्ज़ा किये हुए थी। नाच रही थीं, गा रही थीं, सड़कों को अपना बता रही थीं।
कुछ मीडिया के साथियों ने आयोजक मंडल की आपस की नाराज़गी का फ़ायदा उठाना चाहा और इसे पब्लिसिटी का माध्यम समझ अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा। उन्हें हम बता देना चाहते हैं कि आयोजन में छोटी-मोटी तकरार और कमियां होती रहती हैं, लेकिन उसका मतलब यह नहीं है कि आपको कुछ भी कहने का मौका मिल जायेगा।
हम हर हाल में लड़े, आगे भी लड़ेंगे और लड़ते रहेंगे। इसी के साथ स्टेट के उन सभी साथियों का आभार जो साथ खड़े रहे। ना सिर्फ साथ रहे बल्कि दिल्ली से भी आगे बढ़ कर लड़े। यकीकन आप सभी के बिना यह लड़ाई संभव ही नहीं थी। उन पुरुष साथियों का शुक्रिया जो ना सिर्फ सोशल मीडिया पर लगतार हमारा हौसला बढ़ाते रहे अपितु हर जगह से कैम्पेन में शामिल भी हुए और मीडिया के उन साथियों का आभार जिन्होंने खबरों में हमारी मुहिम को प्रमुखता से जगह दी। #मेरीरातमेरीसड़क की कोर टीम आप सब का धन्यवाद करती है। आप सब के बिना कुछ भी संभव नहीं था।