कमरों और गाड़ी में धूम्रपान करने के बाद तम्बाकू के धुंए के हानिकारक केमिकल कपड़ों, दीवारों, फर्नीचर, कारपेट, बालों और बच्चों के खिलौनों आदि चीजों में चिपक जाते हैं। साथ ही धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के कपड़े और त्वचा निकोटीन और अन्य हानिकारक केमिकल्स के अवशेषों को सोख लेती है जो कि घर से अन्दर-बाहर जाने पर भी उसी के साथ जाते हैं। इन्हीं अवशेषों को थर्ड-हैण्ड स्मोक कहा जाता है। जो भी व्यक्ति इनके सम्पर्क में आता है, खासकर नवजात शिशुओं और बच्चों को इससे कई बीमारियां होने की संभावनायें होती है। बच्चों में इसके चलते सांस संबंधित बीमारियों के साथ ही कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी भी हो सकती है।
सिगरेट में 4000 से ज़्यादा केमिकल्स होते हैं जिसमें 50 से ज़्यादा ऐसे तत्व होते हैं जो खासतौर पर कैंसर के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। साथ ही इनमें कुछ रेडियोएक्टिव तत्व भी होते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी जगह धूम्रपान करता है तो सिगरेट के धुंए में पाये जाने वाले ये केमिकल कमरे की दीवारों, कारपेट, व्यक्ति की कपड़ों और वहां मौजूद सामान द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इन केमिकल्स को आसानी से हटाना भी मुश्किल होता है।
एक ही जगह पर लगातार धुम्रपान करने से इनकी एक परत बन जाती है। केमिकल्स की इन परतों को केवल पंखे की हवा या खिड़कियां खोल देने मात्र से नहीं हटाया जा सकता है। सिगरेट में में निकोटीन, टार, हाइड्रोसायनिक एसिड, टोल्यूनि, आर्सेनिक, लैड और पोलोनिक आदि जैसे हानिकारक केमिकल्स होते हैं।
ये केमिकल्स कमरे में मौजूद ओजोन के सम्पर्क में आकर खतरनाक कैंसरकारी केमिकल कंपाउंड बनाते हैं जो खासतौर पर बच्चों की ग्रोथ को प्रभावित करते हैं। ये सभी केमिकल्स अन्य चीज़ों के साथ बच्चों के खिलौनों पर भी इकठ्ठा होते हैं और बच्चें ना केवल खिलौनों के साथ खेलते हैं बल्कि उन्हें मुंह में भी डालते हैं। साथ ही वो इन केमिकल्स के संपर्क में आई अन्य चीज़ों और धुम्रपान किये हुए व्यक्ति के पास जाते ही रहते हैं। इस कारण बच्चों में कैंसर, अस्थमा और सांस संबंधी कई बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।
इस बारे में वैदिकग्राम के सीईओ डॉ. अजय सक्सेना का कहना है, “पहले तो सिगरेट पीना छोड़ देना चाहिये, यदि ऐसा संभव नहीं होता है तो बंद कमरों और गाड़ियों के अंदर सिगरेट ना पिएं। साथ ही सिगरेट पीने के बाद बच्चों के सम्पर्क में आने से पहले ही कपड़े बदल लें जिससे हानिकारक केमिकल्स बच्चों के सम्पर्क में ना आ सके। ऐसा ना करने से बच्चों में कई खतरनाक बीमारियां बचपन से ही घर बनाना शुरू कर देती है।”