दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में एक टूर एड ट्रैवल एजेंसी है। नाम है खास। खास नाम इसलिए क्योंकि ये वाकई खास काम कर रहे हैं। आकाश फाउंडर हैं इस ट्रैवल एजेंसी के। कुल 5 लोग काम करते हैं यहां। कमलेश,अर्चना,दिप्ती और प्रेमा सारा काम यही चारों लड़कियां ही देख रही हैं। इन चारों में से कोई देख नहीं सकती। लेकिन ना काम के रफ्तार में कोई कमी, और ना ही आपकी ट्रिप बुक करने और उसे सफल बनाने में कोई कोताही। ऑफिस से लेकर क्लाइंट मीटिंग सब ये लड़कियां ही करती हैं। आकाश ने Youth Ki Awaaz से बात की ‘खास’ के अबतक के सफर पर।
प्रशांत- आकाश खास क्या है?
आकाश- मेरे सारे इम्पलॉई खास हैं, और खास तरीके से काम कर रहे हैं हम। हम दुनिया कि पहली ऐसी ट्रैवल एजेंसी हैं जो विजुअली इमपेयर्ड लड़कियों के साथ काम कर रहे हैं। ये लड़कियां वो सारा काम करती हैं जो हम और आप कर सकते हैं। इसलिए मैंने सोचा क्यों ना इस खास काम का नाम भी खास दिया जाए।
प्रशांत- ये आइडिया कहां से आया। मतलब कैसे स्ट्राइक किया?
आकाश- पहले जब भी सड़क पर किसी डिसेबल्ड इंसान को देखता था तो केवल 5-10 रुपये देकर चला जाता था। एकबार एक एसिड अटैक सर्वाइवर थी जो सड़क पर गुब्बारे बेच रही थी। दिवाली का टाइम था। मैंने उससे नॉर्मली पूछा था कि आप गुब्बारे बेच रही हैं तो आप जॉब क्यों नहीं करती हैं। आपकी कम्यूनिकेशन स्किल भी अच्छी है। उन्होंने बताया कि ‘एक लड़के ने मेरे चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया था 2 साल पहले, उस चक्कर में मेरे हसबेंड ने मुझे छोड़ दिया। मैं मॉल में सेक्यॉरिटी गार्ड थी ,मेरी 28 हज़ार रुपये सैलरी भी थी, मुझे वहां से भी निकाल दिया। मैंने कहा कि आप कहीं और क्यों नहीं ट्राय करती। उन्होंने बताया कि जिसका चेहरा देख के निकाल दिया उसे चेहरा देख के ही अब नौकरी नहीं मिलती। मैंने सोचा कि इतना पोटेंशियल होने के बाद भी कोई मौका नहीं मिलता। तभी मैंने सोचा कि एक ऐसा प्लैटफॉर्म बनाऊंगा जहां चेहरा या फिज़िकल एबिलिटी के आधार पर नहीं बल्कि स्किल देख कर लोगों को काम दिया जाएगा।
प्रशांत- आपको लगता है कि पर्सन्स विद डिसएबिलिटी को लेकर हमारी सोच भेदभाव पूर्ण है?
आकाश- बेशक, इसिलिए मैंने खुद अपनी सोच पर पहले काम किया। मैंने सोचा कि किसी NGO में जाकर डिसेबल्ड लोगों को एक दिन का सांत्वना देने से अच्छा है कि उन्हें किसी जॉब के लिए ट्रेन किया जाए। इंडिया के अंदर क्या होता है कि [envoke_twitter_link]अगर बॉडी का एक पार्ट भी डिसएबल्ड है तो हम पूरे बॉडी को डिफेक्टिव मान लेते हैं।[/envoke_twitter_link] जैसे अगर कोई देख नहीं सकता तो शरीर का बाकि हिस्सा तो काम कर रहा है ना। एक निगेटिव प्वाइंट के कारण हम पूरी एबिलिटी को तो नेगलेक्ट नहीं कर सकते हैं ना।
प्रशांत- आपको लगता है कि किसी डिसेबल्ड इंसान के लिए एक्सेसिबिलिटी बहुत बड़ा मसला है हमारे यहां ?
