इससे पहले पता लगाया जाए कि यह सच है या नहीं, आइए जानते हैं कि समलैंगिकता या होमोसेक्सुअलिटी आखिर है क्या? अगर शब्द की बात करें तो होमो= समान (यूनानी भाषा में), तो होमोसेक्शुअल या समलैंगिक वह व्यक्ति है, जो समान सेक्स या लिंग के प्रति आकर्षित होता है।
यह तो इसकी सीधी-सरल परिभाषा है लेकिन “सेक्सुअलिटी” या “लैंगिकता” शब्द इसे पेचीदा बन देता है। यह शब्द हमारे यौन व्यवहार से जुड़ी आदतों, अनुसरण के तरीकों, नियम-कायदों, और सामाजिक मानदंडों जैसी कई अन्य चीज़ों का मिलाजुला रूप है।
यहां आशय यह कतई नहीं है कि जो भी यह प्रश्न कर रहा है, वह होमोफोबिक (समलैंगिकता के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त) है मगर एक समझ का अभाव यहां पर साफ तौर पर देखने को मिलता है और वह है “स्ट्रेट” या विषमलैंगिक होने का गर्व। विषमलैंगिक लोगों को मिलने वाली सामाजिक मान्यता भी समलैंगिक समुदाय के बारे में लोगों को समझने और उन पर विचार करने से रोकती है।
ज़्यादातर लोगों को लगता है कि समलैंगिक किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी से ग्रस्त हैं, जो उन्हें विपरीत सेक्स के साथ संभोग करने से रोकती है। उन्हें किसी ऐसे इंसान के तौर पर देखा जाता है जो सबसे अलग है, पापों से भरा हुआ है और कई बार तो उन्हें इंसान भी नहीं समझा जाता केवल इसलिए क्योंकि वह समाज में मान्यता प्राप्त विषमलैंगिक आचार और व्यवहार में यकीन नहीं रखते और ना ही उसका अनुसरण करते हैं।
कौमार्य (कुंवारापन) और केवल प्रजनन के लिए बनी सेक्स की मान्यताओं को ना मानने वालों को बीमार माना जाता है। इंटरनेट पर अभी यह बात काफी प्रचलित है कि अगर कोई बच्चा विषमलैंगिक नहीं है, तो वह उम्र के हिसाब से लैंगिकता या सेक्सुअलिटी को समझने के लिए परिपक्व नहीं है।
समलैंगिक लोगों के बारे में यह आम धारणा है कि उनकी जीवन शैली अलग होती है, साथ ही उनकी जेनेटिक (गुणसूत्रों की) संरचना भी अलग होती है। पिछले कुछ समय में “गे जीन” अर्थात “समलैंगिकता का गुणसूत्र” के होने का भी एक मत सामने आया है, जो समलैंगिकता के प्राकृतिक होने की बात पर ज़ोर देता है।
जब कुछ चीज़ें किसी के व्यक्तिगत नियंत्रण से बाहर की (या कहें प्राकृतिक) हों, जैसे नस्ल या त्वचा का रंग आदि, तो ऐसे में किसी को “समलैंगिक होना बंद करो” या हेट्रोसेक्सुअलिटी (विषमलैंगिकता) को पसंद करो जैसी बातें कहना बेहद गलत और क्रूर है।
समलैंगिकता भी प्राकृतिक है और करीब 1500 अन्य प्रजातियों में समलैंगिक व्यवहार की पुष्टि हो चुकी है, जिसमें इंसान की सबसे करीबी बौने चिम्पांजियों की प्रजाति भी आती है।
समलैंगिकता का इलाज संभव है, यह कहना बिलकुल वैसा ही है जैसे किसी को यह कहना कि अगर तुम्हारा रंग काला है तो उसका भी इलाज संभव है। या कहें कि विषमलैंगिकता का इलाज संभव है। यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि जीवन की एक सच्चाई है। कृपया कोई बाबा रामदेव और दिमित्री युसरोकोव स्लामिनिस जैसे लोगों को जाकर यह बात बताए।
तो इस प्रश्न का उत्तर है, नहीं, समलैंगिकता का इलाज नहीं किया जा सकता। इसके इलाज की ज़रूरत भी नहीं है क्योंकि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है। गौरतलब है कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए भारत में समलैंगिकता को मान्यता दी थी।
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