आज देशभर में लोग आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, लेकिन राजस्थान राज्य के कुछ ज़िले कब से ही पिछड़ेपन का दाग को झेल रहे हैं। जहां सुविधाओं के नाम पर बस नेताओं के कोरे वादे हैं। आज भी यहाँ आदिवासी अंचल के कारण कोई भी अधिकारी या डॉक्टर राजस्थान बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतपगढ़ ज़िले में काम नहीं करना चाहते है पर आज के समय में यहाँ से भी आईएस, आरएस, डॉक्टर जैसे बड़े पदों पर युवा काबिज़ हो रहे हैं।
ये ज़िले हमेशा से ही पिछड़ेपन का तमगा लिए हैं और टीएसपी इलाके में आते है यहाँ आरक्षण भी अच्छा खासा मिला हुआ है। इस आरक्षण ने यहाँ जो बदलाव किये हैं वो शायद बड़े-बड़े शहरों में हुआ होगा। जो सिर्फ एक तरफ नहीं चौतरफा विकास कर रहा है। तेजी से अपने आपमें बदलाव ला रहे हैं यहां के लोग। इसका सबसे बड़ा असर शिक्षा, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर हुआ है। इसके बाद वे अपने समाज में कई तरह के बदलाव ला रहे हैं। आइये देखते हैं इन तीनों स्तर पर कैसे बदल रहा है आदिवासी समाज:-
सामाजिक –
शिक्षा और आर्थिक स्तर सुधरते ही वे अपने साथ-साथ समाज के विकास में भी लग गए, जो काफी बड़ा बदलाव है। यूं तो शहरों में कोई पार्टी या शादी हो तो उसमें शराब और शबाब होना आम बात है। इस समाज में भी यही उनके स्तर पर चल रहा था। जबकि सभी को पता है कि यह एक बुराई है। इसके बावजूद हम इसे एक लिविंग स्टेंडर्ड में मानते हैं। आदिवासी समाज ने इसका बहिष्कार शुरू कर दिया है। अब यहां किसी भी शादी-पार्टी में मेहमानों को शराब नहीं परोसी जाती है। यहां पर मृत्युभोज नहीं होता है। यहां पर आर्थिक सब्बल के लिए नातरा प्रथा (ऐसी प्रथा जिसमें कोई भी विवाहित महिला या पुरुष अगर अपनी मर्ज़ी से किसी और के साथ रहना चाहते हैं तो एक रकम अदा कर के रह सकते हैं) भी की जाती है।
इस समाज में सबसे बड़ी दो कुरुतियां थी, पहली तो बाल विवाह और दूसरी मौताणा (एक प्रथा जिसमें अगर किसी ने किसी की हत्या कर दी तो उसके बदले कानूनू कार्रवाई के बदले भारी हर्ज़ाना वसूला जाता है और संबंधियों के घर लूट लिए जाते हैं)। सरकार का रुख देखते ही अब समाज ने इस पर भी तेजी से काम शुरू कर दिया है। वे अब मौताणा और बाल विवाह नहीं होने देते हैं। यहां तक की कई जगहों पर तो बाल विवाह कराने पर समाज स्तर पर आर्थिक दंड भी निर्धारित कर दिया है। यहां तक की अब यहां शादियों में डीजे और तेज आवाज करने वाले साऊंड पर भी बैन लगा दिया है।
शिक्षा :-
आरक्षण ने सबसे पहला लाभ शिक्षा का ही दिया है। पहले जो लोग सिर्फ अपनी खेती और सेवा के कार्यों से जुड़े रहते थे। उन्हें अब आप सभी विभागों में ऊंचे-ऊंचे पदों पर देख रहे होंगे, अब वो पढ़-लिखकर आगे बढ़ने का विचार करते हैं। आज आदिवासी समाज के हर घर में सभी स्कूल जाते हैं, स्कूल लेवल तक की शिक्षा तो वो ग्रहण करते ही हैं। इसके अलावा सरकारी मदद से वे उच्च शिक्षा की ओर भी बढ़ रहे हैं।
आर्थिक :-
शिक्षा का स्तर सुधरने से वे कई सरकारी नौकरियों में लगने लगे। साथ ही अपने परिवार व समाज के कई लोगों को शिक्षा से जोड़ते गए। खेती में भी पारंपरिकता को छोड़कर नए-नए प्रयोग करते गए हैं। इससे उन्हें आर्थिक स्तर में एक बड़ा बदलाव आया है। आज वे भी पक्के मकानों में रहते हैं।