पंजाब में खतरे के स्तर से ज़्यादा गंभीर हो चुकी कैंसर की बीमारी का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि रोज़ाना बठिंडा से बीकानेर जाने वाली एक ट्रेन को लोगों ने कैंसर ट्रेन का नाम दे दिया है। पूछ-ताछ खिड़की पर अक्सर, लोग इस ट्रेन की इनक्वायरी कैंसर ट्रेन बोलकर करते हैं। रेलवे कर्मचारी भी इस नाम के आदी हो गये हैं और उन्हें कोई आपत्ती नहीं होती।
रोज़ाना रात को तकरीबन 9 बजकर 25 मिनट पर चलने वाली इस ट्रेन में लगभग 12 कोचेज़ हैं। इस ट्रेन में कैंसर मरीज़ की मुफ्त यात्रा की सुविधा है। मरीज़ के साथ 1 यात्री को किराये में 75% तक की छूट भी मिलती है। रोज़ लगभग 200 से ज़्यादा कैंसर मरीज़ इसमें सवार होते हैं। सबकी मंज़िल होती है बीकानेर का आचार्य तुलसी रीज़नल कैंसर ट्रीटमेंट और रिसर्च सेंटर। 325 किलोमीटर का सफर करके और कुछ 20 से ज़्यादा स्टेशनों से होती हुई, सुबह ये ट्रेन बीकानेर पहुँचती है।
आचार्य तुलसी रीज़नल कैंसर ट्रीटमेंट और रिसर्च सेंटर को सरकारी सहायता प्राप्त है। साथ ही इस संस्था को आचार्य तुलसी शांति प्रतिस्ठान ट्रस्ट का सहयोग भी प्राप्त है। ये अस्पताल देश के उन चुनिंदा अस्पतालों में से है जहां हर कैंसर का इलाज मुमकिन है। अस्पताल में इलाज का खर्च भी काफी किफायती है। यहाँ दवाइयाँ भी बेहद किफायती दाम पर उपलब्ध है इसी के साथ अस्पताल की कैंटीन में बेहद सस्ता खाना और जो मरीज भर्ती नही हैं और उनके रिश्तेदारो को रुकने के लिये धर्मशाला में 50 रुपये में कमरा उपलब्ध करवाया जाता है। इसी के साथ-साथ पंजाब सरकार की मुफ्त इलाज स्कीम मुख्यमंत्री पंजाब कैंसर राहत कोष स्कीम के तहत भी ये अस्पताल दर्ज है। पंजाब के सबसे करीब इस कैंसर अस्पताल के होने से ही पंजाब के लोग कैंसर ट्रेन से बीकानेर आते हैं, लेकिन पंजाब में कुछ ही समय में कैंसर एक खतरनाक बीमारी कैसे बन गया ये जानना ज़रूरी है।
बठिंडा और इसके आस पास के इलाके मसलन मानसा, गिदड़बाहा, साबो की तलवंडी, में पंजाब के मुकाबले ज़मीन रेतीली है। यहाँ गर्मियों में चावल की खेती करना, खासकर छोटे किसान के लिये एक घाटे का सौदा ही है। चावल की खेती के लिए पानी भरपूर चाहिए जिसके लिए बिजली ना आने से डीजल जलाकर ट्यूबेल चलाना, फसल की लागत कई गुना बढ़ा देता है। वहीं पंजाब में पीढ़ी दर पीढ़ी घट रही ज़मीन के चलते, बठिंडा और बाकी पंजाब के मद्यमवर्गीय और छोटे किसान, कपास की खेती करना ज़्यादा लाभकारी समझते हैं।
लेकिन, इस देश में किसान की समस्या का कभी अंत नहीं होता, कभी बिन मौसम बरसात तो कभी आंधी, लेकिन आज जो कपास की खेती के लिये सबसे हानिकारक हैं वह एक कीट है। इस कीट का असली नाम अमेरिकन बॉलवर्म है। पंजाबी किसानों ने इसका देसी नाम अमेरिकन सूंडी दिया है। ये इतनी ताक़तवर है कि कपास के फूल को कमज़ोरकर देती है, जिससे कपास की पैदावार कम या नाम मात्र की रह जाती है।
अब इस कीट को रोककर अपनी फसल बचाने के लिये किसान कीटनाशक का उपयोग करता है। लेकिन जब छिड़काव किया जाता है तो तय मानक से कहीं ज़्यादा कर दिया जाता है। एक अंदाज़े के मुताबिक पंजाब में कपास पर छिड़की जाने वाली कीटनाशक प्रति हेक्टेयर 900-1000 ग्राम है जो बाकी देश के किटनाशक छिड़काव 500 ग्राम प्रति हैक्टेर से लगभग दोगुना है। जानकार पंजाब में कैंसर की बढ़ती बीमारी के लिये इस किटनाशक को ही मुख्य वजह बताते हैं।
