7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने बम्बई हाई कोर्ट के फैसले को बरक़रार रखते हुए बृहनमुंबई महानगर पालिका (BMC) को त्वरित तौर पर 2700 ठेका मजदूरों को स्थायी नौकरी देने और वर्ष 2014 से स्थायी कर्मचारियों के वेतनमान के अनुरूप बकाया वेतन देने के आदेश जारी किए। सभी 2700 कर्मचारी न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (एन.टी.यू.आई.) संबद्ध कचरा वाहतुक श्रमिक संघ के सदस्य हैं, जिसने 10 साल से भी लम्बे चले इस कानूनी संघर्ष में मजदूरों की अगुआई की।
इस फैसले से असंतुष्ट बृ.म.पा. (BMC) ने बम्बई हाई कोर्ट में याचिका दायर कर औद्योगिक प्राधिकरण के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की। हाई कोर्ट ने महानगर पालिका के सभी दावों को झूठा पाया और ठेकेदारी प्रथा की आड़ में मजदूरों के वेतन की चोरी और अधिकारों के हनन पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए महानगर पालिका की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने बृ.म.पा. (BMC) को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा की सफाई कर्मचारी ज़्यादातर दलित और कमज़ोर तबकों से आते हैं और शब्दों का हेर-फेर कर फर्जी अनुबंधों के सहारे उनसे कम वेतन पर काम करवाना और उन्हें स्थायी मजदूरों को मिलने वाली सेवाओं से वंचित रखना न सिर्फ कानून का उल्लंघन है बल्कि अमानवीय है और दलितों के प्रति सरकार की नैतिकता पर भी सवाल खड़े करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 7 अप्रैल को हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गयी बृ.म.पा. (BMC) की याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। फैसले के बाद से मजदूरों में ख़ुशी की लहर है। गौरतलब है कि ठेका मजदूरों से न्यूनतम वेतन पर काम करवाया जा रहा था, जबकि स्थायी मजदूरों को 25 हज़ार रूपए मासिक का वेतन दिया जाता है। इसके अलावा स्थायी मजदूरों को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं और अवकाशों से भी ठेका मजदूर वंचित थे।
एन.टी.यू.आई के सचिव और कचरा वाहतुक श्रमिक संघ के महासचिव मिलिंद रानडे का कहना है कि, “सरकार लम्बे समय से ठेका मजदूरी प्रथा की आड़ में श्रम अधिकारों का हनन करती आ रही है। यूनियन के सदस्यों के अलावा भी कई ऐसे मजदूर हैं जो आज भी अमानवीय स्थितियों में काम करने पर मजबूर हैं। इस जीत से यह साबित होता है की बृ.म.पा. (BMC) पिछले कई सालों से ठेका मजदूरी विनियम अधिनियम की अवमानना और सफाई कर्मचारियों का दोहन करती आ रही है। हम आगे भी ठेका मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने को प्रतिबद्ध हैं।”
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