सन 1947, एक तरफ जहां आज़ादी मिलने की खुशी थी वहीं दूसरी तरफ बंट जाने का दर्द। एक देश दो भागों में बंट गया और यह सिर्फ ज़मीन का बंटवारा नहीं था बल्कि दो कौमों, दो संस्कृतियों का विभाजन था। दिलों के इस विभाजन से उपजी नफरत ने लाखों लोगों का कत्ल किया और करोड़ों को बेघर। इसे विश्व की सबसे बड़ी इंसानी पलायन की घटना के रूप में जाना जाता है और इन दो देशों- भारत और पाकिस्तान को बांटने वाली इस सीमा को हम रेडक्लिफ रेखा के नाम से जानते हैं।
इस सीमा का नाम बंटवारे के फैसले पर अपनी मुहर लगाने वाले सर सिरिल रेडक्लिफ के नाम पर ही पड़ा है। रेडक्लिफ उस समय बॉर्डर कमीशन के चेयरमैन के पद पर थे जिन्हें यह काम ब्रिटिश सरकार द्वारा सौंपा गया था। इस फैसले का अलग-अलग विश्लेषण हमने कई बार किया है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि उस इंसान की मनोस्तिथि के बारे में जिस पर इस फैसले को लेने का भार था?
क्या चल रहा था उस समय इस अफसर के मन में? कैसी परिस्तिथियों का सामना वो कर रहा था? किस तरह का दबाव था उनके मन में जब वो यह फैसला ले रहा था और फैसले के बाद वो किस तरह से निराशा और अपराधबोध से घिर गया था? इन्ही सब सवालों का जवाब दे रही है ये राम माधवानी निर्देशित यह छोटी से फिल्म This Bloddy Line.

हितेश Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।