लेकिन इसके और भी कारण हो सकते हैं मसलन कपास का BT कॉटन बीज। BT कॉटन तैयार करते वक्त इसके बीज में एक बैक्टीरिया मिला दिया जाता है। जो कपास के पौधे में एक प्रोटीन पैदा करता है। इस प्रोटीन का नाम CRY प्रोटीन दिया गया है। इसके खाते ही अमेरिकन बॉलवर्म कीट के पेट में एक ज़हर प्रवेश कर जाता है जिसके चलते इस कीट की मौत हो जाती है। ये उपाय कारगर भी सिद्ध हुआ है।
गुजरात में इस तरह के बीज निर्माण की फैक्टरियों की भरमार है और पंजाब का किसान मार्च-अप्रैल-मई महीने में अधिकांशत: यहीं से इस बीज को खरीदता है। इसका मैं गवाह हूं इन महीनों में गंगानगर, मंडी डबवाली, बठिंडा, मानसा, इत्यादि इलाकों के किसानों से अहमदाबाद-जम्मूतवी (19223) की ट्रेन भरी होती है। लेकिन जो बैक्टीरिया एक बीज के रूप में ज़मीन में बोया जाता है और आगे चल कर एक जहर को जन्म देता है, वह ज़मीन बाकी की फसलों पर भी नुकसान तो करेगी ही। यूं तो BT कॉटन पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त है, लेकिन लोकल फैक्टरी में इस बीज निर्माण के लिये कौन से केमिकल उपयोग किये जा रहे हैं ये एक महत्वपूर्ण सवाल है। इसकी जांत होनी ही चाहिए कि क्या वह रजिस्टर्ड केमिकल में से हैं या नहीं ?
निजी और क्षणिक लाभ के चलते यहां किया गया समझौता, ज़मीन के साथ साथ इंसानी शरीर को भी कैंसर की बिमारी दे सकता है।
कैंसर की बिमारी का एक तथ्य और भी दिया जा रहा है। वह हानिकारक पानी को पीने के लिये इस्तेमाल करना, मेरे गाँव में साफ़ पानी का स्रोत ज़मीन के तल के 300 फिट के आस पास है। चावल की खेती के लिये निरंतर निकाला जा रहा पानी और औसत बारिश से कम बरसात इस तल को और नीचे लेकर जा रहे हैं। सरकार की अनदेखी के कारण एक गरीब परिवार इसी हानिकारक पानी को पीने के लिये मजबूर है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
ज़मीन, को उपजाऊ बनाने के लिये फॉस्फेट (यूरिया) का छिड़काव बहुत ज़्यादा किया जा रहा है। पंजाब की मिट्टी से लीथल यूरेनियम की मौजूदगी की खबरें भी सामने आ चुकी हैं। ये लीथल यूरेनियम मिट्टी के साथ-साथ पानी को भी दूषित कर रहा है। और ये भी एक वजह है कैंसर के मरीज़ों की बढ़ती संख्या का। यूं तो बठिंडा कोई औद्योगिक शहर नही हैं लेकिन रिफाइनरी की मौजूदगी और बाकी छोटी-छोटी औद्योगिक इकाइयों के चलते पानी दूषित हो रहा है।
बठिंडा, जहाँ से बादल परिवार आता है, जो राज्य और केंद्र की राजनीति पर एक अपनी पकड़ रखता है वो एक कैंसर बेल्ट बनता जा रहा है, यहां राजनीतिक ईमानदारी पर सवाल किये जा सकते हैं। वही किसान एक ऐसी दोहरी समस्या का सामना कर रहा है जिसमें अगर वह कीटनाशक का छिड़काव नहीं करता तो आर्थिक बदहाली की ओर बढ़ता है। जहां बैंक और साहूकार का कर्जा, उसकी ख़ुदकुशी का कारण बन सकता है। अगर वह फसल पर कीटनाशक का छिड़काव करता है या BT-कॉटन का बीज इस्तेमाल करता है तो कैंसर जैसी बीमारी का खतरा मंडराता है। किसी सरकारी पहल की नामौजूदगी में आज किसान खुद को लाचार समझ रहा है।
इस कैंसर ट्रेन के बंद होने के तो अब आसार कम ही नज़र आते हैं लेकिन मुझे शंका है कि हो सकता हैं कैंसर के मरीज़ों की संख्या में बढ़ोतरी होने से इसकी बोगियों की संख्या बढ़ा दी जाये।