विश्व के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी। वह काशी जो कभी हर हर महादेव के नारों, संत कबीर के काव्यों, बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की धुनों, व महामना मदन मोहन मालवीय की तपोस्थली काशी हिंदू विश्वविद्यालय के माध्यम से अपनी अनूठी पहचान पूरे विश्व में रखता था, आज वह शहर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। राजनीतिक दृष्टि से भारतीय जनता पार्टी के लिए वाराणसी पिछले 3 दशकों में काफी उपजाऊ रहा है।
वाराणसी लोकसभा क्षेत्र ,शहर की तीनों विधानसभा क्षेत्रों व वाराणसी नगर निकाय पर लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है। इस प्रकार वाराणसी के मूलभूत संरचना का विकास ना होने ,सड़कों की बदहाली ,शहर की गंदगी ,बुनकरों व्यापारियों की बदहाली का सबसे बड़ा राजनीतिक कारण भी भारतीय जनता पार्टी ही रही।
सन् 2009 के आम चुनाव के दौरान जब भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को भारतीय जनता पार्टी से वाराणसी का उम्मीदवार बनाया गया तो काशी वासियों की उम्मीदें आकार लेने लगी, और एक बड़े तबके को यह यकीन था कि यह नेता वाराणसी की मूलभूत समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर संबोधित करेगा और वाराणसी को विकास के रास्ते ले जाएगा। पर नतीजा बिल्कुल इसके उलट रहा मुरली मनोहर जोशी बनारस के सांसद चुने गए अपने पूरे कार्यकाल के दौरान दो चार बार ही बनारस आये।पूरे बनारस में उनके गुमशुदगी के पोस्टर लगाए गए और बनारस की समस्याएं जस की तस बनी रहीं।
अब बारी थी 2014 के आम चुनाव की। भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश के रास्ते दिल्ली का रास्ता सबसे मुफीद लगा पूर्वांचल समेत पूरे उत्तर प्रदेश व बिहार के वोटों को साधने के लिए वाराणसी सबसे उपयुक्त व सुरक्षित सीट लगी।इसके लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को वाराणसी संसदीय क्षेत्र का उम्मीदवार बनाया गया। उनके नामांकन के दौरान मां गंगा के बुलावे, बाबा विश्वनाथ व अन्य धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत लच्छेदार भाषण काशी वासियों को काफी प्रभावित किया। फलस्वरूप नरेंद्र मोदी वाराणसी से जीत कर भारत के प्रधानमंत्री बने।
स्वभाविक रुप से काशी वासियों की उम्मीदें काफी प्रबल हो गई थी । अच्छे दिन, विकास व काशी को क्योटो बनाने जैसी बातों ने इन उम्मीदों को और बल दिया। पर अब मोदी सरकार के ढाई साल से ज्यादा कार्यकाल के बाद काशी वासियों की उम्मीद फिर से दम तोड़ने लगी हैं।अच्छे दिन व क्योटो बनाने जैसे नारे चाय व पान की दुकानों पर परिहास के काम आ रहे हैं। हर खाते में 15 लाख भेजने जैसी बातों पर चौराहे पर लोग चुटकी ले रहे हैं ।
ऐसा इसलिए कि तमाम वादों के बाद भी मोदी सरकार ने वाराणसी के विकास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। सड़कों की खस्ता हाल,शहर की गंदगी, बिजली की समस्या ,रोजगार जैसी मूलभूत समस्याएं जस की तस हैं। कई मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय को राजनीतिक मंच के रुप में प्रयोग किया पर BHU में लोकतंत्र बहाली व ऐम्स जैसी मांगों को नजरअंदाज करते रहे। नोट बंदी के बाद प्रदेश का साड़ी उद्योग, जरी वर्क, कालीन उद्योग ,कृषि उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है ।और वाराणसी के बुनकर ,किसान व अन्य कुटीर व लघु उद्योगी पहले से भी ज्यादा बदहाल हैं ।
इस प्रकार मोदी सरकार का ढाई साल का कार्यकाल काशी वासियों के लिए निराशापूर्ण रहा और पिछले तीन दशक से भाजपा ने विकास के दृष्टि से वाराणसी को बंजर कर दिया है।