अंध विश्वास और अंधश्रद्धा की तरफ ले जाने वाले इन अफवाहों के बाज़ार ने अब झूठे राष्ट्रवाद का सहारा भी ले लिया है। देश में धार्मिक आस्था और देशभक्ति की भावना के नाम पर लोगों में डर और उन्माद फैलाने की यह साजिश संगठित रूप लेती जा रही है। इसके पीछे साम्प्रदायिक और संकीर्ण सोच वाले समूहों का हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है, तो आज के युवा भी कुछ हद तक इसके लिए ज़िम्मेदार हैं।
सोशल मीडिया के नाम पर मिले वाट्सअप और फेसबुक जैसे माध्यमों के अंधाधुंध प्रयोग और युवा पीढ़ी की जल्दबाजी, स्पैम, कट, पेस्ट व ज़्यादा से ज़्यादा शेयर की आदत ने इन अफवाहों के फैलने और अपने ही लोगों के शिकार होने के लिए एक नई ज़मीन तैयार कर दी है। इन सब अफवाहों को रोकने के लिए हमें ही कहीं रुकना होगा।
अफवाहों का दौर समाज में कब से शुरू हुआ, यह तो बुजुर्ग लोग ही बेहतर बता सकेंगे, फिर भी अगर कोशिश करें तो वह साल याद आता है जब साग भाजियों के पत्तों पर आड़े तिरछे सफेद रंग की खिंची धारियों को किसी नाग नागिन की मौत की परछाई बताने की खबर फैलाई गई थी। तब लोगों ने इन साग भाजियों को एक तरह से खाना ही छोड़ दिया था। फिर इसके बाद अचानक देशभर में गणेश की मूर्तियों के दूध पीने की बात सामने आई, तब भी कितना ही दूध कई मंदिरों में मूर्तियों पर बहा था।
इस बीच अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसी ही कई बातें सामने आती रही हैं। कुछ इसी तरह से एक प्याज रोटी वाली माई का किस्सा भी सामने आया, कहा गया कि जिसने भी उसे प्याज रोटी दे दिया, वह मृत हो गया। तब के भिखारियों की जो हालत हुई, उसे तो वो ही बयां कर सकेंगे। इस तरह की बातों को लेकर तब कई महिलाओं को चुड़ैल बताने और साबित करने की जो प्रक्रिया चली वह आज भी बरकरार है। इसी तरह गत वर्ष सिलौटी की कुटाई अचानक अपने आप हो जाने की घटना पर ग्रामीणों और शहरी झुग्गियों में लोगों ने अपने चटनी मसाले पीसने वाले सिल-पत्थर घर के बाहर निकाल फेंके। इन सबको भूल भुलाकर देश की जनता अपने कामों में उलझी ही थी कि कुछ ही दिन पहले लड़कियों/महिलाओं की चोटी काटने वाली खबर वायरल हुई।
चुड़ैल द्वारा चोटी काटने की अफवाह फैलाने वाली इस खबर के पीछे उत्तर प्रदेश के कुछ सरफिरों की गिरफ़्तारी भी हुई। फिर सामने आया कि कोई कीट है जो आसानी से बाल काट देता है और यह उड़कर बालों में घुस जाता है। इसका वीडियो भी शेयर किया गया है सोशल मीडिया पर। इन अफवाहों का नतीजा क्या हो रहा है, यह झारखण्ड और दूसरे कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में चुड़ैल या डायन के नाम पर हुई महिलाओं की हत्या को देखकर समझा जा सकता है।
यह सब अफवाहों की वह दुनिया है जिसे खासतौर पर महिलाओं, दलितों और कमज़ोर तबकों के खिलाफ रचा गया है। बच्चा चोरी के नाम पर फैली ऐसी ही एक अफवाह से पन्नी-कबाड़ बीनने वाले वंचित समुदायों को आजीविका से दूर होकर हिंसा का शिकार होना पड़ा और इस कारण कितनों की ही हत्या हुई।
नरेन्द्र दाभोलकर जैसे समाजकर्मी जो आज हमारे बीच नहीं हैं, वे ऐसी ही अफवाहों की सच्चाई को सामने लाने के लिए प्रयासरत थे। इन सभी अफवाहों की दो बातो पर ध्यान दें – पहला कि ऐसी ज़्यादातर अफवाहें सावन के महीने में ही फैली हैं। दूसरा कि इन सब अफवाहों को लेकर कभी सरकार की तरफ से कोई सच्चाई उजागर नहीं हुई, जिससे लोग डर के साथ अंधश्रद्धा की ओर गए हैं। यह तो आप ही बताएं कि आज के टीवी वाले बाबाओं, माताओं की खेप बढ़ने का इन अफवाहों से कोई संबंध है या नहीं? कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के जागरूकता सम्बन्धी प्रयासों के अलावा शिक्षा माध्यमों या किसी दृश्य कार्यक्रमों में इन अफवाहों के सच को लेकर अगर सरकार द्वारा कोई जानकारी प्रसारित हुई हो तो भी बताएं। हां मीडिया के द्वारा बीच-बीच में कुछ खुलासे ज़रूर किए जाते रहे हैं, लेकिन ज़्यादातर में धार्मिक आस्था के सवालों की बात मानकर चुप्पी बनी हुई है।
