कुछ दिनों पहले ‘हिंदी मीडियम’ फ़िल्म देखी मैंने। फ़िल्म बड़ी अच्छी थी, मतलब बहुत ही मनोरंजक। सबने ख़ूब तालियां बजाई और ठहाके लगाए, साथ में मैंने भी लगाए। फिर जब सिनेमा हॉल से लौटकर घर आया तो सोचने लगा कि ये फिल्म कितनी सार्थक है। जो संदेश यह फ़िल्म देना चाह रही है वो सही है या सिर्फ़ खुद को बेचने के लिए हमें इमोशनल फूल बना रही है। इन सारे प्रश्नों के बीच मैं उलझा हुआ ही था तो एक ख़याल दिल में आया – किसी ऐसे छात्र से इस विषय में बात की जाए जो किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा हो।
तो मैं जा पहुंचा पटना के ही एक लॉज में जहां मेरे कुछ अनुज रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी में जी-जान से जुटे हुए हैं। उनसे तैयारी के विषय में पूछते ही वो बोल बैठे- “भैया, सब कुछ तो ठीके है। ई इंगलिशवे हर बार गड़बड़ा दे रहा है। पिछला बार बैंक पीओ के परीक्षा में ओवरऑल कटऑफ पार थे लेकिन अंग्रेज़ीये में लरबरा गए। बस कैसियो एक बार, ख़ाली एक बार अंग्रेज़ी में कटऑफ पार कर गए न भैया, तब तो नौकरी कोई काट नैय सकता है।” उसकी बातें मैं पहली बार नहीं सुन रहा था। दर्जनों लड़कों से सैकड़ों बार मैं ये सुन चुका था, लेकिन मैं थोड़ा तह तक जाना चाह रहा था।
“क्या भाई, तुम भी ई अंग्रेज़ी का रट लगाए बैठे हो। ज़िन्दगी में सफल होने के लिए अंग्रेज़ी दुरुस्त होना कोई ज़रूरी नहीं है। ढेरों लोग है उदाहरण के तौर पर जिसका अंग्रेज़ी ठीक नहीं है। फिर भी देखो अपना ज़िन्दगी में बहुत सफ़ल है। ई अंग्रेज़ी को लेकर दिल काहे छोटा करते हो? अरे देर-सबेर कौनो न कौनो नौकरी होइये जाएगा। थोड़ा मन लगाकर मेहनत करो। हो जाएगा। बैंक में न होगा तो एसएससी में हो जाएगा, नहीं तो रेलवे में हो जाएगा। रेलवे में त सुनते हैं अंग्रेज़ी भी नहीं पूछता है। तुम दिल छोटा मत करो। मेहनत करो, हो जाएगा।” मैंने उसे प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।
“बात तो आप सही कह रहे हैं। लेकिन ई सोचिए कि अगर हम बचपन से अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़े होते और हमरा अंग्रेज़ी दुरुस्त रहता तो अब तक नौकरी हो गया रहता कि नहीं? ई जो पांच साल से पटना में रोटी बेल रहे हैं ई तो नैय न बेलना पड़ता।” आख़िरकार उसकी व्यथा खुलकर सामने आ रही थी। मैंने उसे टोका, “ऐसा नहीं है यार। इंग्लिश मीडियम स्कूल में सब तेज़ नहीं होता है। वहां भी सब तरह का स्टूडेंट है। कुछ तेज़ कुछ बोका। मिलाजुला के सब जगह एक ही कहानी है।”
“ऊ सब ठीक है। लेकिन ई तो मानते हैं न कि साधारण लड़का जो इंग्लिश मीडियम स्कूल से इंटर पास किया है ऊ कुच्छो नैय तो कम से कम कॉल सेंटर में नौकरी कर के 15-20 हज़ार तो कमा लेगा न। हम लोग इंटर पास करके क्या करें। इंजीनियरिंग और MBA भी करेंगे तो उसके लिए भी अंग्रेज़ी चाहिए। बैंक, एसएससी और अब तो मास्टरो बने लगी अंग्रेज़ी चाहिए। ऐसे में यदि हम लोग अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़े होते तो ज़रूर हम लोग के ऑप्शन ज़्यादा रहता और नौकरी भी जल्दी मिल जाता।” इतनी सारी बातें सुनने के बाद मैंने चर्चा का विषय बदल दिया।
ये तो रही उस अनुज से चर्चा। लेकिन इस चर्चा में भाषा को लेकर और विशेषकर अंग्रेज़ी को लेकर आज छात्रों की क्या मनोवृत्ति है ये आसानी से समझी जा सकती है। उनको भाषाई गौरव और मातृभाषा से लगाव तो है, लेकिन जो चीज़ उनके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है वो है- रोज़गार। उसमें भी प्राथमिकता है सरकारी नौकरी और वो बिना अंग्रेज़ी के अच्छे ज्ञान के होने से रही। ऐसे में आप लाख ‘हिंदी मीडियम’ जैसी फिल्में बना लें, आप मातृभाषा को लेकर गौरवमयी भाषण दे लीजिए या फिर बड़े-बड़े समारोह ही आयोजित करवा लीजिए लेकिन जब तक उन्हें अंग्रेज़ी रोज़गार देती रहेगी उसके प्रति उनका मोह ख़त्म नहीं होगा।
*हिंदी मीडियम के रचनाकारों और कलाकारों के बच्चे किस मीडियम के विद्यालयों में पढ़ते हैं, पता करना चाहिए।