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क्या हमने खुद लिख दी है मानवता के विनाश की पटकथा?

वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी पर पांच बार प्रलय आ चुका है, ऐसे ही एक प्रलय में डायनासोर जैसी प्रजातियां विलुप्त हो गई। छठा प्रलय भी अपरिहार्य एवं निश्चित है! ऐसा मानते हैं चोटी के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग और दूसरे बड़े-बड़े वैज्ञानिक। इन वैज्ञानिकों की माने तो यह प्रलय अधिक से अधिक अगली दो शताब्दियों के अंदर अवश्य ही आ जाएगा। पिछले पांच प्रलयों से इस बार के संभावित प्रलय में एक बहुत बड़ा अंतर है। पहले आने वाले सारे प्रलय किसी न किसी प्राकृतिक कारण से उत्पन्न हुए थे। पर अब जो प्रलय आने वाला है वह खुद मानव जाति के हाथों का लाया हुआ होगा।

आप शायद सोच रहे होंगे कि यह प्रलय नाभिकीय युद्ध के कारण होगा और अगर हम ऐसे युद्ध को टाल दें तो शायद हम ऐसे प्रलय से बच सकते हैं। पर यह आपकी खुशफहमी मात्र है। यदि परमाणु युद्ध ना भी हो तो भी इन वैज्ञानिकों के अनुसार दो शताब्दियों के भीतर पृथ्वी का नष्ट हो जाना अपरिहार्य है। हां यह संभव है कि हम उससे पहले ही अपने परमाणु अस्त्र शस्त्र के साथ एक दूसरे से लड़ पड़ें और स्वयं ही प्रलय आने के समय से पहले ही अपनी प्रजाति का विनाश कर डालें।

जिस प्रलय का भय इन वैज्ञानिकों को है उसकी राह पर पृथ्वी मनुष्य द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक शोषण तथा पर्यावरण के विनाश के कारण इस प्रकार लग चुकी है कि अब इस रास्ते से वापस लौटना लगभग नामुमकिन है। ग्लोबल वार्मिंग, वनों का विनाश, ओजोन लेयर में हुए छेद, हवा तथा पानी में फैला हुआ प्रदूषण आदि इसके मुख्य कारण है।

भयभीत हो गए ना?

यदि वाक़ई इस घटना में पूरे 200 साल लगते हैं तो मैं और आप तो यह दृश्य देखने से पहले ही मर चुके होंगे। पर उस समय हमारे बच्चों के बच्चे या उनके बच्चे पृथ्वी पर होंगे। फिर उनका क्या होगा? क्या वह बच पाएंगे? क्या कोई राह है?

शायद मानवजाति पूर्ण विनाश से बच जाए और कम से कम कुछ स्त्री-पुरुष जीवित रहे और मानव जाति का कारवां उनके द्वारा आगे बढ़ सके। पर ऐसा तब संभव होगा जब प्रलय आने से काफी पहले अंतरिक्ष में कोई और ऐसा ठिकाना, कोई ग्रह, कोई उपग्रह, या कोई कृत्रिम अंतरिक्षीय ठिकाना बनाया जा सके जहां मानव जाति में से कुछ स्त्री-पुरुष जाकर रह सकें और फिर वहां उनकी संतान बढ़ सके। इस राह में शोध पर भी अत्यधिक धन का व्यय किया जा रहा है और लगता है कि जल्दी कोई ना कोई ऐसा ठिकाना या कॉलोनी बन जाएगी।

हॉकिंग के शब्दों में “मानव जाति को अपने सभी अंडे एक ही टोकरी में– अर्थात एक ही ग्रह पर नहीं रखने चाहिए। आशा करें कि हम इन अंडों को अलग-अलग टोकरियों में फैलाने से पहले टोकरी गिराकर सारे अंडे नष्ट नहीं कर लेंगे।”

पर यदि ऐसा संभव भी हुआ तो ज़रा सोचकर बताइए अंतरिक्ष की कॉलोनियों में जाकर सुरक्षित निवास करने वाले किसके वंशज होंगे? आपके और मेरे? या केवल उस 1% पॉपुलेशन के जिसके कब्ज़े में आज दुनिया के 50% संसाधन हैं और धीरे-धीरे जिसके पास संसाधनों का प्रतिशत बढ़ता ही चला जा रहा है! ज़ाहिर सि बात है कि स्पेस यात्रा करना उनके लिए ही संभव होगा! हमारे बच्चे शायद इसी ग्रह पर छूट जाएं या तो पूरी तरह विलुप्त हो जाएं या पशुओं और बंदरों जैसी किसी जीवन स्तर पर जीवित रहने पर मजबूर हो जाएं।

यदि ऐसा हुआ तो मानव प्रजाति यानि कि होमो सेपियंस दो अलग-अलग प्रजातियों में विभाजित हो जाएगी। एक वह जो धरती के अधिकतर साधनों के साथ किसी अंतरिक्ष कॉलोनी पर निवास कर रहे होंगे और आगे बढ़ने की राहें देख रहे होंगे और दूसरी वह जो इसी ग्रह पर ज़हरीली जलवायु में तड़प-तड़प कर जी रही होगी। पहली प्रजाति को शायद सुपर ह्यूमन और दूसरी प्रजाति को सब ह्यूमन कहा जाने लगे।

क्यों ना पहली प्रजाति को मिकावली के “सम्मान” में होमो मिकावेलीयस, और दूसरी प्रजाति को धरती मां की प्रतीक गाईया के नाम पर होमो गाईयस कहें। यदि हम चाहते हैं कि हमारे वंशज सब ह्यूमन बनकर इस वीरान धरती में बर्बाद होने के लिए छूट ना जाए तो शायद हमें कोशिश करनी चाहिए कि दुनिया में धन एवं संसाधन वितरण कि यह असमानता ससमय दूर की जा सके।

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