अंधश्रद्धा को बढ़ाती अफवाहें अभी चल ही रही थी कि देश में एक नए तरह के उन्माद और भावनाएं भड़काने वाली और देशभक्त होने को चुनौती देने वाली तथाकथित राष्ट्रवादी अफवाहों का दौर शुरू हुआ है। इसका ताजा उदाहरण हमारे सामने है, बंगाल में फोटोशॉप पर एडिट की गई बांग्लादेश की तस्वीरें दिखाकर हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाने-भिड़ाने की कोशिश करने वाले और इन खबरों को वायरल करने के पीछे कौन लोग थे, यह भी गूगल ही आपको बता देगा। फिर गौहत्या को लेकर कितने ही फर्जी फोटो शेयर हुए, नतीजतन भीड़ द्वारा हत्याओं का काला इतिहास भी लिखा गया।
अभी जब भारत और चीन के बीच तनाव की ख़बरे हैं, ऐसे में एक मैसेज सोशल मीडिया पर इन दिनों खूब घूम रहा है। संभव है कि आपके पास भी वह मैसेज पहुंचा हो, तो उसे आप बिना सच जाने आगे पहुंचाएंगे या अपनी देशभक्ति पर संदेह ना करते हुए वहीं रोक देंगे, यह विचार करने का वक्त है। विवो और ओप्पो मोबाइल कंपनी से जुड़े इस मसले की सच्चाई भी अब गूगल पर आ चुकी है।
इसका सच सिर्फ इतना है कि इन अफवाहबाज़ों की काफी खोजबीन के बाद अमृतसर में पिछले साल “विवो हेल्थ केयर” नामक संस्था द्वारा आयोजित ब्लड डोनेशन कैम्प पर दैनिक भास्कर की खबर मिली। साथ ही पता चला ओप्पो कम्पनी के मोबाइल एप्प के बारे में, जो इसलिए बनाया गया ताकि ब्लड डोनर्स की इन्फार्मेशन आसानी से मोबाइल उपयोगकर्ताओं को मिल सके। बस चीन को गीदड़ भभकियों से डराने और खुद को सबसे बड़ा देशभक्त साबित करने के लिए इसे विवो और ओप्पो मोबाइल कम्पनी का ब्लड डोनेशन कैम्प बताकर अफवाहों के ज़रिये अंध देशभक्ति का प्रचार शुरू कर दिया गया। कारण सिर्फ इतना कि ये मोबाइल कंपनियां चीन की हैं।
यह है वो मैसेज जो झूठ पर आधारित है –
“Oppo और Vivo कंपनी के द्वारा कई जगह Blood Donation Camp का आयोजन किया जा रहा है। कोई भी भारतीय उसमें भाग ना ले, यह चीनी सरकार की चाल है। अगर अभी आपने रक्तदान किया तो अगले 3 महीने तक रक्तदान नहीं कर सकते। इस बीच अगर युद्व हुआ तो भारत में खून की कमी हो सकती है। जिससे हमारे घायल सैनिको को रक्त की कमी होगी और सेना कमज़ोर हो सकती है। इसलिए Oppo और Vivo के Blood Donation Camp में ना जाएं। अन्य लोगों को भी यह जानकारी पहुंचाएं, जय हिंद।”
नीचे कुछ लिंक दिए गए हैं जिन पर आप इस इस अफवाह का सच जान सकते हैं–
http://www.ayupp.com/
https://www.bhaskar.com
इस अफवाह को फैलाने का काम, www.dainikbharat.org के नाम से बने एक ऑनलाइन न्यूज़ वेब पोर्टल ने किया जो खुद को एंटी सेकुलर बताता है। उसकी खबरें कांग्रेस विरोधी होते-होते इसाई और मुस्लिम विरोधी होती जाती हैं। इसका संचालक मंडल या संपादक कौन है, ये वेबसाइट पर कहीं नहीं दिखाई देता। सोशल मीडिया पर इन अफवाहों को पसंद करने वालों और कमेंट्स करने वालों को देखेंगे तो वे हिंदुत्व और साम्प्रदायिक कट्टरता की बातें शेयर करने वाले समूह के युवा और छत्रपति शिवाजी के नाम पर हिन्दुओं की राजनीति करने वाले मिलेंगे। इस न्यूज़ पोर्टल की तश्वीरें पूरी तरह से फोटोशॉप और पेंटबॉक्स पर तैयार की गई साफ प्रतीत होती हैं। फेक न्यूज़ देना इनका मुख्य काम है। कुछ अधिक सर्च करने पर दैनिक भारत के कर्ताधर्ता किसी हिन्दू सेना से ताल्लुक रखने वाले दिल्ली निवासी रवि सिंह और शशि सिंह निकले। हालांकि इस खबर या अफवाह को कुछ और ऐसे ही फेक न्यूज़ वेब पोर्टल और सोशल मीडिया के भक्तों ने खूब हवा दी है।
ऑल्ट न्यूज़ इंडिया ने दैनिक www.dainikbharat.org के बारे में काफी खोजबीन की है। इस लेख का मतलब किसी विदेशी कम्पनी का पक्ष लेना नहीं है और ना ही चीन द्वारा जारी भारत विरोधी गतिविधियों का समर्थन करना है। लेकिन भारत का हित ऐसी अफवाहों से खतरे में ही पड़ा है और खबरों पर से भरोसा टूटा है। जो तथाकथित ‘देशभक्ति’ का काम भावनाएं भड़काकर कुछ लोग करना चाहते हैं, वैसा काम किसी भी देश को और उसके नागरिकों को महान नहीं बनाता। देश से सच्चा प्रेम करना क्या होता है, यह हमें गांधी, विनोबा और जयप्रकाश बेहतर रूप से सिखा गए हैं। आज हमें इन अफवाहों की जगह इतिहास की उन सीखों को अपनाने और फ़ैलाने की ज़रूरत है।