1982 में आई “फिल्म नदियां के पार” ने उस जमाने में धूम मचा दी थी और जिसमें “गुंजन” और “चम्पा” के बीच के प्यार से लेकर शादी तक को बड़ी ही सहजता और सरलता से दिखाया गया था। पर आज जो लोग पूर्वी उतर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं वो उस सरलता और सहजता को केवल अपने सपने में ही महसूस कर सकते हैं। क्योंकि पूर्वी उतर प्रदेश में “Economics” अब शादी और विवाह जैसे पावन गठजोड़ पर हावी हो रही है।
अब लड़के की शादी घर बनवाने, कार में घूमने और सोने की चेन पहनने आदि जैसी इच्छाओं को पूरा करने का एक सबसे आसान रास्ता बन गया है। मेरे एक पड़ोसी को ही ले लीजिए जो लगभग तीन वर्षों से कंडम फ्रिज से गुज़ारा कर रही हैं। एक दिन जब मैंने उनसे पूछा कि आप फ्रिज क्यों नहीं खरीद लेती तब बड़े ही गर्व से बोली “अब का फ्रिज लें, राहुल का शादी होगा तो ये सब चीज तो मिलबे करेगा न! तो काहेको अपना पैसा फसाने जाए।” इनके जैसी सोच न जाने कितने परिवारों की होगी। ऐसा ही एक और मामला है, कुछ हफ्ते पहले इनके बेटे का विवाह तय हो चुका था। लेकिन बाद में जब कोइ और वधू पक्ष पिछले वाले से ज़्यादा दहेज का अॉफर लेकर आया, तो इन्होने पंडित का हवाला दे पहले वाले वधू पक्ष से रिश्ता तोड़ दिया। परिवार कोइ भी हो पर दहेज के प्रति लालच तो सबको ही है।
लड़के को प्रोफेशनल डिग्री हासिल करने के लिए दिल्ली, मुंबई भेजना उसके उज्ज्वल भविष्य से तो ताल्लुक रखता ही है, पर इसका सबसे बड़ा कारण होता है कि दहेज की पात्रता में अव्वल दर्जे से पास होना। दरअसल दहेज का रेट स्लैब कुछ इस तरह से निर्धारित किया जाता है प्रोफेशनल कोर्स यानी इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट की पढ़ाई का रेट सबसे ज़्यादा होता है। और अगर ये डिग्री दिल्ली या मुम्बई जैसे शहरों से हासिल की गई हो तो सोने पे सुहागा अर्थात रेट और बढ़ जाता है। सरकारी नौकरी वाले लड़कों को तो मुंह मांगा रेट मिलता है।
वो लड़के जो जीवन भर गांव में खेती करते हैं, शादी की उम्र हो जाने पर उन्हें भी जबरदस्ती दिल्ली, मुंबई भेज दिया जाता है ताकि दहेज का रेट ज्यादा लगे। लड़का दिल्ली में 7000 हजार की नौकरी करता है पर गांव में उसकी तनख्वाह को 30000 बताया जाता है, ताकि लड़के का पोर्टफोलियो अच्छा लगे और लाखों का कैश, चार पहिया गाड़ी आदि सामान मिल सके। शादी करने और दहेज वसूलने के बाद वो लड़का फिर से गांव आकर खेती करने लगता है।
दहेज के नाम पर धोखाधड़ी आज पूर्वांचल में खूब तेजी से बढ़ रही है। इस वर मंडी में लड़की के पोर्टफोलियो के हिसाब से दहेज की रेट स्लैब में किसी तरह का डिस्काउंट नहीं दिया जाता है। लड़की के पक्ष के लोग हर वक्त वर पक्ष के सामने हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं, जैसे लड़की को जन्म देकर उन्होंने पाप कर दिया हो और उस पाप का पश्चाताप कर रहे हों। दहेज की प्रथा को कानूनन अपराध माना गया है, इस अपराध को पूर्वांचल के लोग शादी का अटूट अंग मान चुके हैं और कई लोग तो इसे रिवाज मान चुके हैं।
अब दहेज का मूल्य परिवार का Status Symbol बन गया है और कम दहेज मिलना या तो लड़के में किसी तरह की कमी या परिवार के भीतर किसी तरह की कमी को उजागर करता है, जिससे ये प्रथा अब और तेजी से बढ़ रही है। मिश्रा जी को 8 लाख मिला तो तिवारी जी का 12 लाख लेना तय है। और अगर तिवरी जी को 12 लाख मिला तो दुबे जी 15 लाख से एक रुपया कम नहीं लेंगे वरना उनके परिवार कि साख पर बट्टा लग जाएगा।