आकाश- बिल्कुल, हमने डिसेबल्ड को अलग जगह पर ला कर खड़ा कर दिया है। सबको बराबरी पर लाने की शुरुआत करनी पड़ेगी। उनको कॉमन चीज़ों के अंदर लाना पड़ेगा।
प्रशांत- हम परिवार के स्तर पर भी इन चीज़ों पर बातें नहीं करते हैं।
आकाश- उल्टा बार-बार डिसेबल्ड को ये विश्वास दिलाया जाता है कि आप कमतर हैं, और इतनी बार जब लोग और समाज सुनाते हैं तो सुनने वाले को भी लगता है कि शायद कुछ तो कमी है हम में भी।
प्रशांत- कितना मुश्किल था कॉंफिडेंस दिलाना चारों लड़कियों को?
आकाश- बहुत मुश्किल था, अभी भी आ रही है मुश्किलें। दिक्कत ये थी कि मैंने कभी किसी पर्सन विद डिसएबिलिटी के साथ काम नहीं किया था, तो ये मेरे लिए भी बहुत नया और चैलेंजिंग एक्सपीरियंस था। लोगों ने बहुत डिसकरेज किया कहने लगें कि ये क्या कर रहे हो, कोई फ्यूचर नहीं है वगैरह-वगैरह। लेकिन आज जब सारी लड़कियां मुझसे कहती हैं कि अब हम किसी से भी बात कर सकते हैं, कहीं भी कॉंफिडेंटली जा सकते हैं, तो सारे चैलेंजेस बहुत पॉज़िटिव लगने लगते हैं। ये कहती हैं कि एकबार हमारा काम देख लो उसके बाद मेरी काबिलियत पर शक करना, हम मोमबत्ती बनाने से आगे भी काम कर सकते हैं। शुरुआत के 2 महीने बस मैंने इनसे इसी पर बात की कि हम किसी से कम नहीं हैं, थोड़ी मुश्किलें जो आती हैं उसको ओवरकम कर लेंगे।
प्रशांत- कैसे संपर्क में आएं आप, कोई सेलेक्शन प्रॉसेस भी था?
आकाश- हौज खास में एक NGO है, वहां मैं मिला इनसे, मैंने वहां 5 लड़कियों को शॉर्टलिस्ट किया इंटरव्यू लेने के बाद।
प्रशांत- इनके फैमिली से कैसा रिस्पाँस रहा था शुरुआत में?
आकाश- फैमिली को अच्छा लगा काफी कि उनके बच्चों को एक प्लैटफॉर्म मिला।
प्रशांत- जब आपने पहली बार कमलेश,अर्चना,दिप्ती और प्रेमा को बताया कि अब वो नौकरी करेंगी तो क्या रिएक्शन मिला?
आकाश- क्या रिएक्शन रहा होगा आप इसी बात से अंदाज़ा लगा लें कि जब मैंने इंटरव्यू लिया और काम शुरु करने में 1 महीने का गैप था, तो तब ये सारी लड़कियां मुझे रोज़ फोन करके फॉलोअप लेती थीं कि कब काम शुरु होगा। इनका फर्स्ट रिएक्शन ये था कि चाहे कुछ भी हो जाए, सैलरी मिले ना मिले एक साल के अंदर हम 5 से 50 लोग हो जाएंगे।
प्रशांत- कई बार मदद के चक्कर में हम दया दिखाने लग जाते हैं।
आकाश- ये पर्सनल लेवल पर सोचने की ज़रूरत है कि एक दिन दया दिखा के क्या मिल जाएगा।
प्रशांत- ऑफिस स्पेस के डिज़ाइन को लेकर भी आपलोगों में आपस में डिसकशन होती है?
