भारत की आईटी इंडस्ट्री के दो सबसे बड़े बाजारों अमेरिका और यूके में संरक्षणवादी सोच बढ़ रही है। इसके मद्देनजर देश की सॉफ्टवेयर सर्विस इंडस्ट्री पड़ोसी देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की संभावनाएं तलाशने में जुट गई है। इंडस्ट्री की प्राथमिकता सूची में चीन टॉप पर है।
नैशनल असोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐंड सर्विसेज कंपनीज (नैसकॉम) और शांघाई में भारत के महावाणिज्य दूतावास (कॉन्स्युलट जनरल ऑफ इंडिया) ने मिलकर नानचिंग सरकार के साथ इसी महीने एक समारोह का आयोजन किया। इसका मकसद चीनी कंपनियों और भारत की आईटी कंपनियों के बीच रिश्ते बढ़ाना था। नैसकॉम के वैश्विक व्यापार विकास के निदेशक गगन सभरवाल ने ईटी को बताया, ‘चीन और जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और आईटी के क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी खर्च करने वाले देश हैं। हमें अमेरिका और यूके पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं कर इन देशों की ओर रुख करने की जरूरत है।’
नैसकॉम दुनिया के दो मुख्य बाजारों अमेरिका और यूके से बाहर भारतीय आईडी इंडस्ट्री की मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश करता रहा है। इसी क्रम में पिछले साल विभिन्न देशों के साथ बातचीत का दौर चला था ताकि संभावित ग्राहकों की पहचान की जा सके। नैसकॉम पिछले दो सालों से चीन में अवसरों पर अध्ययन कर रहा है। हालांकि, वहां कुछ भारतीय आईटी कंपनियों ने पहले से धाक जमा रखी है। लेकिन, विदेशी कंपनियों के लिए चीन के दरवाजे बंद होने को लेकर बनी धारणाएं इनकी प्रगति के राह को रोड़े जैसी हैं।
सभरवाल ने कहा, ‘जब आप चीन जाते हैं तो आपको पता चलता है कि उस भौगोलिक सीमा में निवेश करने वाली हरेक अच्छी कंपनी शानदार कारोबार कर रही है। ऐसा नहीं है कि चीन बाहर से कुछ नहीं खरीदता है। चीन सबसे खरीदता है, चाहे वह ऐपल हो, मैकडॉनलड्स हो या कार बनाने वाली कंपनियां। बस एक ही फर्क है और वह यह है कि वो उन्हीं प्रॉडक्ट्स को स्वीकार करते हैं जो चीन से बाहर बने हों।’ सभरवाल ने कहा कि इंडियन आईटी इंडस्ट्री ने चीन में अच्छी शुरुआत की है।
बहरहाल, 13 जनवरी को आयोजित समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली 50 चीनी कंपनियां शामिल हुईं, वहीं इंडियन आईटी इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व इन्फोसिस, विप्रो, टीसीएस, एचसीएल, टेक महिंद्रा आदि ने किया। नैसकॉम की नजर चीनी कंपनियों को मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल, हेल्थकेयर और एविएशन आदि सेक्टर में सेवा देने पर है।