मोदी जी ! आपने शारीरिक रूप से अक्षम भारतीयों की ज़रूरत की चीजों पर टैक्स लगा/बढ़ा दिया? ब्रेल टाइपराइटर पर 18 प्रतिशत? ब्रेल घड़ियों पर भी? हियरिंग ऐड पर 12? उनके चलने फिरने के सामान पर 5? वह भी तब जब आपकी सरकार हर साल पहले तो उद्योगपतियों को ‘इंसेंटिव’ बोल के लाखों करोड़ों की छूट देती है फिर उनका लाखों करोड़ का कर्जा यूँ ही माफ़ कर देती है। क्या तो कहते हैं आप- नॉन परफॉर्मिंग एसेट बोल के? आप चाहे कितने भी तर्क दें, इसे न्यायसंगत नहीं ठहरा सकते मोदी जी!
मैं एक स्पेशल बच्चे की माँ हूं। पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर बच्चे के बाद भी ग्यारह घंटे घर से बाहर रहकर नौकरी करती हूँ। जानते हैं क्यूं? क्यूंकि इस देश में खास लोगों के लिए सुविधाएं, जिसमें कि इलाज, थेरेपी, उपकरण आदि आते हैं, सरकार की तरफ से ना के बराबर उपलब्ध हैं और खुद से अपने बच्चे के लिए ये सब मुहैय्या कराने में कुबेर का खज़ाना भी कम पड़ता है। मुझे आपसे इस बात की शिकायत नहीं है।आप की सरकार ने तो अभी सफलता के तीन साल ही पूरे किये हैं और विकलांग बाकी पार्टियों की तरह आपके भी वोटर नहीं हैं, सो आपको भी उनके लिए सोचने की ज़रूरत नहीं है। आपने तो वैसे भी अपने कर्तव्य का इतिश्री तभी कर दिया था जब विकलांगों के लिए दिव्यांग शब्द ढूँढा था। यकीन मानिये इससे वाहियात काम आपने कोई और नहीं किया अब तक। ये शब्द अपने आप में किसी की विकलांगता का मज़ाक उड़ाता लगता है, खैर, इस पर चर्चा कभी और।
आपने और आपकी सरकार ने GST लागू किया है। ईमानदारी से बताऊँ तो मुझे अर्थशास्त्र की उतनी ही जानकारी है जितनी आपको एंटायर पोलिटिकल साइंस की, और यकीन मानिये कि बिना जानकारी के किसी बात का विरोध या समर्थन करने के लिए जिस भक्तिशास्त्र की डिग्री चाहिए, वो मेरे पास नहीं है। लेकिन अब मुझे आपसे और आपके GST से शिकायत है क्यूंकि इसके दायरे में आकर मेरी बच्ची की ज़रूरत की चीज़ें जो कि पहले से ही बहुत महंगी हैं, और महंगी हो जाएँगी।
मैं और मेरा परिवार बहुत मेहनत कर रहे हैं कि अपने बच्चे को एक आरामदायक जिंदगी दे सकें लेकिन आपके इस असंवेदनशील निर्णय से मेरी ही नहीं, मेरी स्पेशल बच्ची की ज़िंदगी भी और मुश्किल होने वाली है। न, मैं और मेरी बच्ची आपको कोई बद्दुआ नहीं देंगे। आपके पहले वालों ने भी कुछ ख़ास नहीं किया था- हम तब भी लड़ते थे, आगे भी लड़ेंगे। ये ज़रूर है कि आप अगली बार सबका साथ सबका विकास जैसा कुछ बोलेंगे तो हां हँस देंगे- पहले वालों ने कम से कम मेरी बहादुर बच्ची की ज़िंदगी की मुश्किलों पर टैक्स नहीं लगाया था! आप चाहे कितने डंके बजाएं या ढिंढोरा पीटे कि आपने बहुत बड़ा कारनामा किया है, क्रांति की है,आप इसे कैसे सही ठहरा पाएंगे कि जिन खास नागरिकों की बुनियादी जरूरतें पूरा करना आपका राजधर्म था,आपने उनका जीना ही दूभर कर दिया है। राजधर्म समझते हैं ना आप?