हरियाणा सरकार कि पत्रिका कृषि संवाद में छपे एक फोटो से विवाद खड़ा हो गया है। इस फोटो में घूंघट में एक महिला को सर पर टोकरी रखे दिखाया गया है। और तस्वीर के साथ जो कैप्शन लिखा गया है वो है ‘घूंघट की आन बान म्हारे हरियाणा की पहचान’। मतलब महिलाओं के घूंघट की आन से ही हरियाणा की पहचान है।
अब इस तस्वीर से क्या मतलब निकालना चाहिए इसपर तो कोई विवाद ही नहीं है। हां अगर आप भाजपा के प्रवक्ता हैं तो ज़रूर कह सकते हैं कि हमारा मकसद महिलाओं को घूंघट में बंद करने का नहीं था, इस चित्र को मीडिया ने गलत ढंग से दिखाया वगैरह…वगैरह…। इस तस्वीर से जो बात सामने निकल कर आ रही है वो यही है कि सरकार भी सदियों से चली आ रही महिला विरोधी दकियानूसी विचारों और प्रथाओं का साथ दे रही है। अगर बात महज़ इतनी नहीं है तो किसी सरकारी पत्रिका में घूंघट प्रथा को इतना महान क्यों बताया जाता?
जब आप पत्रिका की वेबसाइट पर जाएंगे तो बाएं तरफ, आर्टिकल ऑन वुमेन इम्पावरमेंट यानी महिला सशक्तिकरण पर लेख चमकता हुआ मिलेगा। लेकिन महज़ लेख लिखकर इस ज़हनी सच्चाई को कैसे छुपाया जा सकता है कि जो सरकार ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा इतने ज़ोर शोर से लगाती है वो महिलाओं को पर्दे के पीछे रखने में अपना सम्मान मानती है।
महिलाओं के घूंघट के पीछे रहने से पूरे हरियाणा को कौन सा सम्मान मिलता है ये समझना मुश्किल इसलिए है क्योंकि एक बराबरी वाले समाज में इसके पक्ष में कोई तर्क किया ही नहीं जा सकता। इस पत्रिका के मुख्य पृष्ट पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की तस्वीर छपी है जिनके कैंपेन का एक बड़ा हिस्सा महिलाओं का सम्मान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे नारों से भरा हुआ था।
ये मौका कांग्रेस के लिए भी अच्छा था राजनीति में अपनी मौजूदगी का एहसास करवाने का सो उन्होंने विरोध किया और जमकर किया। भाजपा को महिला विरोधी पार्टी भी करार दिया।
हालांकि कांग्रेस का राजनीति से इतर इस मुद्दे से शायद ही कोई लेना-देना है। क्योंकि महिलाओं के मुद्दों को तो देश की सभी पार्टियों ने अपनी अपनी सहूलियतों के हिसाब से ही इस्तेमाल किया है।
वैसे CM साहब इसी बार जब हम ओलंपिक में एक अदद मेडल के लिए तरस रहे थे तो आपके ही राज्य की रेसलर साक्षी मलिक ने पूरे देश को उम्मीद दी थी। साक्षी ने तो घूंघट नहीं किया था। फिर आपके फोटो और स्लोगन के हिसाब से तो वो हरियाणा की पहचान ही नहीं है।
जब आपके वरिष्ठ मंत्री अनिल विज सफाई देने आएं तो लगा जैसे सरकार को गलती का एहसास हुआ, लेकिन मंत्री जी का कहने का लहज़ा भी यही था कि हम महिलाओं का सम्मान करते हैं और ज़बरदस्ती घूंघट करवाने के पक्ष में नहीं हैं।
राजनीति और देश की हुकूमत की जड़ में छुपी पितृसत्ता जब ऐसे बाहर आ जाए तो हम भी खामखा ज़्यादा परेशान हो जाते हैं। हमारे तो देश का ही चरित्र यही है। हां नारीवाद के मुद्दे पर बातबहादुर हम सब हैं लेकिन हकीकत हम में से बहुतों की यही है कि महिलाएं हमारे लिए किचन, घूंघट के पीछे ही ठीक हैं।
बाकी इस चीज़ पर क्या ही लिखा जाए कि ये कितना भयानक है या किस कदर हमारे पिछड़ेपन को दिखाता है। यही बात बार-बार, हर दूसरे दिन लिखकर तो इंसान परेशान है क्योंकि हर दूसरे दिन कोई ना कोई इस देश में महिलाओं को अपनी बपौती समझ ही लेता है।