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लड़कियां कमाल हैं, बवाल हैं सिर्फ प्रेम में बावली नहीं है

मेरे पिया गए इंग्लैंड, रंगून फिल्म का गाना है, रेखा भारद्वाज ने गाया है। सुन कर अच्छा लगेगा, ढोलक की मस्त आवाज़ आती है, कंगना ठुमके भी मस्त लगाती हैं, फ़ौजी भी दिखेंगे, थोड़ा ड्रामैटिक भी है। मुझे तो गाने के बोल पहली बार में अजीब से, अलग से लगे और जी हां, जो हटके दिखता है- वही बिकता है।

शायद इसलिए इसे इतना हटाया गया, फ़ौजियों के सामने परफॉरमेंस हो तो तोपों पर चढ़कर ठुमके लगाना शायद काम कर जाए, पर मेरी फ़ेमिनिस्टिक सोच हर लुभावनी चीज़ में कमी ढूंढ लेती है।

गाने के बोल हैं- मेरे मियां गए इंग्लैंड, बजा के बैंड, जाने कहाँ करेंगे लैंड… इस तरह वो पूरा बखान करती है अपने मियां का और अंत में इंग्लैंड-पेरिस घूमने वाले मियाँ से गुजारिश करती है कि “बस भूल ना जाए मेरा बस-स्टैंड।”

मेरी समझ से परे है, कि बॉलीवुड में अभी भी ऐसी फ़िल्में और गाने क्यों बनते हैं? क्या उन्हें लगता है कि अभी भी लड़कियां ऐसे गाने सुन कर खुश हो जाएंगी? क्या अभी भी वो अपने मियां से बस इतना चाहती हैं कि वो उन्हें भूले ना? क्या वाकई अभी भी लड़कियां प्यार में इतनी बावली हैं?

ज़नाब अब लड़कियां खुद अकेले पेरिस-इंग्लैंड घूम आती हैं और लड़कियां ज़िद करके मियाँ जी को साथ भी लेके जाती हैं। मैं नहीं कनेक्ट कर पायी गाने से खुद को। हाँ ये गाना कुछ-कुछ, “मेरे पिया गए रंगून” जैसा है, लेकिन उसके लिरिक्स ज्यादा अच्छे थे, जिसमे गए पिया टेलिफ़ोन करते हैं, तो वो कहती है कि तुम्हारी याद आती है।

जो लड़कियाँ “लंडन ठुमकदा” जैसे गानों पर थिरकती हों, वो कैसे कनेक्ट करेंगी ऐसे गाने से? करना भी नहीं चाहिए। लड़कियां कमाल हैं-बवाल हैं, सिर्फ प्रेम में बावली नहीं है। बॉलीवुड को उन्हें सिर्फ इंतज़ार करती औरत के रूप में दिखाना अब बंद करना चाहिए।

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