सर्दी के मौसम में एक रुपये का समोसा मिल जाए तो ऐसा लगता है जैसे-एटीएम में पहला नम्बर आ गया और पांच-पांच सौ के पांच नोट हाथ में हों। एटीएम की लाईन हो या सुलभ की, दोनों में कष्ट बराबर होता है। एक जगह त्याग की भावना तो दूसरी तरफ पाने की लालसा। [envoke_twitter_link]लाईन में खड़ा होना एक भारतीय के लिए सबसे बड़ा दण्ड है, क्योंकि वह उदण्ड है।[/envoke_twitter_link] समोसा और लाईन कुछ पचा नहीं। समोसे के लिए लाईन क्यों? क्या समोसा 2000 का नोट हो गया है या फिर पुराना 1000 और 500 का नोट हो गया है, जिसके लिए लाईन लगानी पड़े।
हमारे यहां लाईन उसी के लिए लगाई जाती है, जिसकी जरूरत अधिक और सप्लाई कम होती है या फिर बहुत सस्ती हो। पहले राशन की लाईन, पानी की लाईन, टिकट के लिए आरक्षण की लाईन और अब समोसे के लिए लाईन। ये खरगोन का मेला थोड़े ही है जो हर दुकान पर समोसा बिना लाईन के मिल जाए।
[envoke_twitter_link]ये एक रुपये में समोसे की लाईन तो इसलिए लगाई गई है, जिससे अलीगढ़ में भाईचारा बढ़े।[/envoke_twitter_link] पिछले दिनों कुछ लोगों ने भाईचारा समोसा बेचा। सवाल समोसे बेचने का नहीं है, सवाल तो ये है कि अगर समोसा बेचने से ही भाईचारा बढ़ जाता है तो सबसे ज्यादा भाईचारा भारत में होना चाहिए था। भारत में ही ऐसे प्रयोग होते हैं। समोसे से भाईचारा, पानी पिलाने से, चाय पिलाने से भाईचारा ?
[envoke_twitter_link]समोसे से भाईचारा तो बढ़ जाता, लेकिन भाई और चारा हुआ तो नेता भी चारे के साथ होंगे।[/envoke_twitter_link] भाई हुआ तो भाई-भतिजावाद भी होगा। तो कैसे समोसे से भाईचारा बढ़ सकता है। आप क्या सोचते हैं कि आपके एक रुपये के समोसे से बरसों की कड़वाहट दूर हो जाएगी। आपका भाईचारा समोसे से बढ़ सकता है, नेता इसे बढ़ने नहीं देंगे। अगर यह ”ए” पार्टी का आयोजन हो तो ”बी” पार्टी के लोग इसमें अपने लोगों को शामिल नहीं होने देंगे। ”सी” पार्टी के लोग कहेंगे यह धर्म निरपेक्ष नहीं है। इसमें विशेष लोगों के लिए अलग से लाईन क्यों नहीं लगाई।
कुछ लोग कहेंगे [envoke_twitter_link]समोसा किसी धर्म का प्रतीक नहीं है, इसलिए धर्मनिरपेक्ष कहा जा सका है।[/envoke_twitter_link] दूध, दही, सब्जी, फल, पेड़ा, मिठाइयां, सेवइंया ये सब धर्म निरपेक्ष नहीं हैं। इसलिए इनसे ज्यादा महत्व समोसे का है। समोसे का कोई राजनीतिक रंग नहीं होता, लेकिन भाईचारा बढ़ाने के लिए समोसे का उपयोग करना नई राजनीति की दिशा में नया कदम है। [envoke_twitter_link]आज तक किसी ने नहीं सोचा कि समोसे भी भाईचारा बढ़ सकता है।[/envoke_twitter_link]
नोटबंदी ने सबको लाईन में खड़ा करके जो भाईचारा बढ़ाया था, उसी की काट के लिए समोसा चारा लाया गया है। एटीएम की लाईन और [envoke_twitter_link]समोसे की लाईन में हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी खड़े हैं,[/envoke_twitter_link] जो लाईन के बाहर से आकर बीच में घुसता है, उसे सभी देश भावना से ओतप्रोत हो उसका पुरजोर विरोध करते हैं और दुश्मन की तरह उसे बॉर्डर लाईन से बाहर खदेड़ कर ही दम लेते हैं। चलो अच्छा है नोट बंदी की लाईन से अलग किसी और की तो लाईन लगी। वरना यहां तो लट्ठ के जोर पर सब काम हो जाते हैं। हाथ में लट्ठ हो या रुक्का (नोट) अथवा नेता का पत्र। नोटों ने लाईन लगाना सिखाया और अब समोसे क्या कर दिखाते हैं?
अब लोग इसे समोसा राजनीति कहेंगे। भई समोसे ही क्यों खिलाए? जलेबी क्यों नहीं खिलाई। [envoke_twitter_link]जलेबी स्त्रिलंग है, इसलिए उसे भी समोसे के साथ-साथ 33 प्रतिशत परोसा जाना चाहिए था,[/envoke_twitter_link] लेकिन एक नेता का कहना है कि जब तक संसद में स्त्रियों को 33 प्रतिशत का आरक्षण नहीं मिल जाता तब तक किसी भी स्त्रिलिंग वस्तु या सामग्री पर राजनीतिक विचार नहीं किया जाएगा।
एक कारण यह भी है कि जलेबी काफी मीठी होती है और उससे राजनीति को शुगर की बीमारी की संभावना है, क्योंकि कई जलेबियों ने राजनीति को शुगर से पीडि़त बनाया है, इसीलिए जलेबी को समोसे के साथ शामिल नहीं किया गया।
एक नेता का बयान था, समोसे से कोलस्ट्रोल बढ़ता है, इसका जवाब आया कि इसीलिए गरीबों को परोसा गया, उनको कोलस्ट्रोल होता ही नहीं है। कोलस्ट्रोल और शुगर अमीर लोगों की बीमारी है और राजनीति गरीबी से चलती है, इसलिए समोसे को उचित स्थान दिया गया है। इसीलिए केवल गरीबों में बांटा गया, अमीरों से तो भाईचारा बढ़ाने के लिए पैसा लिया गया। [envoke_twitter_link]जब दंगें करवाने के लिए अमीरों से पैसा लिया जा सकता है तो भाईचारा बढ़ाने के लिए क्यों नहीं?[/envoke_twitter_link]
खैर एक बात तय है कि एक रुपये में समोसा बेचने से भाईचारा बढ़ा हो या न बढ़ा हो, लेकिन उस दिन कम से कम कुछ लोगों ने भरपेट खाने के लिए इधर-उधर मुंह अवश्य नहीं मारा होगा।