आकाश- अपने स्पेस को लेकर ये बच्चें खुश रहते हैं और कहते हैं कि हम ऐसे सज़ाएंगे ऐसे रखेंगे। दिवाली में लोगों के देने के लिए सारा गिफ्ट पैक इन्होंने ही तैयार किया, रंगोली बनाई मिलकर। अब ये टीवी लगाने को कह रही हैं ताकि कोई ट्रैवल चैनल सुनते रहें। ये कल्पना से बहुत आगे काम करती हैं।
प्रशांत- डिसएबिलिटी पर हमारी समझ और डिसेबल्ड से हमारा इंटरैक्शन बहुत कम है?
आकाश- सच बताउं तो हम यूज़्ड टू हो गए हैं, बहुत सारे स्टार्टअप या यंग अाँटरप्रनौर आए हैं, किसने ये सोचा कि हम कम से एक डिसेबल्ड को काम देंगे। अगर हमारे देश में एक कंपनी एक डिसेबल्ड बच्चा हायर कर लेगा तो इंडिया पहला कंट्री बन जाएगी जहां कोई भी डिसेबल्ड इंसान अपनी शारीरिक कमी के कारण बेरोज़गार नहीं रहेगा। हमारा न्यूज़ भी जब चलता है तो लोग उसपे कमेंट करते हैं कि हम सपोर्ट करेंगे, नाइस इनिशिएटिव, और जहां मैंने पर्सनली मदद मांग ली कुछ तो बस सब थ्योरी में रह जाता है, कहते हैं आई विल कॉल यू बैक। तो थ्योरी मोड से प्रैक्टिकल मोड में आना पड़ेगा।
प्रशांत- हमारे यहां डिसेबल्ड के प्रति हमारी समझ कम है और एक डिसेबल्ड महिला होना, आपके लिए कितना मुश्किल था लोगों को कन्विंस करना कि अच्छा काम है
आकाश- मैं तो कंविंस कर ही नहीं पाया था, ऑफिस जाने वाली महिला को लेकर तो लोग इतनी बाते करते हैं, तो डिसएबिलिटी के मामले में तो बात ही छोड़ दिजिए। लोगों ने मुझपर सवाल उठाने शुरु कर दिए कि आप इनकी सेक्योरिटी कैसे इंश्यौर करोगे, आपक जब ऑफिस में नहीं होंगे तो कौन होगा? मुझे सबसे ज़्यादा इनको विश्वास दिलाना था कि आप सेफ प्लेस पर हो। मैंने आते ही इनको बोला कि ये ऑफिस आपका है, आप बॉस हैं। जब स्टार्टअप चल गया तब लोगों ने थोड़ा भरोसा दिखाया।
प्रशांत- देखकर अच्छा लगता है कि खास की सराहना होती है।
आकाश- बहुत अच्छा लगता है, आप जो आज यहां बात कर रहे हैं मेरे साथ वो काम के बदौलत ही तो। शुरुआत में जिन चैनल्स को बोला था कि प्लीज़ देख लीजिए कुछ चला सकते हैं इसके बारे में तो उन्होंने फोन तक उठाना बंद कर दिया था। अब वो भी आते हैं।
प्रशांत- चैलेंजेस क्या नज़र आते हैं?
आकाश- फंड्स का चैलेंज है सबसे बड़ा। अब ये काम सीख चुकी हैं तो रिसोर्सेस की कमी है। एक अच्छा स्पेस क्रिएट करना है, जहां मूवमेंट थोड़ा फ्री हो। एक गाड़ी लेना है जिससे मोबिलिटी में कम समय लगे इनको जब क्लाइंट से मिलने जाती हैं। इक्विपमेंट्स लेनी है। मैंने काफी जगह अप्लाई किया है, कई नेताओं को बोला लेकिन ज़ीरो रिस्पाँस मिला, ज़िरो भी बहुत बड़ा वर्ड है। मैंने प्राइवेटली फंड जेनेरेट करने का प्रयास शुरु किया है।
प्रशांत- लोगों से कुछ कहेंगे?
आकाश- यही कि आप दया मत दीजिए इनको, इनके काम को देखिए, हमें डोनेशन ना दें, हमारी सर्विस लें। स्टूडेंट्स सोचें कि आगे जब भी हम कंपनी खोलें तो डिसेबल्ड लोगों को एक हिस्सा बनाएं इसका।
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