3 अगस्त को बिहार में, भारतीय छात्र कल्याण संघ के झंडे तले प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस द्वारा बुरी तरह से पीटे जाने की खबरें आयी हैं। ये छात्र केंद्र सरकार द्वारा मेट्रिक से आगे की पढाई के लिए एस.सी./एस.टी. (अनुसूचित जाति/जनजाति) के छात्रों को मिलने वाली स्कॉलरशिप को कम कर दिए जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। मई 2016 में आये बिहार सरकार के एस.सी./एस.टी. वेलफेयर डिपार्टमेंट के एक सर्कुलर के अनुसार वर्ष 2015-16 के लिए स्कॉलरशिप की अधिकतम धनराशि 15000 रूपए तय की गयी है। स्कॉलरशिप की धनराशि इस पर निर्भर करती है कि छात्र किस कोर्स में दाखिला लेता है। पूर्व में इस स्कॉलरशिप की अधिकतम सीमा 100000 रूपए तक थी।
एक क्षेत्रीय अखबार के अनुसार ये छात्र स्कॉलरशिप की अधिकतम सीमा को वापस एक लाख रूपए करने, पदोन्नति में आरक्षण और हर जिले में एक वेलफेयर हॉस्टल बनाए जाने की मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। इस प्रदर्शन में पूरे राज्य के एस.टी./एस.सी. छात्रों के जे.पी. गोलंबर से विधानसभा तक मार्च किया जाना तय हुआ था। लेकिन पुलिस ने इस मार्च को जे.पी. गोलंबर पर ही रोक दिया। पुलिस और छात्रों के बीच हुई झड़प के बाद दोनों पक्षों के लोगों के घायल होने की खबरें आयी हैं। छात्रों पर किए गए पुलिस के इस लाठीचार्ज के बाद विपक्ष ने एक होकर इस घटना का विधानसभा और विधानपरिषद में विरोध किया। 4 अगस्त को भाजपा और सहयोगी दलों तथा सीपीआइ-एमएल के सदस्यों ने एकजुट होकर विधानसभा में सरकार विरोधी नारे लगाये जाने के बाद, सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।
इस वर्ष की शुरुवात में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दलित छात्र नेता रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद शुरू हुए छात्र आन्दोलनों से एस.सी./एस.टी. छात्रों का सरकार के प्रति गुस्सा साफ़ देखा जा सकता है। हाल ही में हुई दलित और अल्पसंख्यक विरोधी घटनाएं भी, छात्रों के गुस्से को और बढ़ाने का काम कर रही हैं। उना में दलित युवकों को तथाकथित गौरक्षकों के द्वारा अमानवीय तरीके से पीटे जाने के बाद अहमदाबाद में हुए विशाल दलित प्रदर्शन के बाद, दलित समुदाय का गुस्सा सबके सामने आ चुका है। ऐसे में एस.सी./एस.टी. छात्रों की स्कॉलरशिप की अधिकतम सीमा को 85% तक घटा दिए जाने से समुदाय के छात्रों को सही सन्देश नहीं जा रहा है। इतना ही नहीं इसका विरोध किए जाने पर पुलिस बर्बरता से छात्रों को पीटा जाना इस गुस्से की आग में घी का ही काम करेगा।
सरकार के पिछड़े समुदायों के विकास के लिए सदैव तत्पर रहने के वायदे, इन सब घटनाओं के बाद खोखले साबित होते दिख रहे हैं। सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए की दलित और पिछड़े समाज की नुमाइंदगी भी सरकार को ही करनी है। हमने इस वर्ष की शुरुवात में ही छात्र आन्दोलनों की झलक देखी है, ऐसे में प्रशासन और सरकार का छात्रों को हलके में लेना ना तो सरकार और ना ही छात्रों के हित में होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जेपी आन्दोलन के समय खुद एक छात्र नेता थे और वो इस आन्दोलन में छात्रों की भागीदारी से भलीभांति परिचित भी हैं, ऐसे में इस घटना पर उनकी प्रतिक्रिया क्या रहेगी यह एक देखने वाली बात होगी।
आपके कॉलेज कैंपस के मुद्दों को कैंपस वाच के जरिये लोगों तक पहुंचाने के लिए हमें campus@youthkiawaaz.com पर ईमेल करें । कैंपस वाच न्यूज़ लैटर पर सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Featured Image: for represtation use only.