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ये सरकार पतियों को रेप का सर्टिफिकेट क्यों देना चाहती है!

केंद्र सरकार का कहना है कि मैरेटिल रेप को कानूनन अपराध घोषित किए जाने पर आने वाले दिनों में इसका पुरुषों के खिलाफ गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। चलो मान लिया सरकार,  एक बार को आपकी बात सही हो सकती है। मैरेटिल रेप एक कानूनी अपराध बनने पर पतियों का उत्पीड़न होगा। हम कुछ देर के लिए मैरेटिल रेप की बात नहीं करते हैं। एक लड़की का जब बलात्कार होता है और वो पुलिस के पास रिपोर्ट लिखाने जाती है तो उसकी कितनी बात सुनी जाती है ? क्या उसके लिए रिपोर्ट लिखाना इतना आसान होता है ?

यहां मैं पति द्वारा नहीं एक अनजान आदमी के ज़रिए किसी स्त्री के रेप की बात कर रही हूं। हम सब जानते हैं कि अभी हमारे देश के प्रायः हर कोने के थानों और थानेदारों का जो रवैया है, उसमें वो स्त्री जितना रेप के कारण परेशान नहीं होती उससे ज़्यादा रिपोर्ट लिखवाने के दौरान, और तो और कोर्ट में केस लड़ने के दौरान जलालत झेलनी पड़ती है। परिणाम यह देखने को मिलता है कि अधिकांशतः रेप की घटनाएं रिपोर्ट ही नहीं हो पाती हैं।

तो हुजूर, यह है आपके पुरुषवादी थाने और अदालतें, जहां किसी स्त्री के साथ किसी अंजान पुरुष द्वारा किए गए रेप के केस को दर्ज कराने में इतनी ज़लालत और दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। तो आप यह सोचें कि अपने भगवानतुल्य पति द्वारा बेडरूम में अपने साथ जबरन यौन संबंध बनाये जाने के विरुद्ध किसी स्त्री को शिकायत दर्ज कराने में क्या क्या नहीं झेलने पड़ेंगे !

हमारी सरकार, वैसे आपको इतना परेशान होने की ज़रूरत ही क्या है ? यह पुरुषवादी समाज तो मैरिटल रेप के कानून को भी धड़ल्ले से अपने पक्ष में इस्तेमाल करने का षड्यंत्र रच ही लेगा। क्यों इस बार पुरुष समाज डर रहा है कि मैरिटल रेप पर कानून आने पर वो अपनी पत्नी को अपनी हवस का शिकार नहीं बना पाएगा और इस कानून से बचने के लिए कोई षड्यंत्र नहीं रच पाएगा ?

चलिए एक बार मैरिटल रेप से संबंधित कानून पर नज़र डालते हैं। भारतीय दंड संहिता के अनुसार, 12 से 15 साल की उम्र की पत्नी के साथ ज़बरदस्ती संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। ऐसा करने पर पति को 2 साल की जेल, या जुर्माना या फिर दोनों की सज़ा हो सकती है। लेकिन, अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ऊपर है और पति उसके साथ ज़बरदस्ती संबंध बनाता है यानी उसका रेप करता है तो वहां इसे अपराध नहीं माना जाएगा। अब देखिए हमारा कानून भी कितना उटपटांग है। जहां लड़कियों की शादी की उम्र सीमा ही 18 साल है वहां 16-17 साल की लड़कियों के साथ पति द्वारा किए गए बलात्कार को कानूनी कवच पहना दिया गया है। 2005 में घरेलू हिंसा कानून के अंदर भी मैरिटल रेप को घरेलू हिंसा की श्रेणी में नहीं रखा गया है।

करीब 100 देशों में मैरिटल रेप को कानूनी अपराध घोषित किया जा चुका है, लेकिन भारत में जहां लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं किसी पराये मर्द की नहीं बल्कि खुद अपने पति द्वारा बलात्कार का शिकार होती हैं, वहां मैरिटल रेप को रेप ही मानने से इंकार कर दिया जाता है। और सरकार का ऐसा बयान शादी को बलात्कार का सर्टिफिकेकट देने जैसा ही लगता है।

हमारे समाज में सबसे बड़ी समस्या ये है कि यहां सेक्स को मर्दों की जागीर बना कर रख दिया गया है। अपनी मर्दानगी दिखानी है तो पत्नी के साथ ज़बरदस्ती संबंध बना लो, पत्नी पर गुस्सा भी दिखाना हो तो उसके साथ आक्रोशित रूप में सेक्स कर उसे शारीरिक दर्द का एहसास कराओ। पत्नी पीरियड्स में हो, दिन भर की थकान से परेशान हो, इससे पति को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

