यूपी चुनाव के नतीजे हमारे सामने हैं, जिनमें भारतीय जनता पार्टी ने 300 से भी ज़्यादा सीटें हासिल कर एकतरफा जीत दर्ज की है। समकालीन राजनीती में इसे दक्षिणपंथ की सबसे बड़ी जीत के रूप में देखा जा सकता है। चुनावों के जानकार और विश्लेषक तो इसे भाजपा की 2014 के लोकसभा चुनावों से भी बड़ी जीत मान रहे हैं।
आज का विश्व समुदाय, सत्ता के तीसरे दौर में प्रवेश करने जा रहा है। [envoke_twitter_link]पहले राजशाही रही फ़िर लोकतंत्र आया अब दक्षिणपंथी लोकतंत्र आ रहा है।[/envoke_twitter_link] अलग-अलग देशों में एक जैसे लोग, एक जैसे मुद्दों के साथ जनता की समाजिक-राजनीतिक गोलबंदी कर रहे हैं।
इस बात के अन्य बड़े दो उदाहरण हैं: ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन (EU) से बाहर जाना (Brexit) और अमेरिका में ट्रम्प का जीतना। इन दोनों घटनाओं के अभियानों को देखा जाए तो, पहले जनता के बीच एक डर को बनाया गया। आर्थिक-सुरक्षा, सांस्कृतिक-सुरक्षा का डर और इन दोनों का विरोधी अप्रवासियों को बनाकर पेश किया गया और फ़िर एक नस्लवादी-जातिवादी घृणा समाज में पैदा की गयी तथा इस सभी को राष्ट्रवाद से जोड़ा गया। BREXIT और ट्रम्प दोनों के ही अभियानों में [envoke_twitter_link]अप्रवासियों को आर्थिक और सांस्कृतिक असुरक्षा का ज़िम्मेदार ठहराया गया और नस्लवादी घृणा पैदा की गई।[/envoke_twitter_link]
इसके साथ ही ये भी सच है कि[envoke_twitter_link] वैश्वीकरण नाकामयाब होता जा रहा है और असमानता पिछले कुछ सालो में बहुत ज़्यादा बड़ी हैं।[/envoke_twitter_link] ग्लोबल हेल्थ डाटाबुक की रिपोर्ट बताती है कि केवल भारत में 58.4% सम्पत्ति की मलिक 1% जनता हैं तथा पूरे विश्व के आंकड़े इसी प्रकार कि असमानता दिखा रहे हैं। इसी [envoke_twitter_link]आर्थिक-असुरक्षा के शिकार लोगों का दक्षिणपंथ की ओर रुझान बढ़ा है।[/envoke_twitter_link]
दक्षिणपंथी जनता के नुमाइंदे बनकर उभरे हैं और वो वैश्वीकरण के विरोधी हो गए हैं, अपने लोग और अपना देश कि बात कर रहे हैं। परंतु इस नुमाइंदगी में एक विरोधाभास है। जैसे कि ट्रम्प, जो विश्व के सबसे धनी व्यक्तियों में आते हैं वो गरीबों के हीमाइती बन गये हैं और भारत में जो पार्टी दुनिया के दूसरे सबसे महंगे चुनाव-अभियान (10,000 करोड़) के सहारे सत्ता में आयी है, वो कालाधन ख़त्म करने कि बात कर रही है।
लेकिन लोग इन बातों पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, क्यूंकि उनके देशों को दोबारा महान बनाने का वादा किया गया है और इस महानता को हासिल करने के लिये समाज के एक हिस्से के हितों को कुचलने की शर्त को लोगों ने अपना भी लिया है। उनके अंदर एक डर बैठा दिया गया है कि अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो ये दूसरे धर्म, जाती, नस्ल के लोग और अप्रवासी लोग तुम्हारे हितों को कुचल देंगे।
हालाँकि अभी भी कहीं ना कहीं इस सब का विरोध हो रहा हैं अमेरिका में ट्रम्प कि जीत के बाद उनके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं तथा ब्रिटिन में BREXIT के बाद EU में रहने का समर्थन करने वाले लिबरल डेमोक्रेट ‘साराह ऑलने’ BREXIT समर्थक ‘ज़ेक गोल्डस्मिथ’ से भारी मतों से रिचमंड पार्क क्षेत्र से जीती हैं। तो अभी भी जनता एक ही धारणा का शिकार नहीं हुई है, लेकिन ये बात कही जा रही हैं कि [envoke_twitter_link]विश्व के इस तीसरे सत्ता अध्याय के परिणाम भयानक होंगे।[/envoke_twitter_link]