कुछ दिनों से लगातार सुबह की सैर हो रही है। कहते हैं सुबह अच्छी रहे तो दिन भी अच्छा कटता है। आज बाज़ार से दो-ढाई किलोमीटर दूर निकल गए। रामपुर मजरहट की तरफ। यह सिंघेश्वर का ग्रामीण इलाका है जो गौरीपुर होते हुए रामपुर मजरहट तक है। यह गांव पटोरी पंचायत के अंतर्गत आता है। ये इलाका है बिहार के मधेपुरा जिला का।
करीब 3 साल बाद यहां आने का अवसर मिला। यह समय उचित है इन बातों को करने का क्योंकि अभी न पंचायत चुनाव है न विधानसभा के चुनाव। अक्सर लोग मुझे विरोध की राजनीति करने वाला कहते हैं और यह ठीक भी है, मैं विरोध करने से पीछे नहीं हटता। इसलिए बिना राजनीति से प्रेरित हुए यह बातें मैं आपके सामने रख रहा हूं।
पर अगर योजनाओं की बात हो रही है तो बता दें कि योजना जब तक ज़मीनी स्तर पर अंतिम व्यक्ति को लाभ न पहुंचा दें तब तक सफल नहीं कही जाती। सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए मैंने करीब 30-40 लोगों को मजरहट पुल के निकट खुले में शौच करते हुए देखा। नीतीश कुमार की हर घर शौचालय योजना पर यह करारा तमाचा था। कुछ लोगों से बात हुई तो पता चला की ज़मीन पर कुछ लोग अपना हक बता रहे हैं इसलिए शौचालय बनवाने नहीं दे रहे हैं। वहीं कुछ लोगों ने बड़ा मार्मिक उत्तर दिया। जिस पर शायद विचार करने की आवश्यकता है।
राज्य सरकार की तरफ से शौचालय मद में 12000 रूपए आते हैं। पर 12,000 के बारे में मैं यह जानता हूं कि यह राशि बहुत कम है। एक साधारण सा शौचालय जिसमें एक छोटी सी टंकी, दीवार और शेड लगी हो, उसे बनवाने में करीब ₹20000 लगते हैं। पर सरकार केवल ₹12000 देती है और इस 12000 में भी क्या हाल है यह आगे देखते हैं।
एक ग्रामीण से पूछा तो उसने बताया कि शौचालय के लिए ₹6000 ही मिले हैं। उन लोगों ने कहा कि सरकार की तरफ से तो 12000 आवंटित हैं, लेकिन पंचायत के प्रतिनिधि कहते हैं कि जो दे रहे हैं रख लो नहीं तो ये भी नही मिलेगा। जानकर पहले तो आश्चर्य हुआ फिर याद आया कि शहर के पढ़े-लिखे लोग जब 12000 की जगह 3000 कमीशन देकर ₹9000 ही ले रहे हैं तो अशिक्षित ग्रामीणों को तो ₹6000 भी अधिक ही लग रहे होंगे।
आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि भ्रष्टाचार किस तरह से हमारे समाज के अंदर तक घुस चुका है। पर क्या इसे योजना की सफलता मानी जाए? मीडिया व्यस्त है उद्घाटनों एवं रंगमंच की खबर देने में। नीतीश बाबू एक पल नहीं छोड़ते वाहवाही लूटने में। दरअसल, राष्ट्रीय राजनीति एवं मुद्दें, हम पर इस कदर हावी हो चुके हैं कि हमारा ध्यान पंचायतों की परेशानियों पर जाता ही नहीं। जबकि लोकतंत्र की नींव तो पंचायतों से ही है। आज़ादी के 70 साल बाद भी विकास की ये असमानता देखकर, मन में तकलीफ और मायूसी दोनों आती है।
फोटो आभार: Aga Khan Development Network और गुंजन गोस्वामी
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