सुबह से ही “जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया” जैसी देशभक्ति गीत सुनाई पड़ना शुरू हो चुका था। जोशीले युवाओं द्वारा बाइक पर जगह-जगह तिरंगा यात्रा निकाली जा रही थी। देशभर में आज़ादी की 70वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई जा रही थी। राष्ट्रपति, स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित कर चुके थे।
देश के पहले “प्रधानसेवक” स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के लिए देशभर से आए आइडियाज़ में से चुने गए आइडिया पर तैयार भाषण की अंतिम रिहर्सल करने के बाद लालकिले पर पहुंच चुके थे। प्रधानसेवक को देखकर राजपथ से लेकर अपने-अपने घरों में टीवी के सामने बैठे लोग भी उत्साहित हो रहे थे। लोग सोशल मीडिया पर तिरंगें को अपनी डीपी में लगा चुके थे या लगा रहे थे, WhatsApp पर अपने दोस्तों के साथ शेयर कर रहे थे। “Feeling proud to being Indian” को सोशल मीडिया पर अपना स्टेटस बना चुके थे या बना रहे थे।
उसी समय मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ अपने विश्वविद्यालय यानी कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हो रहे स्वतंत्रता दिवस समारोह में गया था। विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिया जाने वाला भाषण सुनने नहीं बल्कि देश के उन बाढ़ पीड़ितों के लिए आर्थिक सहयोग मांगने, जो 71वां स्वतंत्रता दिवस का जश्न बाढ़ राहत शिविरों में मनाने को अभिशप्त हैं। शायद आपको पता होगा कि अभी देश का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है। यूपी, बिहार, असम व त्रिपुरा के कई जिलों में बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया है। हमारे देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा हर साल बाढ़ जैसी भयावह त्रासदी की मार झेलता रहा है। हर साल हज़ारों ज़िंदगियां बाढ़ द्वारा लील ली जाती हैं, लाखों करोड़ों लोग जीवन भर के लिए फुटपाथ पर आ जाते हैं।
ऐसे समय में जब देश के करोड़ों लोग आज़ादी के 70 साल बाद भी बाढ़ के कारण राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं, हम लोगों द्वारा उनकी मदद के लिए सहयोग मांगना विश्वविद्यालय प्रशासन को ‘awkward’ यानि अनउपयुक्त लग रहा था। मुझे और मेरे साथियों द्वारा बाढ़ पीड़ितों के लिए लोगों से सहयोग मांगने पर BHU प्रशासन द्वारा ना सिर्फ आपत्ति जताई गई बल्कि इस “बेढब” कार्य को फौरन बंद करने को कहा गया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने हमें रोकते हुए कहा कि यह (हमारे साथियों द्वारा बाढ़ पीड़ितों के लिए सहयोग मांगना) भद्दा लग रहा है, इसलिए बंद करो।
ऐसी घटना का देश के किसी भी विश्वविद्यालय में घटित होना शर्मनाक है, परंतु ये घटना देश के ऐसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में हुई जिसकी नींव से लेकर सम्पूर्ण निर्माण में देशभर का सहयोग रहा है। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के अथक परिश्रम व देशभर के लोगों के सहयोग से स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इस घटना का घटित होना दर्शाता है कि हम सामाजिक व नैतिक रूप से अपने पतन के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुके हैं।
BHU प्रशासन नें हमें रोककर ना सिर्फ बाढ़ पीड़ितों का अपमान किया है, बल्कि उन्होंने “महामना” का अपमान भी किया है। खैर बाढ़ तो हर साल आती रहती है। उसके कारण स्वतंत्रता दिवस के जश्न में कोई कमी रह जाए, तो हमारे देश का अपमान होगा। हम पूर्णतः आज़ाद हैं, इसलिए आप हर्षोल्लास के साथ स्वतंत्रता दिवस मना पाए हैं। आने वाले दिनों में दशहरा, दिवाली भी मनाइयेगा और जश्न में कोई कमी नहीं रहने दीजियेगा।
एडिटर्स नोट: इस मामले पर हमने BHU प्रशासन का पक्ष जानने के लिए हमने BHU के वी.सी. श्री जी.सी. त्रिपाठी से बात करने की कोशिश की, लेकिन वो आज बात करने के लिए उपलब्ध नहीं थे। साथ ही BHU के चीफ प्रॉक्टर कार्यालय से भी हमने संपर्क करने की कोशिश की लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं मिल पाया। इस विषय पर कोई भी जानकारी मिलने पर लेख को अपडेट किया जाएगा।