कई महिलाएं तो अपने पति की इस ज़बरदस्ती और हैवानियत के खिलाफ आवाज़ इसलिए नहीं उठाती क्योंकि उन्हें डर होता है, उनके मना करने पर उनका पति किसी दूसरी स्त्री की ओर अपना रूख कर लेगा। एक साल पहले दिल्ली की 24 साल की एक महिला ने बताया था, “मेरे पति रोज़ रात को मेरे साथ जबरन संबंध बनाते हैं। विरोध करने पर सीधे जवाब होता है, ‘तुम पत्नी हो मेरी, तुम्हारा यह धर्म है कि मेरी इच्छा पूरी करो।’ कई बार धमकियां भी मिली, अगर तुम नहीं कर सकती तो मैं किसी दूसरी औरत को ले आऊंगा।”

उस औरत ने जब अपने मायके में यह बात बताई तो वहां से जवाब मिला, “कैसी औरत हो तुम, पति है वो तुम्हारा, तुम अपने पति को मना कैसे कर सकती हो, ये तुम्हार धर्म है।”

उस औरत ने बताया कि पति मेरे साथ हमेशा जानवरों की तरह संबंध बनाता है, सेक्स के दौरान मुझे मारना पीटना तो आम बात है। जिस दिन ऑफिस से ज़्यादा परेशान होकर आएं उस दिन सिगरेट से मेरे ब्रेस्ट को जलाते हैं, मेरे वजाइना में ज़ोर का प्रहार करते हैं। मैं उनके सिगरेट की जलन, अपने वजाइन में हुए प्रहार से जितना चिल्लाती हूं उनके चेहरे पर उतना ही सूकुन दिखता है।”

2 साल पहले गुड़गांव की आवाज़ कम्युनिटी रेडियो “चाहत चौक” नाम से एक सेक्शुअल हेल्थ कार्यक्रम चला रहा था। उसके सभी विषयों को उनकी श्रोताओं ने काफी पसंद किया था। लेकिन एक एपिसोड से उन औरतों को डर था, जिसमें बताया गया था कि प्रेग्नेंसी के आठवें महीने तक सेक्स किया जा सकता है। इस प्रोग्राम में बताया गया था कि आप 8वें महीने तक सेक्स तो ज़रूर कर सकते हैं लेकिन इसके लिए आपको कुछ सावधानियां बरतने की ज़रूरत है। महिलाओं का कहना था कि अगर हमारे पति को इस बारे में पता चलेगा तो वो प्रेग्नेंसी के समय भी हमें चैन से जीने नहीं देंगे। यह 9 महीने ही तो हम खुलकर जी पाते हैं। हमारे पतियों को सावधानियों से शायद ही फर्क पड़े, उन्हें तो सिर्फ ये समझ आएगा कि प्रेग्नेंसी के 8वें महीने तक सेक्स किया जा सकता है।

पुरुषों के ज़बरदस्ती संबंध बनाने के चलते कई बार औरतें सेक्स से नफरत करने लगती हैं। सेक्स प्यार का ही एक रूप है, उन्हें इस बात का कभी एहसास ही नहीं हो पाता। स्त्रियां जल्दी उत्तेजित नहीं होती, उन्हें फोर प्ले की ज़रूरत होती है। लेकिन, हमारे समाज में तो पुरुषों को सिर्फ अपने हवस की प्यास मिटानी होती है।

समाज ये समझने को तैयार नहीं होता कि कोई भी अपना शरीर अपनी मर्ज़ी से ही किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहता है। उसकी सहमति के बगैर किया गया हल्का सा स्पर्श भी उसे झकझोड़ देता है और ये स्पर्श उसके ना कहने के अधिकार का हनन है। भले ही वह स्पर्श उसके पति द्वारा ही क्यों ना किया गया हो। लेकिन, हमारे यहां तो अगर शादी की पहली रात कोई पुरुष संबंध नहीं बनाता तो उसे नामर्द घोषित कर दिया जाता है। हालांकि, हम सारे पुरुषों पर यह आरोप नहीं लगा सकते हैं। कई पुरुष अपनी पत्नी की सहमति का पूरा ख्याल रखते हैं। कई ऐसे पुरुष भी मिलेंगे जिन्होंने शादी की पहली रात पत्नी की सहमति ना होने की वजह से संबंध नहीं बनाया। लेकिन, शायद उनमें से बहुत कम पुरुष ही इस बात को दूसरों के सामने कहने का माद्दा रखते होंगे। कारण साफ है, समाज की मर्दानगी की परिभाषा के सामने वो भी मजबूर हैं।

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